DV Act| S. 468, CrPC के तहत परिसीमा सुरक्षा आदेश की मांगने पर लागू नहीं होतीं, केवल धारा 31 के तहत दंडात्मक कार्यवाही पर लागू होती हैं: J&K हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (अब BNSS, 2023 की धारा 514) की धारा 468 के तहत परिसीमा का प्रतिबंध, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (घरेलू हिंसा अधिनियम) की धारा 12 और 23 के तहत दायर आवेदनों पर लागू नहीं होता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत ये धाराएं पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा आदेश, निवास आदेश आदि या अंतरिम या एकपक्षीय राहत जैसी राहत का दावा करने का अधिकार देती हैं। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि परिसीमा प्रावधान केवल घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 31 के तहत सुरक्षा आदेशों के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही पर लागू होते हैं।
जस्टिस एमए चौधरी की पीठ ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत एक आवेदन की विचारणीयता को चुनौती देने वाली याचिका को समय-सीमा के आधार पर खारिज करते हुए कहा,
“याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत तर्क में अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन दाखिल करने को शिकायत दर्ज करने या अभियोजन शुरू करने के समान ही गलत बताया गया है... समय-सीमा केवल अधिनियम की धारा 31 के तहत दंडात्मक कार्यवाही पर लागू होगी... हालांकि, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 और 23 सहित अन्य प्रावधानों के तहत आवेदन को बनाए रखने पर कोई रोक नहीं हो सकती।”
न्यायालय ने कामाची बनाम लक्ष्मी नारायण और इंद्रजीत सिंह ग्रेवाल बनाम पंजाब राज्य के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 12 के तहत कार्यवाही CrPC की धारा 2(डी) के अर्थ में आपराधिक शिकायत नहीं है और धारा 468 CrPC के तहत सीमा केवल उन अपराधों पर लागू होती है जो सुरक्षा आदेशों के उल्लंघन के लिए धारा 31 के तहत दंडनीय हैं।
निर्णय में सौरभ कुमार त्रिपाठी बनाम विधि रावल, 2025 में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय का भी उल्लेख किया गया, जिसमें यह माना गया था कि यद्यपि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही मुख्यतः दीवानी प्रकृति की होती है, फिर भी ऐसी कार्यवाही को चुनौती देने वाली CrPC की धारा 482 के तहत याचिका विचारणीय है, लेकिन उच्च न्यायालय को सावधानी बरतनी चाहिए और केवल घोर अवैधता या अन्याय के मामलों में ही हस्तक्षेप करना चाहिए।
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई समय-सीमा की दलील गलत थी, न्यायालय ने याचिका को संबंधित आवेदनों के साथ खारिज कर दिया और निचली अदालत को मामले में शीघ्र कार्यवाही करने का निर्देश दिया।