राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अनुच्छेद 19(6) के तहत 'राज्य', इसका कार्यकारी निर्णय 'कानून' का गठन करता है: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-04-23 07:56 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(6) के प्रयोजनों के लिए एक "राज्य" है। जस्टिस सी हरि शंकर ने माना कि अनुच्छेद 19(6) के प्रयोजनों के लिए एनसीटीई की ओर से लिया गया कार्यकारी निर्णय "कानून" का गठन करेगा। अनुच्छेद 19(6) राज्य को आम जनता के हित में, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के जरिए दिए गए अधिकार के प्रयोग पर उचित प्रतिबंध लगाने वाला कोई भी कानून बनाने का अधिकार देता है।

अदालत ने कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि एनसीटीई अधिनियम की धारा 12 (सी) के तहत कानूनी रूप से प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए लिए गए एनसीटीई के निर्णय अनुच्छेद 19(6) के प्रयोजन के लिए "कानून" नहीं बनेंगे। कोर्ट ने कहा कि एनसीटीई द्वारा ऐसी शक्ति के प्रयोग में लिए गए निर्णय की तुलना किसी प्राधिकरण में निहित सामान्य प्रशासनिक शक्ति के प्रयोग में लिए गए सामान्य कार्यकारी निर्णय से नहीं की जा सकती है।

जस्टिस शंकर ने विभिन्न शिक्षक शिक्षा संस्थानों (TEIs) द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिन्होंने बीएड पाठ्यक्रम शुरू करने की अनुमति के साथ अपने संबंधित संस्थानों को शुरू करने के लिए आवेदन किया था। याचिकाकर्ता एनसीटीई की ओर से अपनी 55वीं आम सभा (जीबीएम) में शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए मान्यता प्राप्त सभी लंबित आवेदनों को वापस करने के फैसले से व्यथित थे। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) को लागू करने के लिए यह निर्णय लिया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि एनसीटीई का निर्णय पूरी तरह से कार्यकारी था और ऐसा कार्यकारी निर्णय अनुच्छेद 19(6) के अर्थ में "कानून" नहीं बन सकता है, क्योंकि यह अनुच्छेद 19(1)(जी) द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार, यानि कोई पेशा अपनाना या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारोबार करना, का हनन हो सकता है। अदालत ने फैसला सुनाया कि आक्षेपित निर्णय अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।

ज‌स्टिस शंकर ने कहा कि शिक्षक शिक्षा की मौजूदा प्रणाली से एनईपी 2020 में परिकल्पित शिक्षक शिक्षा की एकीकृत और समग्र प्रणाली में क्रमिक और निर्बाध बदलाव सुनिश्चित करने में सार्वजनिक हित का एक व्यापक और प्रमुख तत्व शामिल है।

कोर्ट ने कहा,

“एनईपी 2020 में व्यक्त की गई चिंताएं, और पूर्ववर्ती बीएड या डीईआईएड कार्यक्रम को बदलने के लिए शिक्षक शिक्षा की एक एकीकृत प्रणाली पर स्विच करने का परिणामी निर्णय, पूरी तरह से जनहित में है।”

निर्णय में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के आवेदनों पर कार्रवाई जारी न रखने और इसलिए उसे वापस करने का आक्षेपित निर्णय एनसीटीई अधिनियम की धारा 12 (सी) से वैध रूप से संबंधित था। कोर्ट ने कहा, एनसीटीई अधिनियम की धारा 12 (सी) एनसीटीई को स्टैंडअलोन संस्थानों द्वारा मान्यता के लिए लंबित आवेदनों पर आगे कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लेने का अधिकार देती है।

जस्टिस शंकर ने कहा कि उक्त निर्णय को लागू करने की शक्ति के साथ, ऐसे आवेदनों को वापस करने की शक्ति भी आएगी। कोर्ट ने कहा, “यहां तक ​​कि लंबित आवेदनों को वापस करने की किसी विशिष्ट शक्ति के अभाव में भी, निहित शक्तियों के सिद्धांत के आधार पर निर्णय को उचित ठहराया जा सकता है।”

टाइटल: पंड‌ित प्रसादी लाल काकाजी शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज बनाम राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद और अन्य और अन्य जुड़े मामले

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