Punjab Ajnala Violence| 'कोई भी नागरिक भीड़ के बल पर न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता': हाईकोर्ट ने अमृतपाल के सहयोगियों को जमानत देने से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अजनाला पुलिस स्टेशन पर हमला (Punjab Ajnala Violence case) मामले में "वारिस पंजाब दे" प्रमुख अमृतपाल सिंह के कथित सहयोगियों की जमानत याचिका खारिज कर दी।
फरवरी में अमृतपाल ने भीड़ के साथ मिलकर अपने कथित सहयोगी को न्यायिक हिरासत से जबरन छुड़ाने की कोशिश में पंजाब के अजनाला में एक पुलिस स्टेशन पर कथित तौर पर हमला किया था।
जस्टिस कुलदीप तिवारी ने जमानत की राहत को खारिज करते हुए कहा,
"भीड़ के बल पर इस देश के किसी भी नागरिक को न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करने, या सार्वजनिक प्राधिकरण को चोट पहुंचाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जबकि वे अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं। इस स्तर पर यह न्यायालय आरोपों की सत्यता और/या, जांच एजेंसी द्वारा एकत्र किए गए सबूतों के साक्ष्य मूल्य के संबंध में कोई भी राय देने से परहेज करता है। उचित स्तर पर ट्रायल कोर्ट द्वारा इसकी सराहना की जानी चाहिए।"
ये टिप्पणियां भूपिंदर सिंह और अजयपाल सिंह की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की गईं, जिन्होंने कथित तौर पर पुलिस स्टेशन अजनाला को घेरने की अपनी योजना के बारे में मुख्य आरोपी अमृतपाल सिंह द्वारा सूचित किए जाने पर घटना में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियारों की व्यवस्था की थी। यह आरोप लगाया गया कि वर्तमान याचिकाकर्ताओं सहित अमृतपाल सिंह के नेतृत्व में भीड़ ने पुलिस की बैरिकेडिंग को तोड़ दिया और हथियारों से पुलिस कर्मियों को चोटें भी पहुंचाईं।
याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307, 353, 186, 332, 333, 506, 120-बी, 427, 148, 149 के तहत पुलिस स्टेशन अजनाला, जिला अमृतसर ग्रामीण में मामला दर्ज किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि उन्हें मौजूदा मामले में झूठा फंसाया गया, क्योंकि न तो उनका नाम एफआईआर में है, न ही सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए बयानों में है।
दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन भीड़ ने व्यावहारिक रूप से लगभग 4 घंटे की अवधि के लिए पुलिस स्टेशन अजनाला पर कब्जा कर लिया। इसके अलावा कई पुलिस अधिकारियों को गंभीर और लगभग घातक चोटें पहुंचाई, जिसमें एक एसपी रैंक अधिकारी के सिर पर चोट भी शामिल है।
पीठ ने आगे कहा कि राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार के निर्देशों और मार्गदर्शन के तहत पंजाब पुलिस द्वारा बड़ा अभियान चलाया गया, जिसके बाद वर्तमान एफआईआर में सह-आरोपी और मुख्य आरोपी अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
जवाब पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ स्पष्ट आरोप हैं कि उन्होंने सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर "पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ दी और हथियारों से पुलिस कर्मियों को चोटें भी पहुंचाईं।"
जस्टिस तिवारी ने याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई एलिबी की दलील को भी खारिज कर दिया,
"इस स्तर पर इसकी सराहना नहीं की जा सकती, क्योंकि जांच के दौरान, विभिन्न पुलिस अधिकारियों द्वारा उसकी पहचान स्थापित किए जाने से याचिकाकर्ता की दोषीता और भी मजबूत हो गई।"
कोर्ट ने यह भी याद किया कि अन्य सह-आरोपियों की जमानत याचिका भी खारिज कर दी गई, जिसमें यह देखा गया,
"इस घटना ने पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है।"
अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा,
"यह अदालत याचिकाकर्ता को नियमित जमानत पर रिहा करने के लिए इच्छुक नहीं है, केवल इसलिए कि उसे आठ महीने की कैद का सामना करना पड़ा है। नतीजतन, वर्तमान याचिका खारिज की जाती है।"
अपीयरेंस: याचिकाकर्ताओं के लिए वकील ईमान सिंह खारा। मोनिका जलोटा, पंजाब के लिए सीनियर डीएजी।
केस टाइटल: भूपिंदर सिंह @ शेरू बनाम पंजाब राज्य और अजय पाल बनाम पंजाब राज्य
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