पासपोर्ट पाना संवैधानिक अधिकार, नागरिकों को विदेश यात्रा के लिए 'ज़रूरत' साबित करने की ज़रूरत नहीं: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-11-28 04:19 GMT

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि पासपोर्ट रखने का अधिकार सीधे तौर पर एक नागरिक के निजी आज़ादी के बुनियादी अधिकार से आता है, जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को पासपोर्ट या नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) पाने के लिए विदेश यात्रा की कोई ज़रूरी या अर्जेंट ज़रूरत दिखाने की ज़रूरत नहीं है।

जस्टिस संजय धर ने यह ज़रूरी बात एंटीकरप्शन, अनंतनाग के स्पेशल जज का आदेश रद्द करते हुए कही, जिसमें उन्होंने NOC जारी करने की एप्लीकेशन को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि एप्लीकेंट ने विदेश यात्रा की कोई अर्जेंट ज़रूरत नहीं दिखाई।

जस्टिस धर ने इस आज़ादी के संवैधानिक आधार पर ज़ोर देते हुए कहा,

“पासपोर्ट रखने का अधिकार एक नागरिक का एक ज़रूरी संवैधानिक अधिकार है। इसलिए पासपोर्ट या NOC पाने के लिए किसी नागरिक को कोर्ट या पासपोर्ट अथॉरिटी के सामने यह दिखाने की ज़रूरत नहीं है कि उसे विदेश यात्रा की कोई बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। क्योंकि एक नागरिक को पासपोर्ट रखने का अधिकार है, इसलिए विदेश यात्रा की ज़रूरत के बिना भी, वह पासपोर्ट रखने का हकदार है।”

यह मामला ज़हूर अहमद पहलवान नाम के एक व्यक्ति की याचिका से सामने आया, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी। इसमें उन्हें पांच साल का पासपोर्ट लेने के लिए NOC देने से मना कर दिया गया था। पहलवान IPC और प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट के तहत अपराधों से जुड़ी FIR में ट्रायल का सामना कर रहे हैं। उन्होंने पहले हज यात्रा पर जाने के लिए NOC के लिए अप्लाई किया था।

24.02.2025 को ट्रायल कोर्ट ने उसे एक साल के लिए वैलिड लिमिटेड NOC दी थी, जिसके तहत एक साल का पासपोर्ट जारी किया गया। तीर्थयात्रा पूरी होने के बाद वह फुल-टर्म पासपोर्ट रिन्यूअल के लिए नए NOC की मांग करते हुए ट्रायल कोर्ट गया।

हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने एप्लीकेशन को “प्रीमैच्योर” बताते हुए खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि मौजूदा NOC 23.02.2026 तक वैलिड है। आगे यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने बिजनेस के मकसद से विदेश यात्रा करने की ज़रूरत दिखाने वाले कोई डॉक्यूमेंट नहीं दिखाए।

जस्टिस धर ने दोनों आधारों को “दिखावटी” और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ पाया। मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि विदेश यात्रा का अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अभिन्न हिस्सा है और कानून के अनुसार ही किसी व्यक्ति को इससे वंचित किया जा सकता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि चूंकि विदेश यात्रा के लिए पासपोर्ट ज़रूरी है, इसलिए पासपोर्ट रखने का अधिकार संवैधानिक महत्व रखता है।

कोर्ट ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने विदेश यात्रा की ज़रूरत के सबूत पर जोर देकर खुद को गलत दिशा दी। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी ज़रूरत का कानून में कोई आधार नहीं है, क्योंकि NOC मांगने वाले आरोपी को बिजनेस के कारण या यात्रा की ज़रूरतों को साबित करने की ज़रूरत नहीं है।

साथ ही कोर्ट ने साफ़ किया कि क्रिमिनल कोर्ट का रोल लिमिटेड है, क्योंकि उसे सिर्फ़ यह देखना है कि NOC देने से आरोपी के ट्रायल के लिए अवेलेबिलिटी खतरे में तो नहीं पड़ेगी। कोई भी बाहरी वजह फ़ैसले पर असर नहीं डालनी चाहिए। जैसा कि जस्टिस धर ने कहा, एकमात्र ज़रूरी टेस्ट यह है कि अगर आरोपी को विदेश जाने की इजाज़त दी जाती है तो क्या वह अभी भी केस का सामना करने के लिए अवेलेबल रहेगा।

बेंच ने ज़ोर देकर कहा,

“NOC देने की एप्लीकेशन पर विचार करते समय एक क्रिमिनल कोर्ट को सिर्फ़ इस सवाल पर ध्यान देना होता है कि अगर आरोपी को विदेश जाने की इजाज़त दी जाती है तो क्या वह ट्रायल का सामना करने के लिए अवेलेबल रहेगा। पासपोर्ट/ट्रैवल डॉक्यूमेंट लेने की इच्छा रखने वाले आरोपी के पक्ष में NOC देने की एप्लीकेशन पर विचार करते समय किसी और वजह से क्रिमिनल कोर्ट के फ़ैसले पर असर नहीं पड़ना चाहिए।”

यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता की मौजूदा पासपोर्ट वैलिडिटी 2026 की शुरुआत में खत्म होने वाली थी, कोर्ट ने माना कि वह रिन्यूअल की मांग करने का हकदार है। पहले के NOC की बची हुई वैलिडिटी ऐसी रिक्वेस्ट पर रोक नहीं लगाती।

हाईकोर्ट ने विवादित ऑर्डर रद्द करते हुए मामला स्पेशल जज को वापस भेजा और ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया कि वह फैसले में बताए गए कानूनी सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए एप्लीकेशन पर फिर से विचार करे।

Case Title: Zahoor Ahmad Pahalwan Vs UT Of J&K

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