सप्तपदी संपन्न होने तक कोई भी हिंदू विवाह वैध नहीं माना जाएगा: मध्य प्रदेश हाइकोर्ट
मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून में विवाह अनुबंध नहीं है और जब तक सप्तपदी नहीं हो जाती, तब तक वैध विवाह नहीं कहा जा सकता।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने इस पूरे मामले में 4 याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका खारिज की। मामले में चारों याचिकाकर्ताओं ने अपने खिलाफ धारा 366 (abducting or inducing women to compel her marriage), 498- ए (cruelty), 34 (common intention) के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने पीड़िता का अपहरण किया और उसे जबरन जबलपुर ले आए। इसके बाद वे उसे हाइकोर्ट परिसर में ले गए और पीड़िता और याचिकाकर्ता नंबर 1 की शादी से संबंधित विशिष्ट दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया।
एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि विवाह (पीड़ित और याचिकाकर्ता नंबर 1 के बीच) माला (वरमाला) के आदान-प्रदान और मांग में सिन्दूर भरने की रस्म का पालन करके किया गया। शादी के उनके दावे को पुख्ता करने के लिए एक विवाह प्रमाणपत्र भी पेश किया गया।
वहीं अपने आदेश में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लेख नहीं कर सके, जो माला (वरमाला) के आदान-प्रदान द्वारा विवाह के प्रदर्शन को स्वीकार करता हो। अदालत ने वैध हिंदू विवाह के लिए सप्तपदी के प्रदर्शन के महत्व पर भी जोर दिया।
इस कारण न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा उठाया गया आधार कि याचिकाकर्ता नंबर 1 और अभियोक्ता वैध रूप से विवाहित जोड़े हैं, पीड़िता द्वारा उसके अपहरण के बारे में दिए गए बयान के आलोक में विशेष रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता।
अदालत ने आगे कहा कि पीड़िता के आरोपों के अनुसार, उसे जबरन जबलपुर ले जाया गया और कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। इसलिए एफआईआर में उल्लिखित सामग्री पर विचार करते हुए यह स्पष्ट है कि ये आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय मामला है।
अदालत ने कहा,
“यह कानून का अच्छी तरह से स्थापित सिद्धांत है कि इस न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 482/भारत के संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए अजन्मे बच्चे को नहीं मारना चाहिए। प्रतिवादियों/पुलिस को सबूत इकट्ठा करने से रोककर की जांच को रोकना नहीं चाहिए।”
पूरे मामले को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि हस्तक्षेप की आवश्यकता वाला कोई मामला नहीं बनता। इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल - अजय कुमार जैन और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।
केस को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें