पॉक्सो एक्ट | पीड़ित की उम्र निर्धारित करने के लिए स्कॉलर रजिस्टर पर्याप्त: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2024-01-29 03:30 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया है कि स्कूल एड‌मिशन रजिस्टर/स्कॉलर रजिस्टर एक वैध दस्तावेज है, जिस पर POCSO संबंधित अपराध की सर्वाइवर की उम्र को तय करने के लिए भरोसा किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि अभियोजक और अन्य गवाहों की गवाही को तब तक अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता जब तक कि कोई ऐसा भौतिक विरोधाभास न हो, जो मामले की जड़ों तक जाता हो।

जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की सिंगल जज बेंच ने उम्र तय करने के ल‌िए मानदंडों को समझने के लिए जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य, (2013) 7 एससीसी 263 और रामस्वरूप बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2023) में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के ड‌ीविजन बेंच के फैसलों पर भरोसा किया।

कोर्ट ने कहा, “… अभियोजक की उम्र तय करने के लिए स्कॉलर रजिस्टर या एडमिशन रजिस्टर पर विचार किया जाएगा। चूँकि, स्कॉलर रजिस्टर (एग्जीबिट-P/7C) में पीड़िता की जन्मतिथि 18.04.2006 है, जिसका अर्थ है कि घटना की तारीख पर वह केवल 14 वर्ष और 6 महीने की थी…"।

हाईकोर्ट की इंदौर स्थित पीठ ने अभियुक्त/अपीलकर्ता की ओर से पीड़िता की जन्मतिथि के संबंध में उठाए गए तर्कों को अस्वीकार करते हुए पीड़िता को 18 वर्ष से कम उम्र की श्रेणी में शामिल किया। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि मार्कशीट या किसी अन्य प्रमाण पत्र के अभाव में पीड़िता की उम्र निर्णायक रूप से निर्धारित नहीं की जा सकती है।

जरनैल सिंह मामले में अदालत ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) नियम, 2007 के नियम 12(3) का हवाला देते हुए कहा था कि पीड़ित के साथ-साथ आरोपी व्यक्ति की उम्र निर्धारित करने के लिए यह POCSO अधिनियम के तहत पूरी तरह से लागू होगा।

इस नियम के अनुसार, आयु निर्धारण के लिए पहली प्राथमिकता मैट्रिक या समकक्ष प्रमाणपत्रों पर निर्भर है। उनकी अनुपस्थिति में, कोई भी उस स्कूल से जन्मतिथि प्रमाण पत्र पर भरोसा कर सकता है, जिसमें पहली बार भाग लिया था। यदि इनमें से कोई भी उपलब्ध नहीं है तो निगम, नगर पालिका या पंचायत द्वारा दिया गया जन्म प्रमाण पत्र सहायक होगा। उपरोक्त तीनों के अभाव में मेडिकल बोर्ड का गठन कर आयु निर्धारण हेतु चिकित्सकीय राय ली जायेगी।

रामस्वरूप में मध्य प्रदेश ‌हाईकोर्ट पहले ही यह मान चुका है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 35 के अनुसार आयु निर्धारण के लिए स्कूल रजिस्टर एक स्वीकार्य और प्रासंगिक दस्तावेज है। निष्कर्ष को मजबूत करने के लिए हाईकोर्ट ने तब अश्वनी कुमार सक्सेना बनाम एमपी राज्य, 2012 एआईआर एससीडब्ल्यू 5377 में शीर्ष अदालत के फैसले पर भी भरोसा किया था, जहां यह कहा गया था कि जिस स्कूल में पीड़िता ने पहली बार दाखिला लिया था, उसका एडमिशन रजिस्टर उम्र तय करने के लिए पर्याप्त है।

वर्तमान मामले में अभियोजन साक्ष्य की विश्वसनीयता पर अदालत का मानना ​​था कि अभियोजन पक्ष और उसके पिता के बयान जिरह में भी बेदाग रहे। अदालत ने कहा कि जिस डॉक्टर ने पीड़िता की जांच की, उसने छेड़छाड़ के कारण बांहों और छाती के दोनों किनारों पर खरोंच के निशानों की भी पुष्टि की है।

परिणामस्वरूप, अदालत ने अपील खारिज कर दी और आईपीसी की धारा 354 और POCSO अधिनियम की धारा 7/8 के तहत अपराध के लिए आरोपी की सजा को बरकरार रखा। POCSO अधिनियम की धारा 7/8 के तहत अपराधों के लिए, सजा की न्यूनतम अवधि 3 वर्ष है। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने केवल 2 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने आगे कहा, इसलिए, पहले से दी गई सजा में किसी भी तरह की और कमी नहीं की जा सकती है।

केस टाइटलः फरीद खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

केस नंबरः क्रिमिनल अपील नंबर 8359/2023

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