अवमानना कार्यवाही में अदालत आदेश की सीमाओं से आगे नहीं जा सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2025-09-15 10:25 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अवमानना कार्यवाही में अदालत उस आदेश की सीमाओं से बाहर नहीं जा सकती, जिसकी अवहेलना का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि केवल वही निर्देश जिनका उल्लेख आदेश या निर्णय में स्पष्ट रूप से किया गया हो, या जो स्वयं स्पष्ट हों, उन्हीं को ध्यान में रखा जा सकता है।

जस्टिस शहजाद अज़ीम और जस्टिस सिंदु शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

“अवमानना कानून के क्षेत्राधिकार में काम करते समय अदालत को पहले से व्यक्त की गई बातों से आगे बढ़कर कोई पूरक आदेश या निर्देश जारी नहीं करना चाहिए। कोर्ट को उस आदेश की चारदीवारी से बाहर नहीं जाना चाहिए, जिसकी अवहेलना का आरोप है।”

पूरा मामला

यह फैसला लेटर्स पेटेंट अपील में आया, जिसमें 76 वर्षीय सैयद मुज़फ़्फर हुसैन रिटायर डिपो मैनेजर (जम्मू-कश्मीर राज्य परिवहन निगम) ने सिंगल जज के आदेश को चुनौती दी थी। 18 मई, 2023 के आदेश में उनकी पूर्व प्रभाव से पदोन्नति की मांग खारिज कर दी गई। हालांकि उनके भविष्य निधि के बकाया जारी करने के निर्देश दिए गए।

हुसैन पर सेवा के दौरान निगम के धन के गबन का आरोप साबित हुआ। दया याचिका पर निगम ने मानवीय आधार पर उनके निलंबन काल को ड्यूटी माना ताकि उनकी पेंशन प्रभावित न हो। यह समझौता दोनों पक्षकारों की सहमति से 5 मई, 2008 के आदेश में दर्ज किया गया।

बाद में पालन में देरी होने पर हुसैन ने अवमानना कार्यवाही शुरू की। 2010 में अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने परिणामी लाभ की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह केवल वेतन और अवकाश तक सीमित नहीं है बल्कि अन्य लाभ भी इसमें शामिल हो सकते हैं। इसी आधार पर हुसैन ने बाद में पदोन्नति का दावा किया।

डिवीजन बेंच ने कहा कि 2008 का आदेश केवल सेवानिवृत्ति लाभों तक सीमित था और उसे व्यापक अर्थ में नहीं पढ़ा जा सकता।

कोर्ट ने कहा,

“जब 5 मई, 2008 का आदेश स्पष्ट रूप से केवल समिति की सिफारिशों से मिलने वाले लाभों तक सीमित था, तब अवमानना कार्यवाही में 'परिणामी लाभ' की व्यापक व्याख्या करके उसके दायरे का विस्तार करना अधिकार क्षेत्र से परे था।”

बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले सुधीर वसु देव बनाम एम. जॉर्ज रविशेकरन (AIR 2014 SC 950) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि अवमानना कार्यवाही में अदालत आदेश की चारदीवारी से बाहर नहीं जा सकती और केवल वही निर्देश माने जाएंगे जो स्पष्ट रूप से आदेश में दर्ज हैं।

हाईकोर्ट ने पाया कि अवमानना आदेशों (2010 और 2015) में आदेश की सीमा से बाहर जाकर व्याख्या की गई और अपीलकर्ता उससे अनुचित लाभ लेने की कोशिश कर रहे थे। कोर्ट ने कहा कि हुसैन केवल रिटायरमेंट उपरांत आर्थिक लाभ पाने के हकदार हैं, न कि पदोन्नति या अन्य सेवा लाभों के।

इस आधार पर डिवीजन बेंच ने सिंगल जज का आदेश बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।

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