अस्थायी या संविदा कर्मचारियों के लिए भी प्राकृतिक न्याय का पालन किया जाना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-06-30 09:44 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस संदीप शर्मा की एकल पीठ ने डाटा एंट्री ऑपरेटर का निलंबन आदेश रद्द कर दिया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि किसी कर्मचारी को कदाचार के लिए निलंबित करने से पहले उचित जांच और कारण बताओ नोटिस अनिवार्य है। न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि अस्थायी या संविदा कर्मचारियों के लिए भी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि

सुरिंदर कुमार 2008 से केंद्रीय संस्कृत यूनिवर्सिटी में डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम कर रहे थे। 17 साल से अधिक समय तक काम करने के बाद उन्हें कथित लापरवाही, आदतन अनुपस्थिति और पर्यवेक्षकों के साथ दुर्व्यवहार के लिए 2024 में निलंबित कर दिया गया। निलंबन आदेश बिना किसी कारण बताओ नोटिस या औपचारिक जांच के पारित किया गया। व्यथित होकर सुरिंदर कुमार ने इस आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की और पिछले वेतन के साथ बहाली की मांग की।

उन्होंने तर्क दिया कि बर्खास्तगी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, क्योंकि उन्हें कोई नोटिस नहीं दिया गया और आरोप केवल उन्हें सेवा से बाहर करने के लिए गढ़े गए। 23 अप्रैल, 2025 को न्यायालय ने यूनिवर्सिटी को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि निलंबन से पहले कोई कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था या नहीं।

अगली सुनवाई की तिथि पर यूनिवर्सिटी के निदेशक ने स्वीकार किया कि ऐसा कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि स्पष्टीकरण मांगने के लिए कुमार को कई बार पत्र भेजे गए, लेकिन वह अधिकारियों के समक्ष कभी पेश नहीं हुए।

मामले में दिए गए तर्क

सुरिंदर कुमार ने तर्क दिया कि निलंबन आदेश अवैध था। उन्होंने तर्क दिया कि यह केवल निराधार शिकायतों पर आधारित था, इसे बिना किसी नोटिस या जांच के पारित किया गया था। इसमें निष्पक्ष सुनवाई नहीं की गई। उन्होंने कहा कि अस्थायी कर्मचारियों को भी निष्पक्ष सुनवाई प्रदान की जानी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि केवल सीनियर्स की शिकायतें औपचारिक कार्यवाही को दरकिनार करने का कारण नहीं हो सकती। उन्होंने दावा किया कि आदेश प्रकृति में कलंकपूर्ण था।

यूनिवर्सिटी ने तर्क दिया कि कुमार केवल अस्थायी कर्मचारी थे, इसलिए औपचारिक जांच आवश्यक नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें अपने आचरण को स्पष्ट करने के लिए कई अवसर दिए गए, लेकिन उन्होंने ऐसा करने में विफल रहे। इस प्रकार, उन्होंने तर्क दिया कि निलंबन कानूनी और वैध था।

न्यायालय का तर्क

सबसे पहले, न्यायालय ने माना कि बिना कारण बताओ नोटिस के निलंबन आदेश जारी करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद न्यायालय ने पाया कि कुमार को भेजे गए किसी भी पत्र में कारण बताओ नोटिस नहीं था। इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि यूनिवर्सिटी निष्पक्ष सुनवाई करने और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहा।

दूसरे, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि अस्थायी कर्मचारियों के लिए जांच आवश्यक नहीं है। दर्शन कुमारी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (सीडब्ल्यूपी नंबर 617/2020, 24.03.2025 को तय) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि अस्थायी या संविदा कर्मचारियों को भी किसी भी दंडात्मक या कलंकपूर्ण आदेश को पारित करने से पहले जवाब देने का अवसर दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि कदाचार एक गंभीर आरोप है, इसलिए निष्पक्ष अनुशासनात्मक कार्यवाही की आवश्यकता है, न कि केवल प्रशासनिक कार्रवाई की।

तीसरा, नर सिंह पाल बनाम भारत संघ (सिविल अपील नंबर 2280/2000) का हवाला देते हुए न्यायालय ने माना कि छंटनी के मामलों में भी यदि यह बिना किसी उचित जांच के कदाचार पर आधारित है तो यह बर्खास्तगी के बराबर है, इसलिए अमान्य है। इसके अलावा, न्यायालय ने डॉ. विजयकुमारन सी.पी.वी. बनाम केरल केंद्रीय यूनिवर्सिटी (सिविल अपील नंबर 777/2020) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि किसी अस्थायी कर्मचारी को भी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कदाचार के आधार पर नहीं हटाया जा सकता।

चौथा, न्यायालय ने माना कि यदि निलंबन के आधार दुर्व्यवहार या लापरवाही जैसे आरोपों से जुड़े है, तो आदेश को एक साधारण प्रशासनिक निर्णय नहीं माना जा सकता है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई आदेश कलंकपूर्ण या दंडात्मक है, तो नियमित जांच अनिवार्य है।

अंत में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ऐसे मामलों में जो प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, निलंबन अमान्य होगा और बहाली अनिवार्य होगी। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यूनिवर्सिटी नया कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद एक और जांच करने के लिए स्वतंत्र है।

इस प्रकार, न्यायालय ने रिट याचिका स्वीकार कर ली। न्यायालय ने निलंबन अवधि के लिए पूर्ण बकाया वेतन का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।

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