उपासक बिना किसी व्यक्तिगत हित के सरकारी भूमि पर मंदिर के विध्वंस को रोकने के लिए निषेधाज्ञा का दावा नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-10-10 04:11 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मंदिर के उपासक, जिसका मंदिर की संपत्ति पर कोई व्यक्तिगत हित नहीं है, उसको दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की भूमि पर अवैध रूप से निर्मित मंदिर के विध्वंस को रोकने के लिए राहत नहीं दी जा सकती।

जस्टिस तारा वितस्ता गंजू की एकल पीठ ट्रायल कोर्ट के आदेश को अपीलकर्ता की चुनौती पर विचार कर रही थी, जिसने DDA के खिलाफ स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा के साथ-साथ हर्जाने के लिए उनका मुकदमा खारिज कर दिया। अपीलकर्ता ने दावा किया कि वह स्थानीय निवासी है और पार्क में स्थित शिव मंदिर का उपासक है।

उसने दावा किया कि यह भूमि स्थानीय लोगों द्वारा 1969 में दान की गई। उसने यह आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया कि DDA विवादित भूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त करना चाहता है। उसने DDA के खिलाफ अनिवार्य निषेधाज्ञा और लगभग 3 लाख रुपये के हर्जाने की मांग की। न्यायालय ने CPC की धारा 91 का हवाला दिया, क्योंकि अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई राहत की प्रकृति सार्वजनिक उपद्रव या जनता को प्रभावित करने वाले गलत कार्यों के दायरे में आती है।

धारा 91 CPC के अनुसार, सार्वजनिक उपद्रव या जनता को प्रभावित करने वाले गलत कार्यों के मामलों में घोषणा या निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा एडवोकेट जनरल द्वारा या न्यायालय की अनुमति से दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा शुरू किया जा सकता है, भले ही ऐसे व्यक्तियों को कोई विशेष नुकसान न पहुंचा हो।

यहां न्यायालय ने नोट किया कि मुकदमा ए़डवोकेट जनरल द्वारा या न्यायालय की अनुमति से दो या अधिक व्यक्तियों द्वारा दायर नहीं किया गया। चूंकि अपीलकर्ता मुकदमे में अकेला वादी था, इसलिए न्यायालय ने कहा कि धारा 91 CPC का पालन नहीं किया गया।

न्यायालय ने देखा कि अपीलकर्ता मुकदमे की भूमि पर किसी भी स्वामित्व का दावा नहीं कर रहा था। इस बात पर विवाद नहीं करता था कि भूमि DDA की है। इसने नोट किया कि अपीलकर्ता द्वारा 'मंदिर के उपासक' के रूप में मुकदमा दायर किया गया।

इस प्रकार, इसने नोट किया कि चूंकि अपीलकर्ता के पास मुकदमे की भूमि के संबंध में मुकदमा करने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है, इसलिए धारा 91 (2) भी वर्तमान मामले पर लागू नहीं होगी।

न्यायालय ने आगे कहा कि भले ही पूजा करने का अधिकार नागरिक अधिकार है। यह मुकदमे का विषय हो सकता है, लेकिन वर्तमान मामला ऐसा मुकदमा नहीं है।

न्यायालय ने कहा,

"अपीलकर्ता ने यह दावा नहीं किया कि उसे किसी भी तरह से किसी भी वैध मंदिर में पूजा करने से रोका या बाधित किया जा रहा है। अपीलकर्ता द्वारा जो करने की कोशिश की जा रही है, वह अचल संपत्ति/मंदिर में गैर-मौजूद अधिकार को लागू करना है, जो अवैध रूप से बनाया गया। साथ ही उस मंदिर के चारों ओर चारदीवारी भी बनाई गई। इस प्रकार, अपीलकर्ता के पूजा करने के नागरिक अधिकार को किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण द्वारा बाधित नहीं किया जा रहा है।"

न्यायालय ने विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 41 का भी उल्लेख किया, जो उन मामलों में निषेधाज्ञा देने पर रोक लगाती है, जहां कोई व्यक्तिगत हित शामिल नहीं है।

यहां न्यायालय ने पाया कि शिव मंदिर DDA के स्वामित्व वाले सार्वजनिक पार्क में है। अभिलेखों से पता चलता है कि अपीलकर्ता और क्षेत्र के अन्य निवासियों ने अनधिकृत रूप से कब्जा कर लिया है। मुकदमे की भूमि पर स्वामित्व या अनन्य कब्जे का दावा करने के लिए चारदीवारी का निर्माण किया है।

कोर्ट ने टिप्पणी की,

"निषेधाज्ञा के लिए मुकदमे की आड़ में अपीलकर्ता पिछले कई वर्षों से एक सार्वजनिक पार्क में अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने से रोकने में सफल रहा है। न्यायालय द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है।"

न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता के पास मुकदमे की भूमि पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं है। इसलिए वह DDA के खिलाफ निषेधाज्ञा का दावा नहीं कर सकता।

न्यायाल ने आगे कहा,

"बेशक, अपीलकर्ता के पास मुकदमे की भूमि पर कोई अधिकार या स्वामित्व नहीं है। प्रतिवादी/DDA ने सरकारी संपत्ति पर अवैध अतिक्रमण को हटाने का काम किया। इस न्यायालय को इस पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं मिला।"

केस टाइटल: अवनीश कुमार बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण और अन्य। (आरएफए 403/2023 और सीएम आवेदन 37124/2024)

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