भूमि क्षेत्रफल में कमी स्वामित्व में दोष नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भूस्वामियों का भुगतान रोकने संबंधी आदेश रद्द किया
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा जारी पत्र रद्द किया, जिसमें भूस्वामियों को इस आधार पर भुगतान रोक दिया गया था कि भूमि क्षेत्रफल में कमी को सेल डीड के तहत स्वामित्व में दोष नहीं माना जा सकता।
जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा:
"इस कोर्ट का सुविचारित मत है कि भूमि के स्वामित्व में दोष को याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रतिवादी को बेची गई कुल भूमि में कथित कमी के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता।"
2017 में याचिकाकर्ता सचिन श्रीधर ने जिला सिरमौर में हिमाचल प्रदेश आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण को 570 बीघा भूमि बेची थी। इसके बाद दोनों पक्षकारों के बीच सेल डीड निष्पादित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बिक्री मूल्य का एक बड़ा हिस्सा उन्हें नहीं दिया गया, क्योंकि हिमुडा ने दावा किया था कि सौंपे गए क्षेत्रफल में 60-70 बीघा की कमी थी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि तथाकथित कथित कमी को भूमि के स्वामित्व में दोष नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने सीमांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और पूरी भूमि का कब्ज़ा विधिवत रूप से हिमुडा को सौंप दिया गया।
जवाब में हिमुडा ने तर्क दिया कि भूमि का पूर्ण सीमांकन सुनिश्चित करना याचिकाकर्ताओं का कर्तव्य था। हालांकि, याचिकाकर्ताओं द्वारा ऐसा नहीं किया गया, जिससे सेल डीड के खंड 4 और 5 का उल्लंघन हुआ, इसलिए बोर्ड द्वारा शेष भुगतान रोककर सही किया गया।
हाईकोर्ट ने दोहराया कि हिमुडा ने सेल डीड के खंड 4 और 5 की गलत व्याख्या की, क्योंकि ये खंड उन स्थितियों को कवर करने के लिए थे जहां स्वामित्व स्वयं दोषपूर्ण था, न कि माप में भिन्नता वाले मामलों को।
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कि हिमुडा ने स्वयं बिक्री के समय भूमि के पूर्ण कब्जे को स्वीकार किया था। साथ ही सेल डीड के क्लॉज 1 में स्पष्ट रूप से हिमुडा को भूमि के खाली और शांतिपूर्ण कब्जे का हस्तांतरण दर्ज किया गया था।
इस प्रकार, कोर्ट ने हिमुडा को भूस्वामियों को समस्त भुगतान जारी करने का निर्देश दिया।
Case Name: Sachin Shridhar & others v/s Himachal Pradesh Housing & Urban Development Authority