S.125 CrPC | तलाक चाहने मात्र से ही पत्नी को भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2024-09-23 10:12 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पत्नी को केवल इसलिए भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह पर्याप्त कारणों से अपने पति का साथ छोड़ने के बाद तलाक चाहती है।

जस्टिस अमित महाजन ने आगे दोहराया कि केवल इसलिए कि पत्नी शिक्षित है, उसे भरण-पोषण से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता।

अदालत ने नवंबर 2022 में पारित फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पति की याचिका खारिज की, जिसमें पत्नी को 5,500 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया गया था।

यह भी निर्देश दिया गया कि महंगाई को देखते हुए हर दो साल बाद भरण-पोषण की राशि में 10% की बढ़ोतरी की जाएगी। फैमिली कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में 12,000 रुपये मुकदमेबाजी खर्च भी तय किया था।

जबकि पति ने अपनी आय 13,000 रुपये प्रति माह स्वीकार की थी। फैमिली कोर्ट ने दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी के आधार पर इसे 16,000 रुपये प्रति माह आंका था।

मामला यह था कि उसका पति शराबी है, जो उसे मारता-पीटता है। वह और उसके परिवार के सदस्य उसे अपर्याप्त दहेज के लिए परेशान करते थे और ताने मारते थे।

उसने यह भी आरोप लगाया कि पर्याप्त साधन होने के बावजूद पति ने उसका भरण-पोषण और खर्च उठाने में लापरवाही बरती।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की गवाही को विश्वसनीय और अधिक भरोसेमंद पाया और उसकी गवाही में कुछ मामूली विसंगतियों के कारण उक्त अवलोकन में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था।

जस्टिस महाजन ने दोहराया कि जब कोई व्यक्ति वैवाहिक विवाद में उलझा होता है तो आय को कम करके आंकने की प्रवृत्ति होती है। यहां तक कि आयकर रिटर्न भी ऐसे मामलों में वास्तविक आय का सटीक प्रतिबिंब प्रदान नहीं करता है।

अदालत ने कहा,

“याचिकाकर्ता द्वारा अपने माता-पिता के लिए किए गए खर्चों को दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है। याचिकाकर्ता का केवल यह कहना कि वह अपने माता-पिता के साथ रह रहा था, पर्याप्त नहीं है।”

इसमें कहा गया कि पति जो एक सक्षम व्यक्ति है, पर अपनी पत्नी को आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करने का दायित्व है। उसके द्वारा यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया कि वह खुद का भरण-पोषण करने में सक्षम है।

केस टाइटल- मनीष बनाम दिल्ली राज्य और अन्य।

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