धारा 34 के तहत आवेदन पर विचार करने का अधिकार न रखने वाला न्यायालय अवार्ड के गुण-दोष पर विचार नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-12-06 09:50 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की पीठ ने माना कि एक बार न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंच जाता है कि उसके पास मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं है तो वह मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर सकता।

मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 के तहत यह अपील जिला जज द्वारा पारित आदेश से उत्पन्न हुई, जिसके तहत अवार्ड के खिलाफ मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत प्रस्तुत आपत्तियों को खारिज कर दिया गया।

धर्मशाला की जिला अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि अदालत के पास धारा 34 के तहत आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि मध्यस्थता कार्यवाही शिमला में आयोजित की गई। केवल न्यायाधिकरण पर पर्यवेक्षी अधिकार रखने वाला न्यायालय ही आवेदन पर विचार करने के लिए सक्षम होगा।

इस मामले में मध्यस्थता खंड वाले समझौते का अवलोकन किया गया, जिसमें मध्यस्थता की सीट निर्दिष्ट किए बिना केवल मध्यस्थता के स्थान का संकेत दिया गया।

न्यायालय ने अपने आदेश में माना कि हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम एनएचपीसी (2020) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार मध्यस्थता की सीट के रूप में नामित किए जाने वाले किसी भी स्थान की अनुपस्थिति में स्थान को मध्यस्थता की सीट माना जाएगा।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि धर्मशाला की अदालत के पास आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं था, अदालत ने कहा कि उसे मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं करना चाहिए।

उपरोक्त चर्चा के आलोक में अदालत ने माना कि इस आधार पर आरोपित आदेश रद्द किया जा सकता है।

केस टाइटल: चौधरी सरवन कुमार बनाम हिमाचल प्रदेश किसान मंच

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