न्याय कोई औपचारिक रस्म नहीं: नाबालिग लड़की की मौत की लापरवाह जांच पर जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट सख्त, CBI जांच के आदेश

Update: 2025-12-17 07:35 GMT

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने 13 वर्षीय नाबालिग लड़की की संदिग्ध मौत के मामले में पुलिस जांच के तरीके पर गहरी नाराज़गी जताते हुए मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने का आदेश दिया। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि न्याय को केवल औपचारिक प्रक्रिया बनाकर नहीं छोड़ा जा सकता। इस तरह की संवेदनशील घटनाओं में देरी व लापरवाही से न केवल अहम सबूत नष्ट होते हैं बल्कि पीड़ित परिवार को भी न्याय से वंचित किया जाता है।

यह आदेश जस्टिस राहुल भारती ने गांव जंडियाल, जम्मू निवासी मुख्तियार अली द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिकाकर्ता की 13 वर्षीय बेटी 15 अगस्त, 2024 को उनके घर के पास एक पेड़ से लटकी हुई पाई गई थी। पिता का आरोप था कि घटना की गंभीरता के बावजूद पुलिस ने मौत के कारणों की कोई ठोस और प्रभावी जांच नहीं की और न ही परिवार को जांच की स्थिति के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी दी गई।

याचिका में मुख्तियार अली ने आशंका जताई कि उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म और हत्या की गई हो सकती है। उन्होंने मामले की निष्पक्ष जांच के लिए इसे क्राइम ब्रांच को यह कहते हुए सौंपने की मांग की कि सीनियर पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) जम्मू और थाना घरोटा के एसएचओ सच्चाई तक पहुंचने में पूरी तरह विफल रहे हैं।

मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने पहली ही सुनवाई में एसएसपी जम्मू को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि रिपोर्ट दाखिल न होने की स्थिति में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा। हालांकि, एसडीपीओ अखनूर द्वारा दाखिल पहली स्टेटस रिपोर्ट ने अदालत को बेहद निराश किया।

जस्टिस भारती ने टिप्पणी की कि रिपोर्ट की शुरुआत ही इस अंदाज़ में की गई थी मानो याचिका को खारिज किया जाना चाहिए जैसे कोई पुलिस अधिकारी अदालत को निर्देश दे रहा हो।

अदालत इस बात से भी व्यथित दिखी कि रिपोर्ट में नाबालिग पीड़िता की पहचान उजागर की गई और जांच की खामियों को स्पष्ट करने के बजाय बोझ याचिकाकर्ता पर डाल दिया गया। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया कि पुलिस ने अब तक कौन-कौन से ठोस जांच कदम उठाए हैं। कोर्ट ने विशेष रूप से यह गंभीर टिप्पणी की कि इतने संवेदनशील मामले की जांच परिवीक्षाधीन सब-इंस्पेक्टर को सौंप दी गई, जो यह दर्शाता है कि पुलिस ने एक नाबालिग लड़की की मौत को एक सामान्य मामला समझ लिया।

अदालत ने यह भी नोट किया कि स्टेटस रिपोर्ट में कहीं यह उल्लेख नहीं था कि क्या कभी किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत इनक्वेस्ट कार्यवाही के लिए शामिल किया गया या नहीं।

जस्टिस भारती ने कहा कि दो महीने बीत जाने के बावजूद अदालत के समक्ष केवल औपचारिक और खोखली रिपोर्टें पेश की गईं जिनमें कोई ठोस तथ्य नहीं थे।

अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता अदालत का दरवाजा न खटखटाता तो उसे यह भी नहीं पता चलता कि जांच किस स्थिति में है, क्योंकि स्वयं अदालत को भी बेहद सतही जानकारी दी जा रही थी। बाद में दाखिल की गई दूसरी स्टेटस रिपोर्ट भी पहली की लगभग हू-ब-हू प्रति पाई गई, जिससे अदालत की चिंता और बढ़ गई।

मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार 16 अगस्त, 2024 को किए गए पोस्टमार्टम में गले पर एंटेमॉर्टम लिगेचर मार्क्स पाए गए। फॉरेंसिक जांच में जहर और यौन उत्पीड़न की पुष्टि नहीं हुई और मेडिकल बोर्ड ने मौत का कारण फांसी से हुई दम घुटने को बताया। हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल मेडिकल निष्कर्षों के आधार पर मामले की गहराई से जांच से बचा नहीं जा सकता।

एसएसपी जम्मू द्वारा गठित विशेष जांच दल (SIT) भी अदालत का विश्वास नहीं जीत सका, क्योंकि उसमें वही अधिकारी शामिल थे, जिनकी कार्यप्रणाली पहले ही न्यायिक आलोचना के घेरे में आ चुकी थी।

इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए जस्टिस राहुल भारती ने कहा कि यदि जांच जिला पुलिस के पास ही रही तो इससे केवल तथ्यों में मिलावट और सबूतों के नष्ट होने का खतरा बढ़ेगा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले की जांच CBI के अलावा किसी और के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती।

अदालत ने CBI जम्मू को जांच अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया और SIT के प्रभारी/एसडीपीओ अखनूर तथा एसपी, CBI जम्मू को संपूर्ण जांच रिकॉर्ड के साथ अदालत में उपस्थित होने का आदेश दिया।

मामले की अगली सुनवाई 18 दिसंबर, 2025 को तय की गई।

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