चेक बाउंस की शिकायत NI Act की धारा 138 के तहत वसूली के लिए सिविल मुकदमा दायर होने पर सुनवाई योग्य: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए शिकायत सुनवाई योग्य होगी, भले ही पैसे की वसूली के लिए सिविल मुकदमा दायर किया गया हो।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने लालजी केशा वैद नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा,
"धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए शिकायत सुनवाई योग्य होगी, भले ही वसूली की कार्यवाही सिविल मुकदमा शुरू करके शुरू की गई हो। हालांकि दोनों ही एक ही कारण से उत्पन्न हुए हैं।"
वैद ने दयानंद आर द्वारा अधिनियम की धारा 138 के तहत दायर निजी शिकायत पर उन्हें समन जारी करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उन्होंने तर्क दिया कि एक बार उसी राशि की वसूली के उद्देश्य से दीवानी मुकदमा दायर करने और बाद में भी न्यायालय द्वारा मुकदमा जारी करने से अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आपराधिक कानून लागू करने पर रोक लग जाएगी।
शिकायतकर्ता ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि दीवानी मुकदमा दायर करना क्षतिपूर्ति के उद्देश्य से है। केवल दीवानी मुकदमा दायर करने से भुगतान न किए जाने के कारण वसूली के लिए प्रस्तुत चेक के अनादर के लिए आपराधिक कानून लागू करने पर रोक नहीं लगेगी।
पीठ ने डी.पुरुषोत्तम रेड्डी बनाम के.सतीश, (2008) 8 एससीसी 505 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें न्यायालय ने माना कि दो कार्यवाही स्वीकार्य हैं। दोनों में से एक दीवानी मुकदमा होगा, जिसमें राशि की वसूली की मांग की जाएगी और दूसरी कार्यवाही अधिनियम की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए होगी।
अदालत ने कहा,
"चूंकि पूरी याचिका उपरोक्त आधार पर तैयार की गई। इस आधार को बनाए रखने योग्य नहीं माना गया, इसलिए प्रतिवादी द्वारा शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का कोई वारंट नहीं है। परिणामस्वरूप, याचिका में कोई योग्यता नहीं पाते हुए याचिका खारिज की जाती है।"
केस टाइटल: लालजी केशा वैद और दयानंद आर