दिल्ली हाईकोर्ट ने ABCD न सुनाने पर 3 वर्षीय बच्चे को थप्पड़ मारने वाले शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर खारिज की

Update: 2024-08-02 10:17 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में शिक्षक के खिलाफ एफआईआर खारिज की। उक्त शिक्षण ने कथित तौर पर तीन वर्षीय बच्चे को थप्पड़ मारा था, जो दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बाद ABCD सुनाने में विफल रहा था।

2015 में नाबालिग की मां द्वारा दर्ज की गई एफआईआर खारिज करते हुए जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि शिकायतकर्ता और शिक्षक इस मामले को खत्म करना चाहते हैं, जो मामूली मुद्दे पर उत्पन्न हुआ था और 9 साल की अवधि से लंबित है।

न्यायालय ने कहा,

"समझौता पक्षों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देगा और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की अनुमति देगा। साथ ही पक्षकारों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौते को देखते हुए दोषसिद्धि की संभावना कम है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता की पिछली किसी भी संलिप्तता को इस न्यायालय के संज्ञान में नहीं लाया गया।”

इसने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी रूप में बच्चे को शारीरिक दंड देना निंदनीय है, भले ही इसका उद्देश्य बच्चे को यह एहसास कराना हो कि उसका कृत्य अस्वीकार्य गलत या निराशाजनक है।

न्यायालय ने कहा,

“बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में यह भी प्रावधान है कि यह सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिए कि स्कूल अनुशासन को बच्चे की गरिमा के अनुरूप तरीके से लागू किया जाना चाहिए। किसी भी बच्चे को यातना या अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड नहीं दिया जाना चाहिए।”

जस्टिस मेंदीरत्ता ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की धारा 23 और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 323 और धारा 506 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।

एफआईआर में आरोप लगाया गया कि मां ने नाबालिग बच्चे के चेहरे पर चोट के निशान पाए, जिसने पूछताछ करने पर बताया कि शिक्षक ने उसे थप्पड़ मारा, क्योंकि वह ABCD' अक्षर नहीं सुना पा रहा था।

शिक्षक ने एफआईआर रद्द करने की याचिका इस आधार पर दायर की कि मार्च में उसके और शिकायतकर्ता की मां के बीच मामला सुलझ गया था।

उसका कहना था कि न तो उसकी ओर से नाबालिग को कोई नुकसान पहुंचाने या चोट पहुंचाने का कोई इरादा था और न ही एमएलसी में बाएं गाल और दाएं गाल पर चोट के निशान के अलावा ऐसा कोई स्पष्ट निशान दर्ज किया गया था।

मां ने अदालत को बताया कि मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया और बच्चे द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई।

यह देखते हुए कि आरोप पत्र दाखिल होने तक पीड़ित का बयान दर्ज नहीं किया गया

अदालत ने कहा,

“जांच एजेंसी ने यह पता लगाने के लिए भी कभी बाल मनोवैज्ञानिक/परामर्शदाता की सहायता नहीं ली कि क्या साढ़े तीन साल का बच्चा अपने चेहरे पर चोट के निशान का सही कारण बताने की स्थिति में है। आरोप पत्र केवल 'एक्स' की मां के बयान के आधार पर आगे बढ़ा।”

केस टाइटल- सुमन विजय बनाम दिल्ली सरकार और अन्य।

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