बांग्लादेश से हो रहा अवैध प्रवास बदल रहा असम की जनसांख्यिकी, राज्य में बढ़ रहा है असंतोष: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Update: 2025-11-07 10:56 GMT

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि बांग्लादेश से हो रहा अवैध प्रवास असम की जनसांख्यिकी (demography) को बदल रहा है, जिसके कारण राज्य में व्यापक असंतोष फैल रहा है।

कोर्ट ने यह भी माना कि राज्य सरकार के पास “घोषित विदेशी नागरिकों” (declared foreign nationals) को देश से बाहर निकालने की पूरी शक्ति है। अगर किसी कारण से ऐसे व्यक्तियों को निष्कासित (expel) नहीं किया जा सकता, तो राज्य सरकार उन्हें रोजगार पाने, भूमि खरीदने, भारतीय नागरिक से विवाह करने आदि से रोक सकती है — इसके लिए उपयुक्त नीति बनाकर या उन्हें विशेष “होल्डिंग क्षेत्रों” (holding centres) में रखकर।

जस्टिस कल्याण सुराणा और जस्टिस सुस्मिता फुकन खौंड की खंडपीठ ने कहा कि सरकार का घोषित विदेशी नागरिकों को होल्डिंग कैंप में रखना गलत नहीं है और इसे भारतीय नागरिकों की गिरफ्तारी के समान नहीं माना जा सकता।

खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के सरबानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ (2005) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अवैध प्रवास को असम में “बाहरी आक्रमण” (external aggression) माना गया था और यह अवलोकन आज भी सही है। कोर्ट ने कहा,

“अगर कोई असम के कोने-कोने में जाए, तो यह साफ दिखाई देता है कि अवैध प्रवासियों को सरकारी या वन भूमि तथा नदी के चार क्षेत्रों में बसने की अनुमति दी गई है, जहाँ भूमि के अभिलेख तक उपलब्ध नहीं हैं।”

कोर्ट ने कहा कि सरकार का दायित्व है कि वह देश की एकता और अखंडता को बनाए रखे, और बांग्लादेश से लगातार हो रहा अवैध प्रवास एक “आक्रमण” के समान है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह धारणा बनाना कि असम में धार्मिक उत्पीड़न (religious persecution) हो रहा है, गलत है और यह “मिथ्या प्रचार” (misinformation warfare) का उदाहरण है।

खंडपीठ ने आगे कहा,

“बांग्लादेश से निरंतर हो रहा अवैध प्रवास राज्य की जनसांख्यिकी को बदल रहा है और इससे असम में असंतोष बढ़ रहा है। ऐसे में भारत के नागरिकों को मिले संवैधानिक अधिकार किसी घोषित विदेशी नागरिक तक नहीं बढ़ाए जा सकते।”

मामले की पृष्ठभूमि:

एक महिला ने अपने पति की हिरासत के खिलाफ हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी। उसके पति को 2019 में विदेशी न्यायाधिकरण (Foreigners Tribunal) ने “विदेशी नागरिक” घोषित किया था। दो साल की हिरासत पूरी करने के बाद उसे 2021 में रिहा किया गया था, लेकिन मई 2025 में पुलिस ने फिर से हिरासत में ले लिया।

राज्य के गृह विभाग ने बताया कि उस व्यक्ति को केवल “दस्तावेज़ी सत्यापन” के लिए हिरासत में रखा गया है और प्रक्रिया पूरी होने के बाद केंद्र सरकार को सुपुर्द किया जाएगा ताकि उसे वापस भेजा जा सके।

कोर्ट के निष्कर्ष, कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति “deportation” (देश निकाला) का नहीं बल्कि “expulsion” (निष्कासन) का सामना कर रहा है, क्योंकि वह 25 मार्च 1971 की सीमा तिथि के बाद भारत (असम) में अवैध रूप से घुसा था।

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निष्कासन और देश निकाले (deportation) में फर्क है, “Deportation उस व्यक्ति के लिए होती है जिसने कानूनी रूप से प्रवेश किया लेकिन बाद में अवैध रूप से ठहरा, जबकि Expulsion अवैध रूप से आए विदेशी नागरिक के लिए होता है।”

कोर्ट ने कहा कि एक घोषित विदेशी नागरिक को भारतीय नागरिकों जैसे मौलिक अधिकार नहीं मिल सकते — जैसे स्वतंत्र रूप से घूमना, रहना या व्यापार करना। हालांकि, उसे “जीवन का अधिकार” (Right to Life) संविधान के तहत प्राप्त है।

अंत में, कोर्ट ने कहा कि विदेशी न्यायाधिकरण के आदेश के तहत हिरासत में रखे गए व्यक्ति का दावा कि उसकी गिरफ्तारी गैरकानूनी है, स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह कोई आपराधिक मामला नहीं है।

इसलिए, हाईकोर्ट ने महिला की हैबियस कॉर्पस याचिका खारिज कर दी।

Tags:    

Similar News