एक राज्य द्वारा अवार्ड फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल पर फेंकना देरी को माफ करने के लिए पर्याप्त नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-09-12 06:42 GMT

जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की पीठ ने माना कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 की धारा 34(1) के तहत आपत्तियां दर्ज करने में देरी के लिए दिया गया स्पष्टीकरण देरी को माफ करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अगर ऐसा लगता है कि राज्य द्वारा फाइल को केवल एक टेबल से दूसरी टेबल पर फेंका गया था।

संक्षिप्त तथ्य

आपत्तिकर्ताओं/आवेदकों, हिमाचल प्रदेश राज्य ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34(3) के तहत आवेदन दायर किया, जिसमें मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34(1) के तहत अपनी आपत्तियां दर्ज करने में देरी को माफ करने की मांग की गई। यह विवाद 11.10.2023 को दिए गए एक मध्यस्थ निर्णय के इर्द-गिर्द घूमता है। इस निर्णय ने मेसर्स मेंगी इंजीनियरिंग कंपनी, प्रतिवादी/गैर-आवेदक, और आपत्तिकर्ताओं/आवेदकों के प्रति-दावे दोनों को खारिज कर दिया।

आपत्तिकर्ताओं/आवेदकों द्वारा प्रस्तुत प्रति-दावे के संबंध में मध्यस्थ ने माना कि कार्रवाई का कारण 13.11.1989 को उत्पन्न हुआ था, जबकि प्रति-दावा स्वयं बहुत बाद में दायर किया गया।

आपत्तिकर्ताओं/आवेदकों ने तर्क दिया कि उन्हें 11.10.2023 के अवार्ड की हस्ताक्षरित प्रति 27.10.2023 को प्राप्त हुई। अक्टूबर 2023 तक चलने वाले लंबे बरसात के मौसम के कारण विभाग के कर्मचारी सड़क बहाली के लिए फील्डवर्क में लगे हुए थे, जिसके परिणामस्वरूप केस फाइल को संबोधित करने में देरी हुई।

इसके अतिरिक्त, 14.12.2023 का संशोधित पुरस्कार 26.12.2023 को आपत्तिकर्ताओं/आवेदकों को प्राप्त हुआ। मामले पर सरकारी राय लेने की प्रक्रिया 29.02.2024 को शुरू हुई जब आपत्तिकर्ता/आवेदक नंबर 2 ने मामले की फाइल अधीक्षण इंजीनियर को सौंपी। इसके बाद इस फाइल को इंजीनियर-इन-चीफ, हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग (एसजेड) को भेज दिया गया और विधि विभाग को सौंपे जाने से पहले इंजीनियर-इन-चीफ के कार्यालय के कानूनी प्रकोष्ठ में इसकी जांच की गई।

सरकारी स्तर पर आगे की जांच के बाद विधि विभाग की राय आपत्तिकर्ता/आवेदक नंबर 1 को बताई गई। इसके बाद इंजीनियर-इन-चीफ के कार्यालय ने आपत्तिकर्ता/आवेदक नंबर 2 को सरकार के निर्णय से अवगत कराया। इसके बाद मसौदा आपत्तियां 23.03.2024 को कानूनी प्रकोष्ठ को सौंपी गईं, 01.04.2024 को जांच की गईं और अंततः 06.04.2024 को दायर की गईं।

हाईकोर्ट द्वारा टिप्पणियां:

हाईकोर्ट ने पाया कि आवेदन में दिए गए स्पष्टीकरण देरी को उचित ठहराने के लिए अपर्याप्त हैं। इसने माना कि आवेदक, जो मध्यस्थ द्वारा पारित अवार्ड को चुनौती दे रहे थे, ने इसकी देरी को सही ठहराने के लिए कोई ठोस तर्क प्रस्तुत नहीं किया।

हाईकोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 में अवार्ड की प्राप्ति की तिथि से आपत्तियां दाखिल करने के लिए तीन महीने की अवधि बताई गई। अवार्ड 11 अक्टूबर 2023 को जारी किया गया और आवेदकों को 27 अक्टूबर 2023 को प्राप्त हुआ। इसलिए इसने माना कि आपत्तियां दाखिल करने की समय सीमा 24 जनवरी 2024 थी। 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि, जिसे बढ़ाया जा सकता था 23 फरवरी 2024 को समाप्त हो गई। आपत्तियां केवल 6 अप्रैल 2024 को दायर की गईं, जो निर्धारित अवधि से बहुत आगे थी।

हाईकोर्ट ने माना कि आवेदकों ने अपनी देरी को समझाने के लिए 14 दिसंबर 2023 को संशोधित अवार्ड की हस्ताक्षरित प्रति की प्राप्ति का लाभ उठाने का प्रयास किया। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि यह संशोधन मूल अवार्ड में टाइपोग्राफिकल त्रुटियों को ठीक करने के लिए जारी किया गया शुद्धिपत्र मात्र था, जो कि अवार्ड में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं था।

शुद्धिपत्र आवेदकों को 26 दिसंबर 2023 को प्राप्त हुआ लेकिन इस तिथि से भी तीन महीने की सीमा अवधि से परे 11 दिनों की अतिरिक्त देरी हुई।

हाईकोर्ट ने माना कि आवेदकों ने आपत्तियां दाखिल करने में अपनी देरी के लिए कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया। नतीजतन देरी को माफ करने के लिए आवेदन में योग्यता का अभाव था। इसलिए हाईकोर्ट ने आवेदन को खारिज कर दिया।

केस टाइटल- एच.पी. राज्य और अन्य बनाम मेंगी इंजीनियरिंग कंपनी

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