'हमें आपातकाल लगाना चाहिए या मार्शल लॉ?': दिल्ली हाइकोर्ट ने सीएम अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की मांगों को रोकने के लिए जनहित याचिका खारिज की

Update: 2024-05-08 09:30 GMT

दिल्ली हाइकोर्ट ने बुधवार को जनहित याचिका खारिज कर दी, जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे और राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रपति शासन लागू करने के संबंध में मीडिया हाउस पर दबाव बनाने और सनसनीखेज सुर्खियां प्रसारित करने से रोकने की मांग की गई।

पेशे से वकील श्रीकांत प्रसाद द्वारा दायर याचिका में शराब नीति मामले में न्यायिक हिरासत में चल रहे केजरीवाल को जेल से सरकार चलाने की अनुमति मांगी गई। इसमें वर्चुअल कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कैबिनेट मंत्रियों से बातचीत करने के लिए केजरीवाल के लिए आवश्यक व्यवस्था करने की भी मांग की गई।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की खंडपीठ ने 15 लाख रुपये के जुर्माने के साथ जनहित याचिका खारिज की। प्रसाद को एम्स में 1 लाख रुपए जमा कराने होंगे।

अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा,

“हम क्या करें? आपातकाल लगा दें? सेंसरशिप या मार्शल लॉ लगा दें? हम क्या करें? हम प्रेस और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ कैसे चुप्पी साधें?…हम ऐसा कैसे करें?।”

PIL में भाजपा दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा को केजरीवाल के इस्तीफे के लिए अवैध तरीकों से विरोध या बयानबाजी करके कोई अनुचित दबाव बनाने से रोकने और 10 अप्रैल को डीडीयू मार्ग पर विरोध प्रदर्शन के लिए अवैध भीड़ इकट्ठा करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की भी मांग की गई।

खंडपीठ ने कहा कि केजरीवाल ने ED द्वारा अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में पहले ही रिट याचिका दायर की है और सुप्रीम कोर्ट अंतरिम रिहाई के मुद्दे पर विचार कर रहा है, इसलिए PIL में उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कैबिनेट मंत्रियों से बातचीत करने की अनुमति देने के लिए कोई आदेश नहीं दिया गया।

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि वह न तो मीडिया को विचार प्रसारित न करने का निर्देश देकर सेंसरशिप लगा सकती है और न ही वह राजनीतिक विरोधियों को केजरीवाल के इस्तीफे की मांग करने वाले बयान देने से रोक सकती है।

अदालत ने कहा,

“आप 1000 रुपए का बैंक ड्राफ्ट अपने पास रख लें। 1 लाख लोग तैयार हैं, हम बस इतना ही कह सकते हैं।”

इसमें आगे कहा गया:

"क्या हम मार्शल लॉ लगा दें? कहें कि कोई भी श्री ए या बी के खिलाफ नहीं बोलेगा? हम क्या करें? सभी के खिलाफ़ मौन आदेश होगा।"

याचिका में आरोप लगाया गया कि सचदेवा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करके और राजनीतिक रूप से प्रेरित दुर्भावना के साथ यातायात और शांति को प्रभावित करके जबरदस्त दबाव की व्यवस्था कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया कि पिछले 7 वर्षों से दिल्ली के शासन का शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में शानदार ट्रैक रिकॉर्ड रहा है।

इसमें कहा गया कि राष्ट्रीय राजधानी की वर्तमान स्थिति भारत के संविधान के अनुच्छेद 21, 14 और 19 के तहत दिल्ली के लोगों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का चरम उल्लंघन है।

PIL में कहा गया कि न तो भारतीय संविधान और न ही किसी कानून ने मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री सहित किसी भी मंत्री को जेल से सरकार चलाने से रोका है। व्यक्तिगत रूप से पेश हुए प्रसाद ने कहा कि यदि कोई राजनीतिक प्रतिनिधि न्यायिक हिरासत में है तो वह RPA के तहत उल्लिखित अपराधी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा।

इस पर एसीजे ने कहा,

"आप वकील हैं न? आपने ग्रेजुएशन की डिग्री ली है न? हमें बताइए, क्या आपको लगता है कि न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत सेंसरशिप लगाते हैं? आप प्रेस के खिलाफ गैग ऑर्डर की मांग कर रहे हैं।"

भारत संघ की ओर से पेश एएसजी चेतन शर्मा ने कहा कि याचिका तथ्य और कानून के लिहाज से गलत है। उन्होंने कहा कि झारखंड के स्थायी निवासी प्रसाद ने परोक्ष उद्देश्यों से जनहित याचिका दायर की।

अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

"मुख्यमंत्री ने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए पहले ही सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर दी है। ED और सुप्रीम कोर्ट अंतरिम रिहाई के मुद्दे पर विचार कर रहे हैं। इसलिए जनहित याचिका में सीएम को कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों से बातचीत करने की अनुमति देने के लिए कोई आदेश नहीं दिया गया।”

केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 21 मार्च की रात को गिरफ्तार किया था। उनकी न्यायिक हिरासत 23 अप्रैल को समाप्त हो रही है। 10 अप्रैल को दिल्ली हाइकोर्ट ने केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। इसमें कहा गया कि ED पर्याप्त सामग्री अनुमोदकों के बयान और आप के अपने उम्मीदवार के बयान पेश करने में सक्षम है, जिसमें कहा गया कि केजरीवाल को गोवा चुनावों के लिए पैसे दिए गए थे।

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा की दिल्ली हाइकोर्ट की बेंच के उक्त आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को कुछ प्रतिबंधों के साथ जमानत पर रिहा करने का संकेत दिया। इस मामले में आप नेता मनीष सिसोदिया और संजय सिंह भी आरोपी हैं। सिसोदिया अभी भी जेल में हैं, जबकि सिंह को हाल ही में ED द्वारा दी गई रियायत के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत दी गई।

ED ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली आबकारी घोटाले के सरगना हैं और 100 करोड़ रुपये से अधिक की अपराध आय के उपयोग में सीधे तौर पर शामिल हैं।

ED का कहना है कि आबकारी नीति को कुछ निजी कंपनियों को थोक व्यापार में 12 प्रतिशत का लाभ देने की साजिश के तहत लागू किया गया। हालांकि मंत्रियों के समूह (GOM) की बैठकों के विवरण में ऐसी शर्त का उल्लेख नहीं किया गया।

केंद्रीय एजेंसी ने यह भी दावा किया कि विजय नायर और अन्य व्यक्तियों ने साउथ ग्रुप के साथ मिलकर थोक विक्रेताओं को असाधारण लाभ मार्जिन देने की साजिश रची थी।

एजेंसी के अनुसार नायर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की ओर से काम कर रहे थे।

केस टाइटल- श्रीकांत प्रसाद बनाम दिल्ली सरकार और अन्य

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