सर्वेक्षण आयुक्त को साक्ष्य एकत्र करने के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

Update: 2024-12-27 06:52 GMT

झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए फैसला सुनाया कि यह आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XXVI नियम 9 के तहत स्थानीय जांच की आवश्यकता को स्थापित करने में विफल रहा और इसमें पर्याप्त तर्क का अभाव था।

हाईकोर्ट ने सरस्वती बनाम विश्वनाथन [2002 (2) सीटीसी 199] में सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण का हवाला देते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आयुक्त की नियुक्ति का उद्देश्य साक्ष्य एकत्र करना नहीं है, बल्कि उन मामलों को स्पष्ट करना है, जो स्थानीय प्रकृति के हैं और जिन्हें केवल मौके पर स्थानीय जांच द्वारा ही किया जा सकता है।"

मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सुभाष चंद ने कहा,

"वादी की ओर से दायर आवेदन में जो आधार लिए गए हैं, वे सीपीसी के आदेश XXVI नियम 9 के दायरे में नहीं आते हैं। चूंकि मुकदमे की संपत्ति की पहचान और स्थान के संबंध में पक्षों के बीच कोई विवाद नहीं है, इसलिए जिस आदेश के तहत ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को अनुमति दी है। उसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है और यह याचिका अनुमति दिए जाने योग्य है।”

मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के अनुसार वादी द्वारा मुकदमा दायर किया गया, जिसके तहत उन्होंने भूमि के कुछ भूखंडों पर वादी के अधिकार टाइटल और हित की घोषणा करने कथित अनधिकृत कब्जेदारों के रूप में प्रतिवादियों से कब्जा वापस लेने और एक स्थायी निषेधाज्ञा प्राप्त करने की मांग की थी।

वादी ने सही मालिक होने का दावा किया और आरोप लगाया कि प्रतिवादियों ने उप-विभागीय अधिकारी (SDO), देवघर से विवादित भूमि के संबंध में धोखाधड़ी से विनिमय आदेश प्राप्त किया था।

कार्यवाही के दौरान अपने साक्ष्य को समाप्त करने के बाद वादी ने आदेश XXVI नियम 9 सीपीसी के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें विवादित भूखंडों का निरीक्षण और रिपोर्टिंग करने के लिए एक सर्वेक्षण प्लीडर आयुक्त की नियुक्ति की मांग की गई।

प्रतिवादियों ने इस आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि संपत्ति की पहचान या स्थान के बारे में कोई विवाद नहीं है, जिससे ऐसी नियुक्ति अनावश्यक हो जाती है।

ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिससे प्रतिवादियों ने हाईकोर्ट के समक्ष आदेश को चुनौती दी।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि पक्ष साक्ष्य जुटाने के लिए प्रावधान का उपयोग नहीं कर सकते, उन्होंने कहा,

“ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किया गया निष्कर्ष गलत है, क्योंकि प्लीडर कमिश्नर की नियुक्ति के लिए आवेदन में ही आवेदक ने यह उल्लेख नहीं किया कि वह किस उद्देश्य से सर्वेक्षण आयुक्त की रिपोर्ट मांगना चाहता है। ट्रायल कोर्ट का कोई निष्कर्ष नहीं है कि सर्वेक्षण आयुक्त की रिपोर्ट दोनों पक्षों के संबंधित दावों की सही और न्यायसंगत सराहना के लिए कैसे आवश्यक थी।”

याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया और दोहराया कि आयुक्तों की नियुक्ति में न्यायिक विवेकाधिकार को सीपीसी और न्यायिक मिसालों में निर्धारित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

केस टाइटल: कृष्णा मिस्त्री @ कृष्णा विश्वकर्मा बनाम बैद्यनाथ प्रसाद यादव एवं अन्य

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