“साली” शब्द अभद्र गाली है, लेकिन जानबूझकर अपमान नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने धारा 504 IPC की सजा रद्द की
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ “साली” शब्द का इस्तेमाल, भले ही वह अभद्र गाली हो, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 के तहत “जानबूझकर अपमान” नहीं माना जा सकता — जब तक कि वह व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाए या ऐसी संभावना उत्पन्न करे।
जस्टिस राकेश कंठला ने टिप्पणी की —
“वर्तमान मामले में 'साली' शब्द का प्रयोग अभद्र गाली के रूप में किया गया है। लेकिन पीड़िता या सूचनाकर्ता ने यह नहीं कहा कि इस शब्द या इन गालियों ने उसे शांति भंग करने के लिए उकसाया।”
कोर्ट ने कहा, “धारा 504 का आवश्यक तत्व — यानी अपमान से सूचनाकर्ता को शांति भंग करने के लिए प्रेरित होना — इस मामले में मौजूद नहीं है। अतः ट्रायल कोर्ट ने गलती से यह मान लिया कि धारा 504 के तत्व पूरे हुए हैं।”
मामले की पृष्ठभूमि:
अभियोजन के अनुसार, शिकायतकर्ता रीता कुमारी को उसके पड़ोसी — अभियुक्त लेख राम और मीना देवी — ने एक कमरे में बंद कर दिया था।
शिकायतकर्ता ने बताया कि उनके घरों के बीच की दीवार गिरने के बाद, अभियुक्त उसके घर आए, उसे गालियां दीं और कमरे में बंद कर दिया, जहां से पुलिस ने बाद में उसे बाहर निकाला।
ट्रायल कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता का बयान अन्य गवाहों और भौतिक साक्ष्यों से समर्थित है। यह भी स्पष्ट हुआ कि मीना देवी द्वारा प्रस्तुत चाबी से साबित हुआ कि उन्होंने ही उसे कमरे में बंद किया था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही दीवार को लेकर दीवानी विवाद लंबित था, अभियुक्तों को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं था।
इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 342 और 504 सहपठित धारा 34 के तहत दोषी ठहराया।
बाद में अपीलीय अदालत ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।
अभियुक्तों ने हाईकोर्ट में अपील की, यह तर्क देते हुए कि दीवार उनकी जमीन पर बनाई गई थी और उन्हें परिवीक्षा अधिनियम (Probation of Offenders Act) का लाभ दिया जाना चाहिए था।
हाईकोर्ट ने पाया कि धारा 342 (ग़लत तरीके से कैद करने) के तहत सज़ा देने के लिए पर्याप्त सबूत हैं।
हालांकि, कोर्ट ने कहा कि धारा 504 के तहत सजा टिकाऊ नहीं है, क्योंकि यह साबित नहीं हुआ कि गालियों का उद्देश्य शांति भंग कराना था।