सोशल मीडिया पोस्ट केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष विधानसभा चुनावों के संचालन पर संदेह व्यक्त करना आईपीसी की धारा 505 के तहत अपराध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-01-19 08:36 GMT

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि केवल सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से स्वतंत्र और निष्पक्ष विधान सभा चुनावों के संचालन पर संदेह व्यक्त करने से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 (2) के तहत अपराध नहीं किया जा सकता।

संवाददाता इस मामले में याचिकाकर्ता ने लहार विधानसभा क्षेत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संबंध में संदेह जताते हुए सोशल मीडिया पोस्ट किया।

उक्त पोस्ट को अपमानजनक और सार्वजनिक शरारत के समान मानते हुए नायब तहसीलदार द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 (2) और 188 के तहत अपराध करने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज की गई।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उनका पद संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे में आता है। किसी लोक सेवक द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया गया, जिसकी याचिकाकर्ता ने अवज्ञा की हो। इस प्रकार यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 505(2) और 188 के तहत अपराध का कोई मामला नहीं बनता है।

इस प्रकार वर्तमान याचिका याचिकाकर्ता द्वारा उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए दायर की गई।

जस्टिस आनंद पाठक नेयाचिकाकर्ता के सोशल मीडिया पोस्ट को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत स्पष्ट रूप से 'बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के दायरे में आने वाला पाते हुए कहा,

"संविधान का अनुच्छेद 19 भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है और यदि याचिकाकर्ता द्वारा कथित तौर पर किए गए पोस्ट को ध्यान में रखा जाता है तो उक्त पोस्ट से कोई अपमानजनक टिप्पणी या सार्वजनिक शरारत प्रतिबिंबित नहीं होती। विशेष रूप से विधानसभा में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना भिंड/चंबल क्षेत्र में हमेशा सर्वोपरि विचार किया जाता है और यदि किसी के द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन के संबंध में संदेह उठाया जाता है तो यह किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 505 (2) के तहत सोशल मीडिया पोस्ट के तहत अपराध बनता है। याचिकाकर्ता समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा नहीं कर रहा है या बढ़ावा नहीं दे रहा है। इसके अलावा याचिकाकर्ता द्वारा आईपीसी की धारा 188 में दिए गए अनुसार कोई सार्वजनिक शरारत नहीं की गई।

जस्टिस पाठक ने बहुवादी और सहिष्णु समाज के लोकतंत्र के लक्ष्य पर टिप्पणी करते हुए कहा,

"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवैधानिक भावना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कायम रखने वाले मुख्य स्तंभों में से एक है। इस प्रकार इसकी सुरक्षा आवश्यक है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तब मौजूद होती है, जब नागरिक प्रतिक्रिया के डर के बिना सरकार के प्रति आलोचनात्मक विचारों सहित अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं, जैसे कि लगाए जाने पर जेल में या हिंसा की धमकियां मिल रही हैं। लोकतंत्र का लक्ष्य बहुलवादी और सहिष्णु समाज बनाना है। इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए नागरिकों को स्वतंत्र रूप से और खुले तौर पर बोलने में सक्षम होना चाहिए कि वे कैसे शासित होना चाहते हैं। विचारों का यह आदान-प्रदान केवल चुनाव के दिन के लिए नहीं है, बल्कि यह एक सतत दोतरफा संचार है, जो सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान होता है।''

इस संदर्भ में देखने पर, न्यायालय की सुविचारित राय थी कि याचिकाकर्ता के सोशल मीडिया पोस्ट में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा मिलने की संभावना हो, या सार्वजनिक शांति और शांति भंग होने की संभावना हो।

कोर्ट ने कहा,

"यह प्रासंगिक कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता है; और लोगों को अपराध करने, अव्यवस्था या हिंसा या कानून का उल्लंघन करने या किसी भी तरह से हिंसा का महिमामंडन करने के लिए उकसाता नहीं है। बल्कि, यह लोगों को जागृत करता है।"

जहां तक आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध का सवाल है, अदालत ने कहा कि नायब तहसीलदार को सक्षम न्यायालय के समक्ष शिकायत दर्ज कराना आवश्यक है और सीधे पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती। न्यायालय ने इस प्रकार माना कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और कार्यवाही शुरू करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि संबंधित लोक सेवक द्वारा लिखित रूप में कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई।

कोर्ट ने आगे कहा,

"मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ कानूनी प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर गलत है। यह निर्धारित कानून के अनुरूप नहीं है। याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर मौलिक अधिकारों के टकराव में है। याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 19 के तहत भारत के संविधान द्वारा गारंटी दी गई है। याचिकाकर्ता का सोशल मीडिया पोस्ट केवल बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है और आईपीसी की धारा 505 (2) और 188 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।''

याचिका स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को सभी अपराधों और आरोपों से बरी कर दिया जाए।

याचिकाकर्ता के वकील: गौरव मिश्रा

प्रतिवादी के वकील: राजीव उपाध्याय

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