भूमि अधिग्रहण के लिए उचित रूप से निर्धारित मुआवज़ा उन भूस्वामियों को भी दिया जाना चाहिए, जो कोर्ट नहीं आ सके: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवज़े की उचित दर तय हो जाने के बाद इसका लाभ उसी अधिग्रहण से प्रभावित सभी भूस्वामियों को मिलना चाहिए।
अदालत ने कहा कि कुछ भूस्वामियों को केवल इसलिए ऐसे लाभों से वंचित करना भेदभावपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया।
राज्य के तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की:
"एक बार मुआवज़े की एक विशेष दर न्यायिक रूप से निर्धारित हो जाने के बाद, जो उचित मुआवज़ा बन सकती है, उसका लाभ उन लोगों को भी दिया जाना चाहिए, जो अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सके। याचिकाकर्ताओं को यह लाभ न देने का प्रतिवादियों का कार्य मनमाना, भेदभावपूर्ण और कानून की दृष्टि में टिकने योग्य नहीं है।"
1993 में शिमला जिले के रोहड़ू में स्टेडियम-सह-हेलीपैड के निर्माण के लिए याचिकाकर्ताओं की भूमि अधिग्रहित की गई थी और 1995 में मुआवज़ा देने का आदेश पारित किया गया। कुछ भूमि मालिकों ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 18 के तहत संदर्भ दायर करके इस आदेश को चुनौती दी और उन्हें मुआवज़ा दिया गया।
हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने कोई संदर्भ दायर नहीं किया, बल्कि बाद में भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 28-ए के तहत आवेदन किया, जो पहले के अदालती निर्णयों के आधार पर मुआवज़े के पुनर्निर्धारण की अनुमति देता है।
उनका दावा शुरू में 2011 में स्वीकार किया गया और मुआवज़ा ₹64.53 लाख निर्धारित किया गया। हालांकि, बाद में इसकी समीक्षा की गई और 2012 में उन्हें बिना कोई सूचना दिए इसे घटाकर ₹54.23 लाख कर दिया गया।
व्यथित होकर कुछ भूस्वामियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 1984 से 1993 तक भूमि के बाजार मूल्य पर 15% प्रति वर्ष की दर से क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवज़ा देने की अनुमति प्रदान की।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि उनकी भूमि उसी अधिसूचना के तहत अधिग्रहित की गई। इसलिए वे समान लाभ के हकदार थे। हालांकि, भूमि अधिग्रहण कलेक्टर ने 2023 में उनका आवेदन खारिज कर दिया।
जवाब में राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता हकदार नहीं है, क्योंकि वे न तो सह-स्वामी है और न ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले पक्षों की भूमि में किसी अन्य तरह से रुचि रखते हैं।
राज्य के तर्क को खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की,
"जब उन अन्य भूस्वामियों को लाभ दिया गया, जिनकी भूमि अधिग्रहित की गई। साथ ही उन भूस्वामियों को भी जिनके मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किए तो याचिकाकर्ताओं के साथ स्पष्ट रूप से भेदभाव नहीं किया जा सकता।"
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 28-ए समता के सिद्धांत पर आधारित है, जो पूर्व अदालती निर्णयों के आधार पर मुआवज़े के पुनर्निर्धारण की अनुमति देती है।
इस प्रकार, अदालत ने राज्य को याचिकाकर्ता को दिए जाने वाले मुआवज़े का पुनर्निर्धारण करने का निर्देश दिया।
Case Name: Vishwa Nath Sharma & others v/s State of H.P. & Others.