ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी पर नियोक्ता को केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार 10% ब्याज देना होगा : झारखंड हाईकोर्ट
जस्टिस अनुभा रावत चौधरी की एकल पीठ ने माना कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 7 (3-ए) के अनुरूप केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, यदि नियोक्ता ग्रेच्युटी के भुगतान में देरी करते हैं तो उन्हें 10% की दर से ब्याज देना होगा।
पूरा मामला
प्रतिवादी कर्मचारी टाटा स्टील लिमिटेड (प्रबंधन) के लिए काम कर रहा था। प्रबंधन ने कर्मचारी को निर्दिष्ट समय अवधि में ग्रेच्युटी का भुगतान करने में विफल रहा, इसलिए कर्मचारी ने ग्रेच्युटी राशि पर ब्याज का दावा किया।
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 की धारा 7 (3-ए) ग्रेच्युटी की राशि के निर्धारण का प्रावधान करती है। यदि उपधारा (3) के अंतर्गत देय ग्रेच्युटी की राशि नियोक्ता द्वारा निर्दिष्ट अवधि के भीतर भुगतान नहीं की जाती है तो नियोक्ता उस तिथि से जिस दिन ग्रेच्युटी देय होती है, उस तिथि तक जिस दिन इसका भुगतान किया जाता है। ऐसी दर पर साधारण ब्याज का भुगतान करेगा, जो दीर्घावधि जमाराशियों के पुनर्भुगतान के लिए केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित दर से अधिक नहीं होगी, जैसा कि सरकार अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट कर सकती है।
केंद्र सरकार ने दिनांक 01.10.1987 को अधिसूचना एस.ओ. 873 (ई) जारी की, जिसमें कहा गया था कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 7 की उपधारा (3ए) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार उन मामलों में नियोक्ता द्वारा अपने कर्मचारियों को 10% प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज का भुगतान करने का निर्देश देती है, जहां निर्दिष्ट अवधि के भीतर ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया।
उप श्रमायुक्त-सह-नियंत्रण प्राधिकारी, कोल्हान प्रमंडल, जमशेदपुर ने दिनांक 19.08.2021 को आदेश पारित किया, जिसके तहत प्रबंधन को 30 दिनों के भीतर ग्रेच्युटी की राशि (10,67,308.00 रुपये) पर 10% प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया गया। इससे व्यथित होकर प्रबंधन ने इसे चुनौती दी।
श्रमायुक्त सह अपीलीय प्राधिकारी ने दिनांक 14.03.2023 को आदेश पारित किया, जिसके तहत उसने नियंत्रण प्राधिकारी का आदेश बरकरार रखा। इससे व्यथित होकर प्रबंधन ने रिट याचिका दायर की।
प्रबंधन द्वारा प्रस्तुत किया गया कि ग्रेच्युटी की देय राशि पर 10% की दर से ब्याज का भुगतान करने का निर्देश अधिनियम 1972 की धारा 7 (3-ए) के प्रावधान के विपरीत है, क्योंकि अधिकतम ब्याज 10% की दर से दिया जा सकता है। यह प्रस्तुत किया गया कि अधिकतम का अर्थ अनिवार्य रूप से यह है कि उससे कम राशि का भुगतान करना आवश्यक हो सकता है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि अधिसूचना अधिनियम के प्रावधान रद्द नहीं कर सकती है, जिसमें निर्धारित किया गया कि अधिकतम दर 10% है, जिसका अर्थ है कि 10% से कम राशि भी दी जा सकती है। यह प्रस्तुत किया गया कि ब्याज की अधिकतम दर को घटाकर 6% या 7% किया जाना चाहिए।
दूसरी ओर प्रतिवादी द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि दिनांक 01.10.1987 की अधिसूचना में स्पष्ट रूप से ब्याज दर 10% निर्धारित की गई, जो धारा 7 (3-ए) के तहत भी प्रदान की गई, जिसमें स्पष्ट आदेश है कि सरकार को अधिसूचना जारी करनी है।
न्यायालय के निष्कर्ष
अदालत ने देखा कि अधिनियम 1972 की धारा 7 (3-ए) ब्याज दर तय करने के लिए पैरामीटर प्रदान करती है, लेकिन धारा अपने आप में कोई ब्याज दर तय नहीं करती है। हालांकि, ब्याज दर को केंद्र सरकार द्वारा 1972 के अधिनियम की धारा 7(3-ए) के अनुसार अधिसूचित किया जाना है, जिसे दिनांक 01.10.1987 की अधिसूचना के माध्यम से 10% की दर से अधिसूचित किया गया। इसके अलावा धारा 7(3-ए) ब्याज दर में स्वतः परिवर्तन का प्रावधान नहीं करती है।
एस. वसंतन बनाम प्रबंध निदेशक एवं अन्य के मामले पर न्यायालय ने भरोसा किया, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि 1972 के अधिनियम की धारा 7(3-ए) ब्याज दर की ऊपरी सीमा पर प्रतिबंध प्रदान करती है। जबकि केंद्र सरकार द्वारा धारा 7(3-ए) में दिए गए प्रावधान से अधिक ब्याज दर तय करने वाली अधिसूचना कानून के विपरीत है, इसलिए अधिसूचना लागू नहीं की जा सकती।
लेकिन न्यायालय ने मद्रास हाईकोर्ट जैसा दृष्टिकोण नहीं अपनाया और पाया कि दीर्घावधि जमा पर केन्द्र सरकार द्वारा देय ब्याज दर समय-समय पर भिन्न हो सकती है और केन्द्र सरकार ने 1972 के अधिनियम की धारा 7 (3-ए) के अनुसार लागू ब्याज दर को संशोधित करते हुए दिनांक 01.10.1987 को उचित अधिसूचना जारी की।
न्यायालय ने लक्ष्मण सिंह भदौरिया बनाम नियंत्रण प्राधिकरण एवं अन्य के मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि 4% ब्याज के भुगतान के संबंध में वैधानिक प्राधिकरण का आदेश विपरीत था। केन्द्र सरकार द्वारा दिनांक 01.10.1987 को जारी मौजूदा अधिसूचना के अनुसार 10% की दर से ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने नरहरि बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें 10% की दर से ब्याज दर तय की गई लेकिन न्यायालय ने मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सभी देय राशियों पर ब्याज दर को 9% से संशोधित कर 12% प्रति वर्ष कर दिया, जिसमें सभी सेवानिवृत्ति लाभ शामिल थे। न्यायालय ने पाया कि 1972 के अधिनियम की धारा 7 (3-ए) और 01.10.1987 की अधिसूचना के प्रावधान में कोई विरोधाभास नहीं है, क्योंकि धारा 7 (3-ए) में वह आधार प्रदान किया गया, जिस पर अधिसूचना जारी की गई थी।
न्यायालय ने माना कि अपीलीय प्राधिकारी ने नियंत्रक प्राधिकारी द्वारा दी गई 10% की ब्याज दर बरकरार रखते हुए सही ढंग से दिनांक 01.10.1987 की अधिसूचना का हवाला दिया, जो कि 1972 के अधिनियम की धारा 7 (3-ए) के तहत जारी एक वैधानिक अधिसूचना है।
इसलिए अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश में न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया गया।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को खारिज कर दिया गया।