जूनियर को पहले पदोन्नत किया गया हो तो रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति लाभों से इनकार नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-09-05 13:29 GMT

चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा की हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी के जूनियर को उसके कार्यकाल के दौरान पदोन्नत और नियमित किया गया हो तो उसे केवल रिटायरमेंट के आधार पर पदोन्नति और परिणामी लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता।

पृष्ठभूमि तथ्य

प्रतिवादी हिमाचल प्रदेश आवास एवं शहरी विकास प्राधिकरण में कार्यरत था। उसे 28.09.2010 को अधीक्षक ग्रेड-II के पद पर पदोन्नत किया गया। उसकी सेवा के दौरान, उसके दो जूनियर को क्रमशः 01.06.2012 और 18.08.2012 को पदोन्नति दी गई। बाद में उनकी पदोन्नति को उनकी पदोन्नति की तिथि से 09.06.2015 को नियमित कर दिया गया। हालांकि, आवेदक की पदोन्नति सीनियर होने के बावजूद कभी नियमित नहीं की गई। वह 30.04.2013 को रिटायर हो गया। रिटायरमेंट के बाद 2016 में, उन्होंने हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक न्यायाधिकरण में एक मूल आवेदन दायर किया। उन्होंने अपनी पदोन्नति को नियमित करने और परिणामी लाभ प्रदान करने की मांग की।

न्यायाधिकरण ने 10.08.2017 के आदेश द्वारा आवेदन स्वीकार कर लिया। इसने प्राधिकरण को अधीक्षक ग्रेड-II के पद पर नियमित पदोन्नति के लिए प्रतिवादी के मामले पर विचार करने हेतु समीक्षा विभागीय पदोन्नति समिति (डीपीसी) आयोजित करने का निर्देश दिया। इसने आगे निर्देश दिया कि यदि वह उपयुक्त पाया जाता है तो अतिरिक्त पद सृजित किया जाए और उसे सभी परिणामी लाभ प्रदान किए जाएं।

इससे व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि जब न्यायाधिकरण ने 10.08.2017 को आदेश पारित किया, तब प्रतिवादी 30.04.2013 को ही रिटायर हो चुका था। इसलिए वह रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति के किसी भी लाभ का हकदार नहीं था। यह भी दलील दी गई कि जिस समय न्यायाधिकरण ने निर्देश जारी किए, उस समय अधीक्षक ग्रेड-II के संवर्ग में कोई रिक्ति उपलब्ध नहीं थी। इसलिए न्यायाधिकरण का आदेश लागू नहीं किया जा सका।

दूसरी ओर, प्रतिवादी ने दलील दी कि न्यायाधिकरण ने नियमित पदोन्नति के लिए उसके मामले पर विचार करने का निर्देश सही ही दिया, क्योंकि वह पहले से नियमित किए जा चुके अधिकारियों से वरिष्ठ था। यह तर्क दिया गया कि जूनियर को 2012 में पदोन्नति दी गई। बाद में उनकी पदोन्नति 2015 में पूर्वव्यापी प्रभाव से नियमित कर दी गई, जबकि प्रतिवादी को उनसे बहुत पहले 2010 में पदोन्नत किया गया। प्रतिवादी ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता-प्राधिकरण ने स्वयं दिनांक 29.01.2016 के पत्र द्वारा, समान स्थिति वाले व्यक्तियों के साथ उसके मामले को नियमित करने की अनुशंसा की थी।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि एक बार जब जूनियर को पूर्वव्यापी प्रभाव से नियमितीकरण प्रदान कर दिया गया तो प्रतिवादी, जो उनसे सीनियर था, उसको समान लाभ देने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं था। यह भी पाया गया कि प्रतिवादी 30.04.2013 को रिटायर हो गया। हालांकि, जब उसके जूनियर को नियमित किया गया तब वह सेवा में था। इसलिए याचिकाकर्ता का यह तर्क कि रिटायरमेंट प्रतिवादी को ऐसे लाभ से वंचित करती है, निराधार पाया गया। यह भी ध्यान दिया गया कि याचिकाकर्ता-प्राधिकरण ने स्वयं अपने दिनांक 29.01.2016 के पत्र में प्रतिवादी के मामले को नियमित करने की अनुशंसा की थी। यह माना गया कि प्राधिकरण एक ही समय में विरोधाभासी रुख नहीं अपना सकता और न ही एकमत हो सकता है।

न्यायालय ने यह माना कि जब कर्मचारी की सेवा अवधि के दौरान जूनियरों को पदोन्नति का लाभ दिया गया हो तो रिटायरमेंट को पदोन्नति का लाभ देने से इनकार करने का वैध आधार नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने यह माना कि न्यायाधिकरण के आदेश और न्यायालय द्वारा कोई स्थगन न दिए जाने के बावजूद, प्राधिकरण कई वर्षों तक निर्देशों का पालन करने में विफल रहा। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता-प्राधिकरण न्यायाधिकरण के आदेश को लागू करे और दो महीने की अवधि के भीतर आवश्यक कदम उठाए।

उपरोक्त टिप्पणियों के साथ रिट याचिका खारिज कर दी गई।

Case Name : H.P. Housing & Urban Development Authority vs Roop Lal Verma & another

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