कोई अपराध न होने पर पासपोर्ट को जांच एजेंसी जब्त नहीं कर सकती: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने कहा कि उक्त दस्तावेज़ के साथ कोई अपराध न होने या किए जाने का संदेह होने पर जांच एजेंसियों द्वारा पासपोर्ट को जब्त या अपने पास नहीं रखा जा सकता।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने NDPS Act के तहत गिरफ्तार किए गए आरोपी द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें उसके पासपोर्ट और उसके मोबाइल फोन और बहरीन पहचान पत्र को जारी करने की मांग की गई, जिसे NCB के खुफिया अधिकारी ने जब्त कर लिया।
कोर्ट ने कहा,
"किसी व्यक्ति का पासपोर्ट महत्वपूर्ण दस्तावेज है और पासपोर्ट अधिनियम, 1967 (Passport Act ) के प्रावधानों के तहत जारी किया जाता है। उक्त दस्तावेज़ के साथ किए गए या किए जाने वाले किसी भी अपराध की अनुपस्थिति में जांच एजेंसियां पासपोर्ट को जब्त या बनाए नहीं रखा जा सकता। किसी दस्तावेज़ को जब्त करना यदि इसे संपत्ति के रूप में माना जा सकता है तो CrPc की धारा 102 के तहत होना चाहिए और उसमें निर्धारित शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए। एक दस्तावेज़ आम तौर पर धारा 104 CrPc के तहत जब्त किया जाता है और यह केवल न्यायालय द्वारा ही किया जा सकता है।"
पीठ ने आगे स्पष्ट किया की CrPc की धारा 104 के बावजूद न्यायालय द्वारा भी पासपोर्ट को जब्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि उक्त प्रावधान अदालत को पासपोर्ट के अलावा किसी भी दस्तावेज या चीज को जब्त करने में सक्षम करेगा। पासपोर्ट एक्ट, 1967 की धारा 10(3) के तहत पासपोर्ट जब्त करने की शक्ति केवल पासपोर्ट प्राधिकरण के पास है।
जहां तक वर्तमान मामले का सवाल है, जांच एजेंसी ने तर्क दिया कि आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन जमानत आदेश में शर्त यह है कि वह ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना केरल राज्य नहीं छोड़ेगा। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि उसका पासपोर्ट जारी करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। आगे तर्क दिया गया कि यदि पहचान पत्र और अन्य सामग्री वापस कर दी गई तो वह उसका दुरुपयोग कर सकता है।
इन दलीलों को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा,
"याचिकाकर्ता को जमानत देने के आदेश में उसे पासपोर्ट जमा करने का निर्देश देने वाली कोई शर्त नहीं है। यह प्रतिबंध कि याचिकाकर्ता कोर्ट की अनुमति के बिना केरल के बाहर यात्रा नहीं करेगा, उसका पासपोर्ट बरकरार रखने का कारण नहीं हो सकता। दूसरे प्रतिवादी का कहना है कि यदि पासपोर्ट याचिकाकर्ता को वापस कर दिया गया तो वह देश छोड़ देगा और फरार हो जाएगा। मेरे अनुसार, यह अस्थिर तर्क है, क्योंकि अदालत ने पहले ही यह शर्त लगा दी कि वह केरल के बाहर यात्रा नहीं करेगा। लंबा समय जमानत आदेश में किसी शर्त के बिना भी पासपोर्ट को अपने पास रखना ज़ब्त करने जैसा होगा, जो कानून के विपरीत है।"
जहां तक उनके मोबाइल और आईडी का सवाल है, कोर्ट ने उन्हें यह कहते हुए रिहा करने का आदेश दिया,
"अगर मोबाइल फोन को फोरेंसिक विश्लेषण के अधीन करना आवश्यक है तो अब तक ऐसा किया जाना चाहिए। यदि फोरेंसिक विश्लेषण पहले ही किया जा चुका है तो दूसरे प्रतिवादी के पास मोबाइल फोन रखने का कोई उद्देश्य नहीं है। इसी तरह याचिकाकर्ता के पहचान पत्र का जांच में कोई उपयोग नहीं है। इसलिए उस दस्तावेज़ को भी याचिकाकर्ता को तुरंत वापस करना आवश्यक है।"
याचिकाकर्ताओं के वकील- वीवी जॉय, रजित और रामकृष्णन एमएन
प्रतिवादियों के वकील- वी श्रीजा, के आर राजगोपालन नायर और नवनीत एन नाथ
केस टाइटल- दाऊद बनाम केरल राज्य एवं अन्य।
केस नंबर- सी.आर.एल. 2022 का एमसी नंबर 5301
साइटेशन- लाइवलॉ (केर) 65 2024