नियमित विभागीय जांच के बिना दंडात्मक छंटनी औद्योगिक विवाद अधिनियम का उल्लंघन: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-03-14 04:20 GMT
नियमित विभागीय जांच के बिना दंडात्मक छंटनी औद्योगिक विवाद अधिनियम का उल्लंघन: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की सेवा समाप्ति रद्द की। न्यायालय ने कहा कि प्रारंभिक जांच के बाद छंटनी की आड़ में सेवा समाप्ति की गई। इसने श्रम न्यायालय के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि उचित विभागीय जांच किए बिना कथित कदाचार के आधार पर सेवा समाप्ति अवैध थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act) के तहत दंड के रूप में सेवा समाप्ति को साधारण छंटनी नहीं माना जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

रमेश चंद को हिमाचल प्रदेश के लोक निर्माण विभाग द्वारा दैनिक वेतन भोगी बेलदार के रूप में नियुक्त किया गया। यद्यपि उन्होंने पर्यवेक्षक होने का दावा किया, लेकिन उन्हें 26 फरवरी, 1999 को एक महीने का सेवा समाप्ति नोटिस दिया गया। उनकी सेवा समाप्ति का आधार आधिकारिक अभिलेखों के साथ छेड़छाड़ करने के लिए कदाचार का आरोप था। अपनी सेवा समाप्ति के बाद रमेश चंद ने औद्योगिक विवाद उठाया और उपयुक्त सरकार ने मामले को श्रम न्यायालय को भेज दिया। संदर्भ में सवाल उठाया गया कि क्या उनकी सेवाओं की समाप्ति उचित थी।

श्रम न्यायालय के समक्ष रमेश चंद ने तर्क दिया कि न तो उचित जांच की गई और न ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया गया। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने आगे कहा कि यद्यपि उन्हीं आरोपों के संबंध में उनके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया गया, लेकिन न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें बरी कर दिया। दूसरी ओर, पीडब्ल्यूडी विभाग ने तर्क दिया कि रमेश चंद बेलदार के रूप में काम कर रहे थे। उन्हें कार्यभार या नियमितीकरण का अधिकार नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि उनकी सेवाओं को छंटनी के एक महीने के नोटिस के बाद समाप्त कर दिया गया, क्योंकि उन्हें दस्तावेजों को छांटने में सहायता करने के बजाय अभिलेखों के साथ छेड़छाड़ करते पाया गया।

श्रम न्यायालय ने रमेश चंद से सहमति जताई और कहा कि नियमित विभागीय जांच किए बिना बर्खास्तगी का आदेश पारित नहीं किया जा सकता। इससे व्यथित होकर पीडब्ल्यूडी विभाग ने श्रम न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए रिट दायर की।

तर्क

हिमाचल प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट सुमित शर्मा ने तर्क दिया कि प्रारंभिक जांच की गई और रमेश चंद ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि श्रम न्यायालय कर्मचारी के पक्ष में फैसला नहीं दे सकता था। इस प्रकार, उन्होंने श्रम न्यायालय द्वारा पारित अवार्ड रद्द करने की मांग की।

रमेश चंद की ओर से पेश हुए एडवोकेट संजीव भूषण ने अवार्ड का बचाव किया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि निष्कर्ष स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड द्वारा समर्थित थे। उन्होंने तर्क दिया कि रमेश चंद की सेवा को बिना किसी उचित अवसर के छंटनी की आड़ में समाप्त कर दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि इससे समाप्ति अवैध हो गई।

न्यायालय का तर्क

न्यायालय ने उल्लेख किया कि 26 फरवरी, 1999 की तारीख वाले छंटनी नोटिस में उल्लेख किया गया कि रमेश चंद को दुर्भावनापूर्ण इरादे से आधिकारिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ करने का दोषी पाया गया। इसने देखा कि यह निष्कर्ष केवल प्रारंभिक जांच और उसके स्वयं के अपराध स्वीकार करने पर आधारित था। इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि समाप्ति पूरी तरह से प्रारंभिक जांच में ही निहित थी।

दूसरे, न्यायालय ने औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25-एफ और धारा 2 (OO) का हवाला दिया। इसने कहा कि प्रावधानों में "छंटनी" को किसी भी कारण से बर्खास्तगी के रूप में परिभाषित किया गया, "अनुशासनात्मक कार्रवाई के माध्यम से दी गई सजा के अलावा।"

अदालत ने यह भी देखा कि रमेश चंद के खिलाफ उन्हीं आरोपों के संबंध में FIR दर्ज की गई, लेकिन उन्हें मुकदमे में बरी कर दिया गया। इस प्रकार, यह देखते हुए कि चंद की बर्खास्तगी स्पष्ट रूप से एक प्रारंभिक जांच के आधार पर दी गई सजा थी, अदालत ने फैसला सुनाया कि यह साधारण छंटनी नहीं थी।

अंत में नर सिंह पाल बनाम भारत संघ (2000 आईएनएससी 169) पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि जहां सजा के रूप में समाप्ति का आदेश पारित किया जाता है, उसे छंटनी के साधारण आदेश के रूप में नहीं माना जा सकता। इसने देखा कि नियमित विभागीय जांच किए बिना पारित बर्खास्तगी का आदेश कानून में टिकने योग्य नहीं है।

अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि प्रारंभिक जांच और रमेश चंद द्वारा कथित तौर पर अपराध स्वीकार करना महत्वहीन था; क्योंकि आरोप पत्र जारी करने के बाद कोई उचित जांच नहीं की गई और उन्हें अपना बचाव करने का कोई उचित अवसर नहीं दिया गया।

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने श्रम न्यायालय का आदेश बरकरार रखा और याचिका खारिज कर दी।

केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम रमेश चंद

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