केवल यह दावा करना कि संपत्ति अविभाजित है, सह-हिस्सेदार को अपने हिस्से पर निर्माण करने से नहीं रोकता: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

Update: 2024-03-26 07:44 GMT

सह-हिस्सेदारों के संपत्ति अधिकारों को स्पष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि केवल यह दावा करना कि संपत्ति अविभाजित है, सह-हिस्सेदार को अपने हिस्से पर निर्माण करने से नहीं रोकता।

जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने कहा कि संपत्ति में सह-हिस्सेदार द्वारा निर्माण करने का मतलब यह नहीं है कि यदि विभाजन पर निर्माण किया गया है तो उपरोक्त तथ्य के कारण दूसरा सह-हिस्सेदार उसमें अपना हित खो देगा।

यह मामला याचिकाकर्ता विजय सिंह द्वारा सुरजीत सिंह और अन्य के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दायर करने से शुरू हुआ। सिंह ने दावा किया कि सांबा जिले में जमीन का टुकड़ा उनके पास संयुक्त रूप से है, जिसका बंटवारा होना बाकी है।

उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी जमीन पर निर्माण कर रहे हैं और इससे जमीन की प्रकृति बदल जाएगी, जिससे जमीन के बंटवारे के बाद उन्हें नुकसान होगा।

प्रतिवादियों ने इस दावे का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि संपत्ति को विभाजित करने वाला समझौता पहले से ही मौजूद है और सिंह अपने हिस्से के कब्जे में हैं। उन्होंने मौखिक बंटवारे को स्वीकार करते हुए तहसीलदार की रिपोर्ट भी पेश की।

निचली अदालत ने यह मानते हुए कि संपत्ति का बंटवारा होना बाकी है, किसी भी निर्माण गतिविधि पर रोक लगाते हुए यथास्थिति आदेश जारी किया। प्रतिवादियों ने इस आदेश को अपीलीय अदालत में चुनौती दी, जिसने इसे संशोधित किया और उन्हें जमीन पर निर्माण करने की अनुमति दी। अपीलीय अदालत के आदेश से असंतुष्ट याचिकाकर्ता ने हाइकोर्ट के समक्ष तत्काल याचिका दायर की।

जस्टिस पुनीत गुप्ता ने यह स्वीकार करते हुए कि प्रत्येक सह-हिस्सेदार को संपूर्ण अविभाजित संपत्ति का आनंद लेने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि यह अधिकार दूसरों के नुकसान पर नहीं आना चाहिए।

पीठ ने दर्ज किया,

“प्रत्येक सह-हिस्सेदार को संपत्ति पर तब तक अधिकार है, जब तक कि उसका बंटवारा न हो जाए और वह उसका आनंद ले सकता है। जहां पक्षकारों के पास संपत्ति का स्थायी कब्जा है, वे इसका आनंद ले सकते हैं, लेकिन अन्य सह-हिस्सेदारों के नुकसान के बिना। सह-हिस्सेदार संपत्ति में अपना हिस्सा बेचकर खरीदार को कब्जा सौंप सकता है। हालांकि खरीदार यह दावा नहीं कर सकता कि वह संपत्ति के किसी खास हिस्से का हकदार है, क्योंकि संपत्ति का आनंद लेने का उसका अधिकार विभाजन पर निर्भर करेगा, जब यह होगा।”

पीठ ने आगे स्पष्ट किया कि सह-हिस्सेदार द्वारा निर्माण से भूमि में दूसरे के हित प्रभावित नहीं होते, खासकर अगर निर्मित हिस्सा विभाजन के दौरान दूसरे के हिस्से में आता है।

जस्टिस गुप्ता ने टिप्पणी की,

"मुकदमे में केवल यह दावा करना कि संपत्ति अविभाजित है और इसलिए प्रतिवादी भूमि के किसी भी हिस्से में निर्माण नहीं कर सकता, बिना किसी आधार के है। संपत्ति में एक सह-हिस्सेदार द्वारा निर्माण करने का मतलब यह नहीं है कि उपरोक्त तथ्य के कारण दूसरा सह-हिस्सेदार, उसमें अपना हित खो देगा, अगर विभाजन के बाद जिस संपत्ति पर निर्माण किया गया है, वह उसके हिस्से में आती है।"

उक्त विचारों के मद्देनजर न्यायालय ने अपीलीय न्यायालय के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें प्रतिवादियों को भूमि के अपने हिस्से पर निर्माण करने की अनुमति दी गई। साथ ही यह भी कहा गया कि उनके कब्जे से परे कोई निर्माण नहीं किया जाएगा और मुकदमे के लंबित रहने के दौरान भूमि के किसी भी हिस्से का निपटान नहीं किया जाएगा।

केस टाइटल- विजय सिंह बनाम सुरजीत सिंह

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