उप-किरायेदार उप-किराएदारी के आधार पर बेदखली याचिका में आवश्यक पक्ष नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-09-30 04:21 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि उप-किरायेदार मकान मालिक या हित-पूर्ववर्ती के अधीन प्रत्यक्ष किरायेदारी स्थापित करने में विफल रहता है तो किरायेदार के विरुद्ध पारित बेदखली आदेश उस पर भी बाध्यकारी होगा।

जस्टिस सत्येन वैद्य ने टिप्पणी की:

"उप-किरायेदार उप-किराएदारी के आधार पर बेदखली याचिका में आवश्यक पक्ष नहीं है। हालांकि, चूंकि इस मामले में मकान मालिक ने स्वयं उप-किरायेदार को पक्षकार बनाया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उप-किरायेदार पीड़ित पक्ष नहीं है।"

यह विवाद तब उत्पन्न हुआ, जब मकान मालिक ने इस आधार पर किरायेदार को बेदखल करने की मांग की कि किरायेदार ने परिसर को याचिकाकर्ता को अवैध रूप से उप-किराएदारी पर दे दिया था।

यद्यपि किराया नियंत्रक ने मकान मालिक की व्यक्तिगत सद्भावना की आवश्यकता की दलील खारिज की थी। फिर भी उप-किराएदारी के आधार पर बेदखली याचिका स्वीकार की गई। इस निर्णय को अपीलीय प्राधिकारी ने बरकरार रखा।

इसके बाद इस मामले में याचिकाकर्ता उप-किरायेदार ने हिमाचल शहरी किराया नियंत्रण अधिनियम, 1987 की धारा 24(5) के तहत पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसमें अपीलीय प्राधिकारी, हमीरपुर के उस आदेश को चुनौती दी गई, जिसके तहत किराया नियंत्रक द्वारा पारित बेदखली आदेश को बरकरार रखा गया था।

उप-किरायेदार ने तर्क दिया कि वह पिछले मालिक के अधीन प्रत्यक्ष किरायेदार है। इसलिए वह मकान मालिक के अधीन प्रत्यक्ष किरायेदार बन गया और पिछले मालिक को किराया दे रहा था।

जवाब में मकान मालिक ने तर्क दिया कि किरायेदार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि किराया अधिनियम की धारा 24(5) के तहत पुनर्विचार याचिका पीड़ित पक्ष द्वारा दायर की जा सकती है और चूंकि किरायेदार ने फैसले को स्वीकार कर लिया है, इसलिए उप-किरायेदार को पीड़ित पक्ष नहीं माना जा सकता।

मकान मालिक के तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि चूंकि उसने स्वयं उप-किरायेदार को एक पक्ष के रूप में पक्षकार बनाया, इसलिए उसे पुनर्विचार याचिका दायर करने का अधिकार है।

अदालत ने उप-किरायेदार द्वारा कथित किराये की रसीदों पर भरोसा करने को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मूल रसीदें कभी प्रस्तुत नहीं की गईं। विभिन्न वर्षों की रसीदों पर एक जैसी तारीखें अंकित हैं। अदालत ने माना कि सामग्री साबित किए बिना केवल हस्ताक्षर साबित करना पर्याप्त नहीं है।

इस प्रकार, अदालत ने कहा,

"चूंकि उप-किरायेदार मकान मालिक के अधीन अपनी किरायेदारी को सीधे साबित करने में विफल रहा है, इसलिए किरायेदार के खिलाफ बेदखली का आदेश उसे बाध्य करेगा।"

Case Name: Ashok Kumar v/s Dusha Kapil & another

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