नियोक्ता वर्षों तक अभ्यावेदन का जवाब न देने पर कर्मचारी के दावे को अस्वीकार करने में देरी का हवाला नहीं दे सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली द्वारा दायर अपील खारिज की, जिसमें सिंगल जज के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें रिटायर कर्मचारी के उच्च ग्रेड वेतन को वापस लेने को रद्द कर दिया गया था और संस्थान को वित्तीय उन्नयन के उसके दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने माना कि देरी NIT द्वारा कर्मचारी के अभ्यावेदन का जवाब न देने के कारण हुई थी।
चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने टिप्पणी की:
"इसमें कोई विवाद नहीं है कि वर्ष 2018 में अभ्यावेदन दायर करने पर वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा कभी जवाब नहीं दिया गया और केवल 28.01.2022 को अस्वीकृति आदेश पारित होने के बाद जुलाई, 2022 में रिट याचिका दायर की गई... अभ्यावेदन का जवाब देने में देरी करने के बाद अब वे पलटकर यह रुख नहीं अपना सकते कि कर्मचारी की ओर से देरी हुई।"
NIT दिल्ली के पूर्व कर्मचारी प्रतिवादी राज कमल वर्मा ने अपने उच्च ग्रेड वेतन को वापस लेने को चुनौती दी। इसके बाद सिंगल जज ने वापसी का आदेश रद्द कर दिया और NIT को कानून के अनुसार उनके दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
NIT दिल्ली ने तर्क दिया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के पास क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि कर्मचारी ने दिल्ली में सेवा की और वहीं रिटायर हुआ था।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि केवल इसलिए कि कर्मचारी ने हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर स्थित अपने आवास पर आदेश प्राप्त किया था, यह अधिकार क्षेत्र नहीं देता।
हालांकि, कर्मचारी ने तर्क दिया कि चूंकि उसे जिला हमीरपुर स्थित अपने घर पर पत्र प्राप्त हुआ था, इसलिए वाद का एक हिस्सा हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है।
NIT के तर्क को खारिज करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि चूंकि पत्र कर्मचारी को उसके घर पर भेजा गया था, इसलिए वाद का एक हिस्सा हिमाचल प्रदेश में उत्पन्न हुआ।
इसके अलावा, कोर्ट ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 226(2) के तहत यदि वाद का कारण पूर्णतः या आंशिक रूप से हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में उत्पन्न होता है तो वह कोर्ट को अधिकार क्षेत्र प्रदान करेगा।
इस प्रकार, कोर्ट ने सिंगल जज का आदेश बरकरार रखा।
Case Name: National Institute of Technology, Delhi v/s Raj Kamal Verma and others