Preventive Detention क्षेत्राधिकार के तहत व्यक्तिपरक संतुष्टि निष्पक्षता को खारिज नहीं कर सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने डिटेंशन ऑर्डर रद्द किया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के बजाय "व्यंग्यात्मक" राय पर आधारित हिरासत के आधार के बारे में गंभीर चिंताओं का हवाला देते हुए बंदी का डिटेंशन ऑर्डर (Detention Order) रद्द कर दिया।
जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने कहा,
“अगर इसे वैसे ही लिया जाए तो किसी भी कानून का पालन करने वाले नागरिक को कानून और प्रवर्तन एजेंसी/प्राधिकरण के हाथों सलाखों के पीछे डालने के लिए रूढ़िबद्ध किया जा सकता है, न कि उसकी ओर से किसी चूक या कमीशन के दंडात्मक कार्य के लिए। लेकिन सिर्फ इस कारण से कि कानून और प्रवर्तन एजेंसी/प्राधिकरण किसी व्यक्ति को बुरा व्यक्ति बता रहे हैं।''
उक्त मामला श्रीनगर के 26 वर्षीय निवासी वकास रियाज़ खान से संबंधित है, जिन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 की धारा 8 के तहत उसके खिलाफ जारी निवारक हिरासत (Preventive Detention) आदेश को चुनौती देने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट की मांग की। नजरबंदी आदेश जिला मजिस्ट्रेट, श्रीनगर द्वारा प्रस्तुत डोजियर के आधार पर जारी किया गया था। सीनियर पुलिस अधीक्षक (एसएसपी), श्रीनगर ने याचिकाकर्ता पर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया।
डोजियर में बताए गए Preventive Detention के आधारों में याचिकाकर्ता को आतंकवाद की ओर झुकाव रखने वाली युवाओं को भड़काने वाली और राष्ट्र-विरोधी तत्वों को रसद मुहैया कराने वाली कट्टरपंथी विचारधारा वाला बताया गया। एसएसपी ने 2019 की अशांति से संबंधित मामलों में याचिकाकर्ता की पिछली संलिप्तता का भी हवाला दिया, जिसमें क्षेत्र की शांति और शांति को भंग करने की उसकी क्षमता पर जोर दिया गया।
जस्टिस भारती ने डिटेंशन के आधारों को तथ्यहीन और किसी भी संदर्भ से रहित पाया। उन्होंने आरोपों का समर्थन करने के लिए ठोस सबूत या विशिष्ट उदाहरणों से रहित खान का महज मनमौजी व्यंग्य प्रस्तुत करने के लिए डोजियर की आलोचना की।
अदालत ने कहा,
“डिटेंशन के आधार पाठ के अनुसार प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा बताए गए हैं जिला मजिस्ट्रेट, श्रीनगर के पास संदर्भ का अभाव है। इसलिए व्यक्तिपरक संतुष्टि उत्पन्न करने के लिए आधार की गणना नहीं की जा सकती है, जिसका उद्देश्य वस्तुनिष्ठ स्थिति को सामने रखना है।”
जस्टिस भारती ने आगे रेखांकित किया कि हालांकि Preventive Detention के मामलों में व्यक्तिपरक संतुष्टि महत्वपूर्ण है, लेकिन हिरासत प्राधिकरण के समक्ष वस्तुनिष्ठ आधार प्रस्तुत करने की आवश्यकता की उपेक्षा नहीं की जा सकती है।
पीठ ने कहा,
"यह Preventive Detention निरोध क्षेत्राधिकार के तहत व्यक्तिपरक संतुष्टि की प्रैक्टिस है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उक्त व्यक्तिपरक संतुष्टि निरोध प्राधिकारी के सामने अपना विवेक लगाने और व्यक्तिपरक संतुष्टि प्राप्त करने के लिए वस्तुनिष्ठता की स्थिति से दूर हो सकती है।“
इन टिप्पणियों के आधार पर न्यायालय ने खान का डिटेंशन ऑर्डर रद्द कर दिया और उसकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
केस टाइटल: वकास रियाज़ खान बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश