गुजरात हाईकोर्ट ने 10 करोड़ रुपये से अधिक के इनपुट टैक्स क्रेडिट का धोखाधड़ी से लाभ उठाने के आरोपी व्यक्ति को जमानत दी
गुजरात हाईकोर्ट ने उन कंपनियों से फर्जी लेनदेन दिखाकर 10 करोड़ रुपये से अधिक के इनपुट टैक्स क्रेडिट का धोखाधड़ी से लाभ उठाने के आरोपी एक व्यक्ति को ज़मानत दे दी, जिनका जीएसटी पंजीकरण रद्द कर दिया गया था।
जीएसटी अधिकारियों के वकील ने आवेदन का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आवेदक ने शुरुआत में आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि जैसे दस्तावेजों के आधार पर जाली फर्में बनाईं और उसके बाद, उन फर्मों के साथ फर्जी लेनदेन दिखाए।
इसके आधार पर यह तर्क दिया गया कि आवेदक ने 10 करोड़ रुपये से अधिक के इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा किया था और उद्देश्य पूरा होने के बाद, उपरोक्त बनाई गई फर्मों का पंजीकरण रद्द कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि लेनदेन फर्जी नहीं थे और उसने वास्तव में कई फर्मों से सामान खरीदा था। हालांकि, सामान खरीदने के बाद, उन फर्मों की ओर से कुछ चूक के कारण, उनका जीएसटी पंजीकरण रद्द कर दिया गया और आवेदक की इसमें कोई भूमिका नहीं थी।
जस्टिस एमआर मेगडे ने अपने आदेश में कहा:
"वर्तमान अपराध में, जांच पूरी हो चुकी है और शिकायत दर्ज कर ली गई है। आवेदक के विरुद्ध अभियोजन पक्ष का यह मामला है कि उसने अभिलेखों में कुछ काल्पनिक लेनदेन दर्शाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ प्राप्त किया था, जबकि वास्तव में आवेदक ने किसी भी संबंधित फर्म से ऐसा कोई सामान नहीं खरीदा था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, वर्तमान आवेदक ने ही ये फर्में बनाई थीं और इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ प्राप्त किया था। आवेदक के विरुद्ध आरोपित अपराध के लिए 5 वर्ष तक के कारावास की सजा हो सकती है। आवेदक को वर्तमान अपराध के संबंध में दिसंबर 2024 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, वर्तमान आवेदन विचारणीय है और इसलिए, वर्तमान आवेदन को स्वीकार किया जाता है।"
अदालत ने कहा कि उसने तथ्यों, आरोपों की प्रकृति और आवेदक की कथित भूमिका पर विचार किया है और प्राथमिकी तथा पुलिस के कागजात का अवलोकन किया है। उसने आगे कहा कि उसने सत्र न्यायालय द्वारा आवेदक की जमानत खारिज करने के पूर्व आदेश पर भी गौर किया है।
हाईकोर्ट ने उन्हें 10,000 रुपये के निजी मुचलके और उतनी ही राशि की एक ज़मानत पर कुछ शर्तों के अधीन ज़मानत दे दी। अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि निचली अदालत ज़मानत आदेश में हाईकोर्ट द्वारा की गई प्रथम दृष्टया टिप्पणियों से प्रभावित नहीं होगी।