POCSO Act की धारा 4 | बच्चे के प्राइवेट पार्ट से लिंग का केवल छूना जाना भी यौन उत्पीड़न: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2024-01-30 08:46 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी भतीजियों के साथ यौन उत्पीड़न करने के आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत देने से इनकार किया कि यौन इरादे से पीड़िता की योनि में लिंग को छूना भी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 4 के तहत नाबालिग पर प्रवेशात्मक यौन हमला है।

जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा,

“पेनेट्रेटिव यौन हमले के मामले में भी यह जरूरी नहीं है कि पीड़िता के हाइमन, लेबिया मेजा, लेबिया मिनोरा में कुछ चोट हो। केवल पीड़ित के निजी अंग से लिंग को छूना भी POCSO Act की धारा 4 के तहत अपराध है।"

अदालत ने POCSO Act की धारा 3 (A) और 3 (B) में उल्लिखित वाक्यांश 'किसी भी हद तक घुसाना या घुसना' की व्याख्या की, जो प्रजनन अंगों को छूने के लिए प्रवेशन यौन हमले का वर्णन करता है। अपराध के लिए न्यूनतम सज़ा धारा 4 के तहत निर्धारित है और 20 वर्ष है।

मामला

आरोपी पीड़िता का फुफा यानी उसके पिता की बहन का पति है। यह अंतरधार्मिक प्रेम विवाह है। फुफा यानी मुस्लिम ने आरोपी हिंदू व्यक्ति से शादी की थी।

पीड़िता की मां ने आरोप लगाया कि उसकी 9 और 13 साल की दो बेटियों की 2016-2019 के बीच कई बार यौन शोषण किया गया, जब बच्चे उसके घर गए। उसने कथित तौर पर उन्हें अश्लील वीडियो दिखाए, उनकी नग्न तस्वीरें क्लिक कीं और धमकी दी कि अगर उन्होंने इसका खुलासा किया तो उन्हें लीक कर देगा।

लड़कियों ने आगे आरोप लगाया कि आदमी ने उनके निजी अंगों को गलत तरीके से छुआ। जब भी पीड़िता के द्वारा यौन शोषण के बाद खून बहने या पेट में दर्द होता था तो वह कुछ दवाएं और गोलियां देता था। वर्ष 2021 में आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 (2) (F), (I), (N) 500, 506 और IT Act, 2000 की धारा 43 (ए) और 67-ए इसके अतिरिक्त POCSO Act की धारा 4, 6, 8 और 12 के तहत और धाराओं के तहत भी आरोप लगाया गया।

बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि परिवार में संपत्ति विवाद के कारण मामला गढ़ा गया। उन्होंने दावा किया कि बंटारा मुकदमा लंबित है और भाई चाहते हैं कि उनकी पत्नी को NOC दिया जाए।

इसके अलावा उन्होंने दावा किया कि मेडिकल रिपोर्ट आरोपों का समर्थन नहीं करती, क्योंकि पीड़ितों पर कोई प्रत्यक्ष चोट नहीं थी।

हालांकि न्यायालय ने सीआरपीसी धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़ितों के बयानों के साथ-साथ आरोपी और पीड़ित के बीच इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन, साथ ही आरोपी और पीड़ित के पिता के बीच संचार पर भरोसा किया।

पीड़िता के पिता से की गई बातचीत के संबंध में अदालत ने कहा,

''प्रथम दृष्टया, यह इंगित करता है कि आवेदक के मन में पश्चाताप की भावना थी, क्योंकि उसके द्वारा जो कुछ भी किया गया, उसका उसके पापा के दोस्त के बचपन के समान अनुभव से कुछ लेना-देना था।"

जहां तक ​​कथित तौर पर आरोपी द्वारा पीड़ितों को भेजे गए मैसेज का सवाल है, अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह दर्शाता है कि कैसे आरोपी ने "परिवार के बुजुर्ग व्यक्ति के रूप में उस पर जताए गए भरोसे को धोखा देकर भोली-भाली पीड़िता को योजनाबद्ध तरीके से बहकाया।"

अदालत ने आगे कहा कि इस बात की संभावना नहीं है कि कोई मजबूत मेडिकल साक्ष्य होगा, क्योंकि घटना की सूचना देर से दी गई थी।

इसके अलावा, न्यायालय ने माना कि POCSO Act की धारा 3 (A) और (B) के अनुसार, किसी नाबालिग के निजी अंगों में यौन इरादे से लिंग का हल्का-सा प्रवेश या स्पर्श भी "प्रवेशक यौन हमला" है। अपराध साबित करने के लिए हाइमन का टूटना जैसी शारीरिक चोटें आवश्यक नहीं हैं।

न्यायालय ने बाल पीड़ितों की चिकित्सा जांच के लिए दिशानिर्देशों पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि बच्चों को अधिक आसानी से धमकी दी जाती है और दुर्व्यवहार अक्सर बच्चे के परिचित और विश्वसनीय व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। इसलिए भौतिक साक्ष्य के अभाव में भी बच्चे के बयानों पर विश्वास किया जाना चाहिए।

यह देखते हुए कि आरोपी पीड़ितों का करीबी रिश्तेदार है, उसकी रिहाई से नाबालिगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और उन्हें आघात पहुंच सकता है। अदालत को आशंका है कि जमानत पर रिहा होने पर वह पीड़ितों और अन्य गवाहों को प्रभावित कर सकता है।

अदालत ने जमानत देने से इनकार करते हुए कहा,

"इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि आवेदक के खिलाफ आरोप पूरी तरह से मनगढ़ंत या झूठे हैं। आवेदक ने वास्तव में पीड़िता द्वारा उस पर जताए गए भरोसे को धोखा दिया। उसके साथ छेड़छाड़ करने के अपने अवैध कृत्य को अंजाम देने में सफल रहा, जो निश्चित रूप से न केवल POCSO Act के तहत, बल्कि आईपीसी के प्रावधान के तहत भी अपराध है।"

केस नंबर- आपराधिक जमानत आवेदन नंबर 1207 दिनांक 2022

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