स्वामित्व, कब्जे संबंधित विवाद रिट अधिकार क्षेत्र का विषय नहीं: झारखंड हाईकोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड के हस्तक्षेप के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2024-12-05 06:08 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में याचिकाकर्ता की संपत्ति के कब्जे और स्वामित्व में कथित हस्तक्षेप के खिलाफ राहत की मांग संबधी एक रिट याचिका को खारिज कर दिया। फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि "अधिकार, स्वामित्व, हित और कब्जे" संबधी विवादों में साक्ष्य की आवश्यकता होती है और रिट क्षेत्राधिकार के तहत उनका फैसला नहीं किया जा सकता है।

मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस अनुभा रावत चौधरी ने कहा, "इस न्यायालय को लगता है कि वर्तमान मामले में शामिल संपत्ति के संबंध में अधिकार, स्वामित्व, हित और कब्जे के संबंध में गंभीर विवाद है।"

उन्होंने कहा, "यह न्यायालय इस विचार पर है कि सरोज कुमार- मूल आवंटी की स्थिति रिट क्षेत्राधिकार में तय नहीं की जा सकती है। इसके अलावा, यह भी तय नहीं किया जा सकता है कि क्या शैलेश कुमार गुप्ता सरोज कुमार के पुत्र हैं। तथ्य यह है कि शैलेश कुमार गुप्ता ने वर्तमान कार्यवाही में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। वर्तमान मामले में शामिल विवाद की प्रकृति को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि विवाद को हल करने के लिए साक्ष्य की आवश्यकता है, जिसे रिट क्षेत्राधिकार में तय नहीं किया जा सकता है। तदनुसार, याचिकाकर्ता की ओर से प्रार्थना की गई कोई भी राहत इस रिट कार्यवाही में नहीं दी जा सकती है।"

मामले में याचिकाकर्ता ने हाउसिंग बोर्ड के हस्तक्षेप के खिलाफ राहत की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। हाउसिंग बोर्ड ने उसे संपत्ति के रजिस्टर्ड डीड को सरेंडर करने के लिए एक पत्र जारी किया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने हाउसिंग बोर्ड से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के बाद वैध रूप से संपत्ति खरीदी थी। उसने आरोप लगाया कि हाउसिंग बोर्ड का हस्तक्षेप, इस दावे के आधार पर कि मूल आवंटी सरोज कुमार जीवित है, अनुचित था।

प्रतिवादियों में से एक सरोज कुमार मूल आवंटी होने का दावा करते हुए अदालत के समक्ष पेश हुए और कहा कि संपत्ति बेचने वाला प्रतिवादी संख्या 2 उनका बेटा नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता के पक्ष में सेल डीड निष्पादित करने के लिए धोखाधड़ी की गई थी।

अदालत ने कहा, "वर्तमान मामले में सरोज कुमार को प्रतिवादी संख्या 3 बनाया गया है, जो एक वकील के माध्यम से पेश हुए हैं और दावा करते हैं कि वे जीवित हैं और शैलेश कुमार गुप्ता उनके बेटे नहीं हैं। प्रतिवादी संख्या 3 का यह भी दावा है कि वे वर्तमान मामले में शामिल संपत्ति के मूल आवंटी हैं। इसके अलावा, प्रतिवादी संख्या 3 ने दावा किया कि संपत्ति उनके भौतिक कब्जे में हैं।"

यह भी देखा गया कि प्रतिवादी संख्या 2, शैलेश कुमार गुप्ता, जिन्होंने सेल डीड निष्पादित किया था, नोटिस के बावजूद कार्यवाही में उपस्थित नहीं हुए। अदालत ने कहा, "वर्तमान कार्यवाही में प्रतिवादी संख्या 2 के रूप में शैलेश कुमार गुप्ता, पुत्र स्वर्गीय सरोज कुमार को पक्ष बनाया गया है, लेकिन नोटिस के बावजूद कोई भी उपस्थित नहीं हुआ।"

हाउसिंग बोर्ड ने प्रस्तुत किया कि उसके पत्र में केवल सिविल कार्यवाही के माध्यम से डीड को रद्द करने के लिए कदम उठाने के लिए याचिकाकर्ता का सहयोग मांगा गया था। उन्होंन याचिकाकर्ता के साथ किए गए संचार में सरोज कुमार की पहचान के विवाद सहित मामले की पूरी पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला।

तथ्यों पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा, "इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, यह निश्चित रूप से किसी भी पक्ष के लिए खुला है कि वह वर्तमान मामले में शामिल संपत्ति के संबंध में अधिकार, स्वामित्व, हित आदि के संबंध में कानून के अनुसार उचित कदम उठाए और साथ ही एक या दूसरे व्यक्ति/पक्ष की स्थिति/पहचान के संबंध में भी।"

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस याचिका को खारिज करने से उचित फोरम में पक्षकारों द्वारा शुरू की गई किसी भी कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि "यह स्पष्ट किया जाता है कि इस रिट याचिका को खारिज करने से ऐसी किसी भी कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, यदि इसे एक या दूसरे पक्ष द्वारा शुरू किया गया हो।"

केस टाइटलः श्रीमती बिमला देवी बनाम झारखंड राज्य आवास बोर्ड

एलएल साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (झा) 184

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