मनी लॉन्ड्रिंग के कारण नुकसान झेलने वाले वास्तविक व्यक्ति कुर्क की गई संपत्ति को वापस पाने के लिए स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Update: 2024-06-24 04:55 GMT

मनी लॉन्ड्रिंग के अपराधों के कारण सद्भावनापूर्वक कार्य करने वाले व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि वे कुर्क की गई संपत्तियों को वापस पाने के लिए स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के हकदार हैं।

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA Act) की धारा 8 की उपधारा 8 का हवाला देते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,

“कोई व्यक्ति, जिसने सद्भावनापूर्वक कार्य किया है और PMLA अपराध के परिणामस्वरूप उसे परिमाणात्मक नुकसान हुआ, सभी उचित सावधानियां बरतने के बावजूद और अन्यथा धन शोधन में शामिल नहीं है, वह 2002 के एक्ट की धारा 8 की उपधारा (8) के दूसरे प्रावधान को लागू करने का हकदार दावेदार होगा।”

मामले की पृष्ठभूमि

ये टिप्पणियां हम्हामा, एयरपोर्ट रोड श्रीनगर में "पाम स्प्रिंग्स" नामक रियल एस्टेट परियोजना से संबंधित मामले में आईं, जिसे लिमिटेड शेयर यूनिट के रूप में रजिस्टर्ड कंपनी द्वारा शुरू किया गया। याचिकाकर्ताओं ने सक्षम अधिकारियों से आवश्यक अनुमोदन और राजस्व विभाग से एनओसी और नगर निगम से भवन निर्माण की अनुमति सहित इसकी वैधता की पुष्टि करने के बाद इस परियोजना में निवेश किया।

इन सावधानियों के बावजूद, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने परियोजना से जुड़ी संपत्तियों को जब्त कर लिया। एजेंसी ने यह दावा किया कि उन्हें आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड (ACCSL) घोटाले से प्राप्त अपराध की आय का उपयोग करके खरीदा गया था।

प्रतिवादियों की यह कार्रवाई जयपुर में दर्ज एफआईआर द्वारा शुरू की गई जांच पर आधारित थी। इसमें आरोप लगाया गया कि ACCSL ने निवेशकों के धन को पाम स्प्रिंग्स परियोजना सहित विभिन्न योजनाओं और संपत्तियों में डायवर्ट किया।

सीनियर एडवोकेट जहांगीर इकबाल गनई के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने अनंतिम कुर्की और इसके बाद की पुष्टि को कई आधारों पर चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को सुने बिना कुर्की आदेश पारित किए गए, जो सीधे प्रभावित हैं।

आगे यह भी कहा गया कि जब्त की गई संपत्ति का मूल्य कथित अपराध की आय से अधिक है, जिससे याचिकाकर्ताओं पर अनुचित प्रभाव पड़ा। याचिकाकर्ताओं ने आग्रह किया कि वास्तविक खरीदार के रूप में मनी-लॉन्ड्रिंग गतिविधियों में शामिल हुए बिना ही उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया गया।

प्रवर्तन निदेशालय (प्रतिवादी) के लिए ताहिर मजीद शम्सी ने जब्ती का बचाव करते हुए कहा कि अपराध की आय से अर्जित संपत्तियों के निपटान को रोकने के लिए यह आवश्यक उपाय है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अधिनियम के तहत स्थापित विशेष न्यायालयों के माध्यम से निवारण की मांग कर सकते हैं।

न्यायालय की टिप्पणियां

प्रतिद्वंद्वी दलीलों पर विचार करने के बाद जस्टिस कुमार ने "दावेदार" शब्द की व्याख्या करने के लिए धन शोधन निवारण (संपत्ति की बहाली) नियम, 2016 का संदर्भ दिया और कहा,

"याचिकाकर्ता अपने दावे के अनुसार, दावेदारों की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार, जयपुर में PMLA Act के तहत स्पेशल कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के उनके अधिकार के भीतर हैं, जिसने 31-03-2021 को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर अभियोजन शिकायत संख्या 06/2021 का संज्ञान लिया है।"

अधिनियम की धारा 26 की ओर इशारा करते हुए, जो अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष न्यायाधिकरण के आदेश से अपील करने का प्रावधान करती है, न्यायालय ने स्पष्ट किया,

"न केवल अभियुक्त या कोई भी व्यक्ति जो अपराध की आय से जुटाई गई संपत्ति पर कब्जा करता हुआ पाया जाता है, बल्कि न्यायाधिकरण के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष ऐसे आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार रखता है। याचिकाकर्ता निस्संदेह पीड़ित व्यक्ति हैं। इसलिए उन्हें अधिनियम की धारा 26 का सहारा लेने तथा न्याय निर्णय प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध उपाय प्राप्त करने का पूरा अधिकार है।''

यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं को अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत न्याय निर्णय प्राधिकरण द्वारा की गई कार्यवाही के बारे में कोई जानकारी नहीं रही होगी, न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता अभी भी विशेष न्यायालय में जाने के लिए स्वतंत्र हैं, जो यदि उचित समझे तो मामले की सुनवाई के दौरान निर्धारित तरीके से कुर्क की गई संपत्ति की बहाली के उद्देश्य से दावेदार के दावे पर विचार कर सकता है।

जस्टिस कुमार ने कहा,

''इस प्रकार यह पूरी तरह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं का उपाय जयपुर में धन शोधन निवारण अधिनियम के अंतर्गत विशेष न्यायालय के समक्ष है, जिसने मामले का संज्ञान लिया तथा मामले को अपने नियंत्रण में ले लिया। याचिकाकर्ताओं ने जानबूझकर उपरोक्त वैधानिक उपाय को छोड़ दिया, जो समान रूप से प्रभावी है तथा इस न्यायालय के असाधारण क्षेत्राधिकार का सहारा लेते हुए इस न्यायालय में पहुंचे हैं।''

इन टिप्पणियों के आलोक में न्यायालय ने याचिका खारिज की और याचिकाकर्ताओं को अधिनियम के तहत प्रदान किए गए वैकल्पिक उपायों का लाभ उठाने का विकल्प खुला छोड़ दिया, जो न केवल वैधानिक हैं, बल्कि समान रूप से प्रभावी भी हैं।

केस टाइटल: डॉ. जुनैद बनाम भारत संघ

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