पति-पत्नी के रूप में साथ रहने वाले पक्ष भरण-पोषण का आदेश देने के लिए पर्याप्त, CrPc की धारा 125 के तहत विवाह के पुख्ता प्रमाण की आवश्यकता नहीं: झारखंड हाइकोर्ट
महिला को भरण-पोषण का अनुदान रद्द करने के लिए दायर पुनर्विचार आवेदन खारिज करते हुए झारखंड हाइकोर्ट ने कहा कि CrPc की धारा 125 के तहत कार्यवाही में विवाह के दस्तावेजी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है, खासकर जब साक्ष्य रिकॉर्ड पर हो। आवेदक प्रतिवादी के साथ पति-पत्नी के रूप में रह रहा है।
जस्टिस गौतम कुमार चौधरी ने कहा,
''विवाह के दस्तावेजी साक्ष्य पर सभी मामलों में जोर नहीं दिया जा सकता। खासकर CrPc की धारा 125 के तहत कार्यवाही में, यदि दोनों पक्ष पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहते हैं तो विवाह की धारणा बनाई जा सकती है।
उपरोक्त फैसला एडिशनल चीफ जस्टिस द्वितीय, फैमिली रांची द्वारा मूल भरण-पोषण मामले में पारित आदेश रद्द करने के लिए दायर पुनर्विचार आवेदन में आया। उक्त आदेश के तहत CrPc की धारा 125 के तहत रखरखाव के लिए आवेदन की अनुमति दी गई। याचिकाकर्ता को पत्नी को प्रति माह 5000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश भी दिया गया।
आवेदक के अनुसार, दोनों पक्ष मार्च 2013 में विवाह बंधन में बंधे। वही शुरुआती दिनों में उनके वैवाहिक संबंध सामान्य हैं। लेकिन समय के साथ उन्होंने रिश्ते में खटास आने का आरोप लगाया, जिसके कारण याचिकाकर्ता के आचरण के कारण कथित तौर पर आवेदक को दो बार गर्भपात का सामना करना पड़ा।
इसके अतिरिक्त भरण-पोषण आवेदन में कहा गया कि याचिकाकर्ता शुरू में 25,000 रुपये की मासिक आय के साथ मोबाइल मरम्मत और रियल एस्टेट व्यवसाय में लगा हुआ। लेकिन बाद में दिव्यांग आरक्षण श्रेणी के तहत सरकारी नौकरी हासिल की। इसके बाद उसने कथित तौर पर आवेदक को छोड़ दिया, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ थी।
इसके विपरीत, बचाव पक्ष ने उक्त मंदिर की समिति द्वारा जारी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि ऐसी कोई शादी नहीं हुई थी।
निचली अदालत ने निर्धारित किया कि हालांकि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu marriage Act ) के तहत कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है। इसमे कहा गया कि आवेदक को CrPc की धारा 125 के तहत भरण-पोषण उद्देश्यों के लिए याचिकाकर्ता की पत्नी माना जा सकता है। नतीजतन, अदालत ने 5,000 रुपये का मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया।
इस फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता पति ने पुनर्विचार आवेदन दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि आवेदक पत्नी ने कानूनी तौर पर उससे शादी नहीं की थी। आवेदक के मुताबिक, शादी मंदिर में हुई थी, लेकिन शादी के दावे को साबित करने के लिए सबूत के तौर पर कोई प्रमाणपत्र पेश नहीं किया गया।
मामले में गवाहों की गवाही की जांच के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आवेदक का समर्थन करने वाले गवाहों ने लगातार विवाह के अस्तित्व की पुष्टि की है, जबकि प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत गवाहों ने लगातार इस तरह के मिलन से इनकार किया।
अदालत ने साक्ष्य में आवेदक को याचिकाकर्ता के साथ दर्शाने वाली तस्वीरों को शामिल करने पर भी गौर किया, जो निर्विरोध रही है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि शादी के दस्तावेजी साक्ष्य पर जोर देना हर मामले में अनिवार्य नहीं है, खासकर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 125 के तहत कार्यवाही में।
अदालत ने पाया कि प्रतिवादी ने आवेदक की शादी के संबंध में असंगत और बदलती स्थिति प्रस्तुत की। कुछ गवाहों ने दावा किया कि उसकी शादी पप्पू नाम के व्यक्ति से हुई, जिसके लिए आवेदक ने कन्यादान आवेदन प्रस्तुत किया। इसके विपरीत, अन्य गवाह ने दावा किया कि उसकी शादी अशोक करमाली से हुई, जबकि एक अन्य ने कहा कि उसकी शादी अशोक करमाली और सरोज कुमार नामक व्यक्ति दोनों से हुई।
न्यायालय ने कहा,
''जैसा कि चर्चा की गई, विवाह के साथ साथ रहने की धारणा खंडन योग्य धारणा है, लेकिन उक्त धारणा का खंडन करने के लिए कुछ सुसंगत सामग्री होनी चाहिए। बचाव का मुख्य तर्क यह है कि याचिकाकर्ता की आवेदक से शादी नहीं हुई थी, क्योंकि वह शादी से पहले से शादीशुदा थी। आवेदक की पिछली शादी के संबंध में कोई सुसंगत मामला नहीं है। इसलिए कोई ठोस सबूत तो दूर की बात है।''
विरोधाभासी साक्ष्यों के मद्देनजर, विवाह की धारणा का खंडन नहीं किया जाता है और आवेदक की पूर्व शादी की दलील स्वीकार नहीं किया जा सकता। मुझे ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज तथ्य के निष्कर्षों से असहमत होने का कोई कारण नहीं दिखता, केवल मंदिर प्रबंधन द्वारा जारी किए जाने वाले कथित दस्तावेज़ के आधार पर, जिसे ठीक से साबित भी नहीं किया गया, और इसे प्रदर्शनी के रूप मेंपहचान के लिए Z चिह्नित किया गया। कोर्ट ने इस दलील खारिज करते हुए कहा कि आवेदक की याचिकाकर्ता से शादी नहीं हुई।
अदालत ने स्वीकार किया कि आवेदक दिव्यांग व्यक्ति है और भरण-पोषण आवेदन के आधार पर मोबाइल मरम्मत व्यवसाय में लगा हुआ और रियल एस्टेट से आय अर्जित करता था, जिसके परिणामस्वरूप 25,000/- रुपये की मासिक आय होती थी। वहीं अदालत ने मोबाइल रिपेयरिंग व्यवसाय के स्थान, मासिक आय में योगदान देने वाले किसी भी भूमि लेनदेन और याचिकाकर्ता की सरकारी नौकरी के बारे में विवरण की कमी देखी गई और साथ ही याचिकाकर्ता द्वारा रखे गए विभाग या पद के बारे में गवाहों द्वारा कोई जानकारी प्रदान नहीं की गई।
इसके बाद में, अदालत ने निर्धारित किया कि याचिकाकर्ता की आय का अनुमान उनकी स्थितियों के निष्पक्ष मूल्यांकन के आधार पर ही लगाया जा सकता। इस पर विचार करते हुए अदालत ने 20,000 रुपये के शुरुआती आय आकलन को अधिक माना और निष्कर्ष निकाला कि 10,000 रुपये से 12,000 रुपये के बीच की आय अधिक उचित अनुमान होगी। नतीजतन, अदालत ने याचिकाकर्ता को 3,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया। इसे उचित मानते हुए आवेदक को 3,000/- प्रति माह दिया जाएगा।
तदनुसार, न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी।
अपीयरेंस
याचिकाकर्ता के लिए वकील- जसविंदर मजूमदार।
प्रतिवादी के लिए वकील- अल्पना वर्मा।
केस नंबर: सीआर. 2022 का संशोधन क्रमांक 946
केस टाइटल- राम कुमार रवि बनाम झारखंड राज्य एवं अन्य।
एलएल साइटेशन- लाइव लॉ (झा) 14 2024
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