प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के राज्य के बाहर पढ़ने वाले बच्चों को स्टेट कोटा से बाहर रखा जा सकता है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2025-12-25 11:31 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बोनाफाइड हिमाचली स्टूडेंट्स द्वारा दायर रिट याचिकाओं का बैच खारिज कर दिया, जिन्हें स्टेट कोटा के तहत MBBS/BDS एडमिशन के लिए एलिजिबल नहीं माना गया।

कोर्ट ने कहा कि भले ही याचिकाकर्ता हिमाचली हैं और उन्होंने NEET क्वालिफाई किया, लेकिन वे स्टेट कोटा के लिए एलिजिबल नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने अपने माता-पिता की राज्य के बाहर प्राइवेट नौकरी के कारण अपनी स्कूली शिक्षा का कुछ हिस्सा हिमाचल प्रदेश के बाहर पूरा किया।

जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की:

“प्राइवेट कर्मचारियों के संबंध में भी जब माता-पिता एक बार प्राइवेट नौकरी में बाहर चले जाते हैं और बच्चे बाहर शिक्षा प्राप्त करते हैं तो उनके वापस आने की संभावना नहीं होती है। इसलिए उपरोक्त आधार पर उन्हें बाहर करना तर्कहीन या अवैध नहीं कहा जा सकता है।”

याचिकाकर्ताओं ने NEET-UG 2025 सफलतापूर्वक क्वालिफाई किया और उनमें से कुछ बोनाफाइड हिमाचली हैं और कुछ बोनाफाइड हिमाचली के बच्चे हैं।

हालांकि, उन्हें स्टेट कोटा सीटों के तहत हिमाचल प्रदेश राज्य के मेडिकल संस्थानों में एडमिशन लेने से रोक दिया गया।

उन्हें इस आधार पर एडमिशन देने से मना कर दिया गया कि उनके माता-पिता हिमाचल प्रदेश के बाहर प्राइवेट सेक्टर में काम करते हैं।

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पिछले एकेडमिक सेशन के दौरान, बोनाफाइड हिमाचली स्टूडेंट या बोनाफाइड हिमाचली के बच्चे अपनी स्कूली शिक्षा की जगह की परवाह किए बिना स्टेट कोटा के लिए एलिजिबल है।

कोर्ट ने कहा कि भले ही पहले की एडमिशन प्रक्रिया में बोनाफाइड हिमाचली स्टूडेंट्स को उनकी स्कूली शिक्षा की जगह की परवाह किए बिना स्टेट कोटा सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति थी, लेकिन राज्य और यूनिवर्सिटी द्वारा एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को रिवाइज किया गया।

हरषित बंसल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य मामले में डिवीजन बेंच के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की,

“सरकार, जो सरकारी कॉलेजों को चलाने का वित्तीय बोझ उठाती है, अपने कॉलेजों में एडमिशन के लिए क्राइटेरिया तय करने की हकदार है... बशर्ते क्लासिफिकेशन मनमाना न हो और नियमों के उद्देश्य से इसका उचित संबंध हो।”

इस प्रकार, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एडमिशन की शर्तें न तो मनमानी हैं और न ही भेदभावपूर्ण हैं और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करती हैं।

केस का नाम: आरव पोटन और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य

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