यौन उत्पीड़न पीड़ित बच्चे के पास परिवार के सम्मान और भविष्य की रक्षा के नाम पर निरस्तीकरण याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक तंत्र को सक्रिय करने के बाद शिकायतकर्ता की भूमिका समाप्त हो जाती है और शिकायतकर्ता या पीड़ित बच्चे के पास POCSO मामले को निरस्त करने के लिए याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है, वह भी परिवार के सम्मान की रक्षा के नाम पर।
जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने आगे कहा कि निरस्तीकरण POCSO Act की विधायी मंशा के भी विरुद्ध है।
पीठ ने आगे कहा,
"चूंकि, अपराध समाज के विरुद्ध है और यदि इस प्रकार के मामलों को याचिका में लिए गए आधारों के आधार पर निरस्त किया जाता है तो इससे ऐसे अपराध करने वाले अन्य आरोपियों को मामले को निपटाने के लिए संविधानेतर तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा, जैसे कि विश्वासपात्र संबंधों के माध्यम से गवाह को प्रभावित करना, धन-बल का उपयोग करना या पीड़ित/शिकायतकर्ता को धमकाना और परिवार के सम्मान के नाम पर मामले को निपटाना।"
पीठ ने यौन अपराध पीड़िता के पिता द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें उन्होंने प्रतिवादी नंबर 2 (आरोपी) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 354-ए और 506 के साथ-साथ POCSO Act की धारा 8 के तहत दर्ज की गई FIR रद्द करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर FIR रद्द करने की मांग की कि उसने आरोपी के साथ समझौता कर लिया है।
इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि FIR उनकी बेटी की आगामी सगाई समारोह में बाधा उत्पन्न कर रही है, क्योंकि भावी दूल्हे के परिवार ने एक पूर्व शर्त रखी थी कि लड़की के संबंध में कोई मुकदमा लंबित नहीं होना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि आपराधिक तंत्र के सक्रिय होने के बाद शिकायतकर्ता की भूमिका समाप्त हो जाती है। इस प्रकार, पीड़िता या शिकायतकर्ता की ओर से गंभीर अपराध रद्द करने की याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।
पीठ ने टिप्पणी की,
"इस न्यायालय का मानना है कि याचिकाकर्ता, जो कि शिकायतकर्ता/पीड़ित बच्चे का पिता है, उसके पास वर्तमान याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है, जिसमें मुख्य रूप से परिवार के सम्मान को बचाने के आधार पर संबंधित FIR रद्द करने की मांग की गई। परिवार के सम्मान के नाम पर वर्तमान मामले में किए गए जघन्य अपराध रद्द नहीं किया जा सकता या उसे दबाया नहीं जा सकता।"
इस संबंध में पीठ ने रामजी लाल बैरवा एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य 2024 लाइव लॉ (एससी) 865 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि यौन उत्पीड़न से संबंधित मामलों को समझौता-आधारित रद्द करने के योग्य निजी मामलों के रूप में नहीं माना जा सकता।
परिणामस्वरूप, न्यायालय ने पाया कि यदि रद्द करने की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया जाता है तो यह अभियुक्त को कानूनी दंड के बिना जाने देने के बराबर होगा, यदि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ मामले को उचित संदेह से परे साबित कर सकता है।
इसके मद्देनजर, याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल- एक्स बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य