एक ही दुर्घटना के लिए कई दावे कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के तहत स्वीकार्य नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-12-30 04:55 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस सुशील कुकरेजा की एकल पीठ ने कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के तहत आश्रित माँ द्वारा दायर अपील खारिज की। इसने माना कि एक ही दुर्घटना के लिए कई दावा याचिकाएं स्वीकार्य नहीं हैं। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जब मृतक कर्मचारी की विधवा और बेटी ने 2015 में ही अपना दावा निपटा लिया था तो 2023 में माँ द्वारा बाद में दायर की गई याचिका को अनुमति नहीं दी जा सकती।

मामले की पृष्ठभूमि

राजू नामक एक ट्रक चालक की 2013 में चंडीगढ़ से ठियोग तक ईंटें ले जाते समय सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उसकी माँ शिबी देवी ने अपने बेटे की कमाई पर निर्भरता का आरोप लगाते हुए दावा दायर किया। नियोक्ता ने राजू के रोजगार, उसके वैध ड्राइविंग लाइसेंस और उसके वेतन की पुष्टि की। हालांकि, बीमाकर्ता टाटा एआईजी ने तर्क दिया कि दावा वर्जित है, क्योंकि राजू की विधवा और बेटी ने 2015 में ही कर्मचारी मुआवज़ा आयुक्त के समक्ष समझौते के माध्यम से इस दावे का निपटारा कर लिया था।

हालांकि, 2023 में श्रमिक मुआवजा आयुक्त ने शिबी देवी को ₹2,34,053 का मुआवजा दिया और नियोक्ता पर ₹1,05,324 का जुर्माना लगाया (2023 का अवार्ड)। यह इस आधार पर दिया गया कि वह मृतक की आश्रित थी और उसने दावा किया कि उसे पहले के समझौते से बाहर रखा गया। इस निर्णय से व्यथित होकर बीमाकर्ता, नियोक्ता और स्वयं शिबी देवी (बढ़ोतरी की मांग करते हुए) ने अपील दायर की।

तर्क

टाटा एआईजी और नियोक्ता ने तर्क दिया कि माँ की याचिका स्वीकार्य नहीं थी, क्योंकि विधवा और बेटी ने 2015 में ही दावे का निपटारा कर दिया था। उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक दुर्घटना के लिए केवल एक ही दावा स्वीकार्य है। पहले के अवार्ड ने अंतिम रूप प्राप्त कर लिया है। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि सभी आश्रितों को पहली याचिका में ही पक्षकार बनाया जाना चाहिए था।

शिबी देवी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि वह अपने दिवंगत पति की कमाई पर पूरी तरह से निर्भर थी। कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के तहत आश्रित होने के बावजूद, उसने तर्क दिया कि उसे 2015 के दावे से बाहर रखा गया। उसने दावा किया कि बीमाकर्ता निपटान के समय आश्रितों को सत्यापित करने में विफल रहा। उसने जोर देकर कहा कि इस विफलता ने पूरे 2015 के निपटान को ही अमान्य कर दिया।

अदालत का तर्क

सबसे पहले, अदालत ने नोट किया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 167 और कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम की धारा 22 के तहत कार्रवाई के कारण केवल एक ही दावा बनाए रखने योग्य है। इसने माना कि सभी आश्रितों को प्रारंभिक याचिका में शामिल किया जाना चाहिए। इसने स्पष्ट किया कि मोटर वाहन अधिनियम या कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के तहत दिया गया मुआवज़ा मृतक के सभी कानूनी प्रतिनिधियों को देय राशि का प्रतिनिधित्व करता है।

इसके अलावा, अदालत ने समझाया कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 (1) के प्रावधान में यह अनिवार्य है कि सभी कानूनी प्रतिनिधियों के लाभ के लिए मुआवज़े के लिए आवेदन दायर किया जाना चाहिए। इसने फैसला सुनाया कि यदि कुछ आश्रित प्रारंभिक याचिका का हिस्सा नहीं हैं तो उन्हें प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।

अंत में न्यायालय ने पाया कि शिबी देवी ने न तो पहले की कार्यवाही में पक्षकार बनने की मांग की और न ही उन्होंने 2015 के पुरस्कार को चुनौती दी। इसने माना कि उस समय ऐसा न करने के कारण उन्हें वर्षों बाद अलग से दावा दायर करने से रोक दिया गया। चूंकि 2015 के समझौते में सभी आश्रितों को सामूहिक रूप से शामिल किया गया, इसलिए न्यायालय ने फैसला सुनाया कि 2023 में उनकी बाद की याचिका विचारणीय नहीं थी। इस प्रकार, इसने बीमाकर्ता और नियोक्ता द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया और 2023 का अवार्ड रद्द कर दिया।

केस टाइटल: टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम शिबी देवी

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