केरल हाइकोर्ट ने नॉन-क्रीमी लेयर ओबीसी सर्टिफिकेट के लिए याचिका खारिज की, कहा- सर्टिफिकेशन के लिए वंशानुगत व्यवसाय में संलग्न होना आवश्यक
केरल हाइकोर्ट ने 'नॉन-क्रीमी लेयर' सर्टिफिकेशन की याचिका इस आधार पर खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता वर्गीकरण के लिए योग्य नहीं होगा, क्योंकि यह केवल अपने वंशानुगत व्यवसाय में लगे व्यक्तियों पर लागू होता है।
जस्टिस देवन रामचंद्रन की एकल न्यायाधीश पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी, जहां याचिकाकर्ता को तहसीलदार और उप-कलेक्टर द्वारा नॉन-क्रीमी लेयर सर्टिफिकेट देने से इनकार किया था।
अदालत ने बताया कि याचिकाकर्ता के पिता द्वितीय श्रेणी के सरकारी अधिकारी हैं। अपने पूर्वजों के पारंपरिक व्यवसाय में शामिल हुए बिना और इस तरह याचिकाकर्ता नॉन-क्रीमी लेयर के तहत योग्य नहीं होगा।
वंशावली अध्ययन के बाद याचिकाकर्ता को सर्टिफीकेट देने से इनकार किया, जिसमें पाया गया कि याचिकाकर्ता 'हिंदू नाइकन' समुदाय का हिस्सा है, न कि 'तुलुवा नाइकन' समुदाय का, जिसके बाद वाला हिस्सा केरल की ओबीसी सूची में शामिल है।
याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि यह वर्गीकरण अप्रासंगिक है, क्योंकि उसके पिता चिनाई के पारंपरिक काम में लगे हुए हैं, जो उनके पूर्वजों का व्यवसाय है। इसी ने उन्हें बहिष्करण के नियमों के अनुसार 'नॉन-क्रीमी लेयर' के तहत वर्गीकृत करने के योग्य बनाया।
पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि बहिष्कार के नियम केवल उन व्यक्तियों पर लागू होंगे, जो कारीगरों के रूप में काम कर रहे हैं या वंशानुगत व्यवसायों में लगे हुए हैं।
अदालत ने याचिकाकर्ता के दावों पर भी विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि पिता की जाति का वर्गीकरण 'तुलुवा नायकन' गलती है, सही श्रेणी 'हिंदू नायकन' है। यह माना गया कि केवल ऐसा सर्टिफिकेट ही उसके लिए पात्र होगा।
याचिकाकर्ताओं के वकील- आर रेजी कुमार और पीआर जयकृष्णन
केस टाइटल- चंदिनी सीके बनाम केरल राज्य और अन्य।
केस नंबर- WP(C) नंबर 2126 ऑफ़ 2023