सेवा में आने से पहले दो बच्चे हुए हों तो तीसरे बच्चे पर मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं: हिमाचल हाईकोर्ट

Update: 2025-08-03 13:46 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी की दो संतानें उसकी सेवा में आने से पहले जन्मी हों और तीसरी संतान सेवा में आने के बाद हो, तो ऐसी स्थिति में केंद्रीय सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 1972 के नियम 43(1) के तहत मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने टिप्पणी की:
"याचिकाकर्ता ने सेवा में आने से पहले दो बच्चों को जन्म दिया था, लेकिन तीसरे बच्चे के लिए, जो सेवा में रहते हुए पैदा हुआ, पहली बार मातृत्व अवकाश की मांग की गई है। यदि ऐसा है, तो याचिकाकर्ता द्वारा की गई यह मांग स्वीकार की जानी चाहिए।"

नियम 43(1) CCS (अवकाश) नियम, 1972
"एक महिला सरकारी कर्मचारी (जिसमें प्रशिक्षु भी शामिल हैं), जिसके दो से कम जीवित बच्चे हैं, को 180 दिनों तक मातृत्व अवकाश दिया जा सकता है।"

मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ने वर्ष 2019 में सिविल अस्पताल, पांवटा साहिब में स्टाफ नर्स के रूप में सरकारी सेवा जॉइन की थी। इससे पहले वह दो बच्चों को जन्म दे चुकी थीं। मार्च 2025 में उन्होंने तीसरे बच्चे को जन्म दिया और इसके बाद मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया।

हालांकि, प्रशासन ने उनका आवेदन यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नियम 43(1) के अनुसार, यह अवकाश केवल उन्हीं महिला कर्मचारियों को दिया जा सकता है जिनके दो से कम जीवित संतान हों। इस फैसले से असंतुष्ट होकर उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता के पहले दो बच्चे सेवा में आने से पहले पैदा हुए थे और तीसरा बच्चा सेवा में आने के बाद हुआ है। अतः नियम 43(1) के तहत याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने के.उमादेवी बनाम तमिलनाडु सरकार (2025) मामले में कहा है कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कामकाजी महिला गर्भावस्था की स्थिति से सम्मानपूर्वक और भयमुक्त होकर गुजर सके, बिना किसी प्रकार की सज़ा या नौकरी के नुकसान के डर के।

कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए सीनियर मेडिकल ऑफिसर को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को नियम 43(1) के अनुसार मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाए।

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