दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया

Update: 2024-12-12 11:37 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को भारतीय फिल्म उद्योग में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के आरोपों को उठाने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर विचार करने से इनकार किया।

एक्टिंग चीफ जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि जब पीड़ित पक्ष की ओर से कोई शिकायत नहीं की जाती है तो फिशिंग एंड रोविंग जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।

न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिका अनुमानों पर आधारित है। इसमें अनुभवजन्य डेटा का अभाव है और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली किसी भी व्यक्ति की कोई विशेष शिकायत नहीं है।

यह जनहित याचिका अजेश कलाथिल गोपी नामक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसमें जस्टिस (सेवानिवृत्त) के. हेमा समिति की रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए भारतीय फिल्म उद्योग में मौलिक और मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन की जांच करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया,

"मलयालम फिल्म उद्योग में यौन उत्पीड़न के पीड़ितों से प्राथमिक साक्ष्य और प्रत्यक्ष गवाही के आधार पर रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय फिल्म उद्योग दोनों में इसी तरह के मुद्दे बने हुए हैं। आज तक विशेष जांच दल ने हेमा समिति की रिपोर्ट के आधार पर 40 से अधिक एफआईआर दर्ज की हैं। यह आवश्यक विधायी संशोधनों की पहचान करने के लिए देश भर में व्यापक फिल्म उद्योग के अधिक गहन प्रामाणिक अध्ययन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।"

आगे कहा गया कि रिपोर्ट से पता चलता है कि यौन उत्पीड़न, हमला, दुर्व्यवहार और कास्टिंग काउच और यौन गुलामी फिल्म उद्योग के भीतर बनी हुई है। इस प्रकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत महिलाओं के मौलिक अधिकारों को बनाए रखने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया।

टाइटल: अजेश कलाथिल गोपी बनाम भारत संघ और अन्य

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