7 साल की बच्ची से बलात्कार के आरोपी 16 वर्षीय किशोर पर वयस्क की तरह चलेगा मुकदमा, हाईकोर्ट ने JJB का फैसला बरकरार रखा

Update: 2025-08-07 10:24 GMT

16 साल के लड़के द्वारा 7 साल की बच्ची के कथित बलात्कार के मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि किशोर न्याय देखभाल और बाल संरक्षण अधिनियम, 2015 की धारा 15 के अनुसार मेडिकल बोर्ड द्वारा किए गए प्रारंभिक मूल्यांकन में पाया गया कि आरोपी का आईक्यू 92 है और वह अपने कृत्यों के परिणामों से पूरी तरह वाकिफ था, क्योंकि उसने पीड़िता को धमकी दी थी और उसे घटना के बारे में किसी को न बताने के लिए कहा था।

न्यायालय ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता अपराध करने के लिए किसी भी मानसिक या शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त नहीं है और किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उस पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने के लिए मामले को बाल न्यायालय को संदर्भित करना सही है।

जस्टिस राकेश कैंथला ने टिप्पणी की,

"मेडिकल बोर्ड को याचिकाकर्ता की मानसिक क्षमता का आकलन करना था, जिसका उसने आकलन किया और पाया कि याचिकाकर्ता का आईक्यू 92 है। इसलिए केवल इस तथ्य से कि दस्तावेज़ मेडिकल बोर्ड को नहीं भेजे गए, यह नहीं कहा जा सकता कि मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी की गई रिपोर्ट खराब थी।"

मामले की पृष्ठभूमि

पुलिस ने अभियुक्त के विरुद्ध दंड संहिता, 1860 की धारा 376 और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराध करने के आरोप में चालान पेश किया। पीड़िता, जिसकी उम्र 7 वर्ष है, के विरुद्ध अपराध किया गया था।

पीड़िता ने बताया कि वह याचिकाकर्ता के घर उसके साथ खेलने गई थी और जब वह घर लौटी तो उसके पेट में दर्द हुआ। पूछताछ करने पर उसने बताया कि याचिकाकर्ता उसे गौशाला में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया।

पुलिस के अनुसार, घटना के समय याचिकाकर्ता की उम्र 16 वर्ष, एक माह और 23 दिन पाई गई।

इसके बाद किशोर न्याय बोर्ड ने प्रारंभिक मूल्यांकन किया और मामले को बाल न्यायालय को भेज दिया ताकि उस पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सके।

व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने शिमला सेशन जज के समक्ष अपील दायर की। हालांकि, सेशन जज ने उसकी अपील खारिज कर दी।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) की धारा 14(3) के तहत निर्धारित तीन महीने के भीतर प्रारंभिक मूल्यांकन पूरा नहीं किया गया और मामले के दस्तावेज़ भी मेडिकल बोर्ड को उपलब्ध नहीं कराए गए।

न्यायालय ने टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट ने X(किशोर) बनाम कर्नाटक राज्य मामले में यह माना कि धारा 12(3) के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन पूरा करने की अवधि अनिवार्य नहीं, बल्कि निर्देशात्मक है।

इस प्रकार, न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।

Case Name: V (a juvenile) v/s State of H.P.

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