अभियुक्त की डिस्चार्ज याचिका पर विचार करते समय उसके बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया

Update: 2024-08-02 10:49 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि अभियुक्त के डिस्चार्ज याचिका पर विचार करते समय अभियुक्त के बचाव पर विचार नहीं किया जा सकता।

जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने टिप्पणी की,

"ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ताओं को डिस्चार्ज करने के आधार के रूप में उठाए गए बिंदु मामले में उनके बचाव से संबंधित हैं। मामले की सच्चाई या झूठ का फैसला केवल ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है और याचिकाकर्ताओं के संभावित बचाव को कार्यवाही के प्रारंभिक चरण में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, जिसे ट्रायल के दौरान प्रमाणित करने की आवश्यकता होती है। ऐसा प्रतीत होता है क ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की डिस्चार्ज याचिका को खारिज करते समय पर्याप्त कारण दर्ज किए।"

गौरतलब है कि 2020 में एम.ई. शिवलिंगमूर्ति बनाम सीबीआई नामक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी द्वारा दाखिल डिस्चार्ज आवेदन स्वीकार करने वाले मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज करते हुए कहा था कि आरोपी के बचाव पर उस समय विचार नहीं किया जा सकता, जब आरोपी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227 के तहत डिस्चार्ज की मांग कर रहा हो।

वर्तमान मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि सुदेश तिर्की (याचिकाकर्ता) और 25-35 अन्य लोगों ने लाठी, बंदूक और पिस्तौल से लैस होकर हमला किया। शिकायतकर्ता के घर को खाली करवाने की धमकी दी। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 448, 307 और 386 के साथ-साथ शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 227 के तहत डिस्चार्ज की मांग करते हुए आवेदन दायर किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस फैसले से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने वर्तमान आपराधिक पुनर्विचार दायर किया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जांच के दौरान 14 गवाहों से पूछताछ की गई, लेकिन किसी ने भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि जांच लापरवाही से की गई, जो छह महीने से अधिक समय तक चली। अंततः याचिकाकर्ताओं के खिलाफ बिना किसी ठोस सबूत के आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया।

याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि एफआईआर में याचिकाकर्ताओं की पहचान और पते का पूरी तरह से खुलासा नहीं किया गया। जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं की पहचान या मामले में उनकी संलिप्तता को सत्यापित करने की पहल नहीं की। इसके अलावा, घटना स्थल से कोई आग्नेयास्त्र या खाली कारतूस जब्त नहीं किया गया।

जवाब में राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं पर बहुत गंभीर अपराध के लिए आरोप-पत्र दायर किया गया। आरोप-पत्र प्रस्तुत करने के बाद ही संज्ञान लिया गया। राज्य ने आगे तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए सभी बचावों को साक्ष्य के माध्यम से ट्रायल के दौरान प्रमाणित किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया। न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाए और अनावश्यक स्थगन के बिना इसमें तेजी लाए।

केस टाइटल: सुदेश राकेश तिर्की बनाम झारखंड राज्य

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