हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 20 साल बाद लापरवाही से गाड़ी चलाने के दोषी व्यक्ति को परिवीक्षा प्रदान की, कहा- 'इनकार करने पर परिवार को सजा मिलेगी'

Update: 2025-11-01 04:03 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 20 साल बाद एक व्यक्ति को लापरवाही से गाड़ी चलाने के दोषी पाए जाने के बाद परिवीक्षा प्रदान की। कोर्ट ने उसके अच्छे आचरण, लंबे समय से लंबित मुकदमे और आपराधिक कानून की सुधारात्मक प्रकृति को ध्यान में रखा।

जस्टिस वीरेंद्र सिंह ने टिप्पणी की:

"दोषी को परिवीक्षा पर रिहा करने की उसकी प्रार्थना को अस्वीकार करना उसके परिवार के सदस्यों को उसके द्वारा किए गए अपराधों के लिए दंडित करने के समान होगा।"

याचिकाकर्ता राम कृष्ण को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 279, 337, 338 और 201 के तहत लापरवाही से गाड़ी चलाकर चोट पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया गया।

व्यथित होकर उसने सेशन जज के समक्ष अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद उसने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने दोषसिद्धि को चुनौती नहीं दी, बल्कि परिवीक्षा पर रिहा करने का अनुरोध किया। उसने तर्क दिया कि वह पहली बार अपराधी है और उसे अपने परिवार की देखभाल भी करनी है।

हाईकोर्ट ने पाया कि परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को परिवीक्षा का लाभ दिए जाने की सिफ़ारिश की गई।

कोर्ट ने पाया कि परिवीक्षा अधिकारी ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि दोषी का पिछले वर्षों में समाज में आचरण अच्छा रहा है और उसके विरुद्ध कोई अन्य आपराधिक मामला लंबित नहीं है।

कोर्ट ने दोहराया,

"परिवीक्षा एक प्रकार की गैर-हिरासत वाली सज़ा है, जो दोषी को स्वयं को सुधारने का अवसर देती है... यह उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक सुधारात्मक उपाय है, जिसमें दोषी को पूर्ण सज़ा भुगतने का निर्देश देने के बजाय उसे स्वयं को सुधारने का अवसर दिया जाता है।"

इस प्रकार, न्यायालय ने सज़ा में संशोधन किया और याचिकाकर्ता को दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षा पर रिहा करने का निर्देश दिया।

Case Name: Ram Krishan v/s State of Himachal Pradesh

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