RTE Act के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति वैधानिक निकाय, वित्तीय अनियमितताओं की वसूली किसी शिक्षक से नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-10-31 03:51 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) की धारा 21 के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति वैधानिक निकाय है और वित्तीय अनियमितताओं की वसूली किसी एक शिक्षक पर नहीं थोपी जा सकती।

कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि प्रबंधन समिति ही सामूहिक रूप से सरकारी अनुदानों की निगरानी करती है, इसलिए अन्य सदस्यों को शामिल किए बिना केवल सदस्य पर वसूली का दायित्व डालना, प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

जस्टिस रंजन शर्मा ने टिप्पणी की:

"शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 21 के अनुसार, विद्यालय प्रबंधन समिति एक वैधानिक निकाय है, जिसका कार्य उपयोग की निगरानी करना है। राज्य प्राधिकरणों द्वारा कथित वसूली को केवल याचिकाकर्ता पर थोपना और विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों को शामिल किए बिना याचिकाकर्ता के विरुद्ध वसूली को अमान्य करना है।"

याचिकाकर्ता रविन्द्र कुमार राजकीय प्राथमिक विद्यालय हमीरपुर में जूनियर प्राथमिक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। वह विद्यालय प्रबंधन समिति के पदेन सदस्य सचिव भी हैं।

2012 में समिति ने अतिरिक्त कक्षाओं के निर्माण के लिए प्रस्ताव पारित किया और सरकार द्वारा स्वीकृत धनराशि का उपयोग करके शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में भवन निर्माण का कार्य शुरू किया।

उन्होंने दो वसूली आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि निर्माण कार्य और धनराशि का वितरण जूनियर इंजीनियर द्वारा पर्यवेक्षण और निष्पादन किया गया। उन्होंने कहा कि एक शिक्षक होने के नाते उन्हें तकनीकी या वित्तीय अनियमितताओं के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 24 और 27 के अनुसार, वित्तीय उत्तरदायित्व वाले गैर-शैक्षणिक कार्य शिक्षकों को नहीं सौंपे जा सकते।

कोर्ट ने कहा,

"एक बार जूनियर इंजीनियर के खिलाफ शिकायत प्रस्तुत कर दी गई तो याचिकाकर्ता, जो केवल विद्यालय प्रबंधन समिति का सदस्य सचिव है, पर दायित्व थोपने के लिए राज्य प्राधिकरणों द्वारा कार्रवाई की आवश्यकता नहीं थी।"

कोर्ट ने कहा कि विभिन्न मूल्यांकन रिपोर्टों में विसंगतियों के आधार पर याचिकाकर्ता को वित्तीय नुकसान के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि किसी भी कमी की जांच औपचारिक विभागीय जांच के माध्यम से की जानी चाहिए, जो अधिकारियों द्वारा कभी नहीं की गई।

कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सीसीएस (CCA) नियमों के नियम 14 और 16 के तहत नियमित विभागीय जांच किए बिना याचिकाकर्ता से वसूली जुर्माना लगाने के बराबर है। जुर्माना केवल उचित प्रक्रिया का पालन करने और औपचारिक आरोप पत्र जारी करने के बाद ही लगाया जा सकता है।

इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वसूली आदेश अवैध है और बिना किसी कानूनी अधिकार के है।

Case Name: Ravinder Kumar v/s State of H.P. and others

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