न्यायाधिकरण ने समाधान योजना को मंजूरी देते समय निष्पक्षता और तर्कसंगतता का फैसला किया, हाईकोर्ट ऐसा नहीं कर सकता- दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने लेनदारों की समिति (COC) के कमर्शियल विवेक की पुष्टि की। यह मामला हेलियो फोटो वोल्टेइक प्राइवेट लिमिटेड (कॉर्पोरेट देनदार) की कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान योजना (CIRP) में ई-नीलामी में उच्चतम बोली लगाने के बावजूद याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तावित समाधान योजना अस्वीकार करने से संबंधित था।
संक्षिप्त तथ्य
याचिकाकर्ता जो समाधान आवेदकों (RA) में से एक था, उसने दावा किया कि वह कॉर्पोरेट देनदार के संबंध में कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) में सबसे ऊंची बोली लगाने वाला था लेकिन 5 मई, 2024 को आयोजित बैठक में प्रतिवादी नंबर 2,4 और 5 से मिलकर बने लेनदारों की समिति (COC) द्वारा उसकी बोली को स्वीकार नहीं किया गया।
याचिकाकर्ता ने 12 महीनों में भुगतान किए जाने वाले प्रस्तावित योजना में 109.87 करोड़ रुपये की राशि की पेशकश की। जबकि सफल समाधान आवेदक (SRA) ने केवल 99 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पंजाब नेशनल बैंक, प्रतिवादी नंबर 3, प्रमुख सुरक्षित लेनदार है।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले राजीव नायर ने प्रस्तुत किया कि COC ने उच्चतम बोली को अस्वीकार करके कमर्शियल विवेक की कमी को दर्शाया है। यह भी तर्क दिया गया कि संशोधित प्रस्ताव में याचिकाकर्ता ने 90 दिनों के भीतर दूसरी किस्त में 75 करोड़ देने का वादा किया था, जिसे बेहतर प्रस्ताव होने के बावजूद स्वीकार नहीं किया गया।
याचिकाकर्ता ने कुंवर सचदेव बनाम आईडीबीआई बैंक एवं अन्य डब्ल्यू.पी. (सी) 10599/2021 दिनांक 12.02.2024 में दिल्ली हाईकोर्ट की समन्वय पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें COC के प्रत्ययी कर्तव्यों पर जोर दिया गया था। इस निर्णय में न्यायालय ने यह भी कहा कि सीओसी के निर्णय लेने में निष्पक्षता और तर्कसंगतता सुनिश्चित करने के लिए आचार संहिता का समय आ गया।
इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि सीओसी का निर्णय अपने कमर्शियल विवेक का प्रयोग करते हुए IBC के उद्देश्यों के अनुरूप होना चाहिए अर्थात कंपनी को पुनर्जीवित करना और परिसंपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करना।
दूसरी ओर प्रतिवादी नंबर 2- नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट जयंत मेहता ने प्रस्तुत किया कि जब निजी कॉन्ट्रैक्ट और बोली प्रक्रिया के क्षेत्र की बात आती है तो यह हमेशा अनिवार्य नहीं होता है कि समाधान योजना के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाले को प्राथमिकता दी जाए।
COC द्वारा स्वीकृत समाधान योजना को अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष रखा जाएगा, जहां याचिकाकर्ता अपनी शिकायतें उठा सकता है। वह रिट अधिकार क्षेत्र में हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकता।
हाईकोर्ट का निर्णय
न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता द्वारा दायर रिट में नोटिस जारी करना उचित नहीं है, जब उसके पास पहले से ही NCLT के समक्ष प्रभावी और वैकल्पिक उपाय है, जहां वह COC की कार्रवाई या निष्क्रियता के संबंध में अपनी शिकायतें बता सकता है।
न्यायालय ने कहा कि केवल NCLT के पास ही सीओसी के आचरण को विनियमित करने और समाधान योजना के संबंध में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार है।
न्यायालय ने आगे कहा कि यह NCLT का कर्तव्य है कि वह यह भी देखे कि क्या COC IBC के प्रावधानों के अनुसार काम कर रही है। इसलिए न्यायालय COC के आचरण और कार्यों के खिलाफ शिकायतें उठाने के लिए उचित प्राधिकारी नहीं है।
NCLT पूरी दिवालियापन प्रक्रिया की निगरानी करता है और दिवालियापन कार्यवाही के संबंध में IBC की धारा 60 के तहत कोई भी कार्रवाई करने का अधिकार रखता है।
न्यायालय ने आगे कहा कि COC द्वारा स्वीकृत समाधान योजना को NCLT के समक्ष विचारार्थ रखा जाएगा तथा वह यह तय करेगा कि योजना को IBC के प्रावधानों के अनुसार स्वीकृत किया गया है या नहीं।
न्यायालय ने निम्न प्रकार से कहा:
“12 इस प्रकार COC द्वारा तय समाधान योजना को न्यायाधिकरण के समक्ष विचारार्थ रखा जाएगा, जो मंच ही अंतिम रूप से यह तय करेगा कि COC ने IBC के विधायी अधिदेश के अनुसार अपने प्रत्ययी कर्तव्य का पालन किया है या नहीं।”
न्यायालय ने आगे कहा कि भारतीय दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड (IBBI) द्वारा 6 अगस्त, 2024 को COC के लिए जारी दिशा-निर्देशों के आलोक में इस न्यायालय को न्यायिक पुनर्वीचार की अपनी शक्ति का प्रयोग करने तथा सीओसी के कमर्शियल विवेक की जांच करने के लिए NCLT की शक्ति का अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है, जिसमें याचिकाकर्ता की योजना को 18 सितंबर, 2024 के पत्र द्वारा खारिज कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता की अंतिम दलील को भी न्यायालय ने खारिज कर दिया, जिसमें उसने न्यायालय को यह समझाने का प्रयास किया कि वह प्रस्ताव को नवीनीकृत करने तथा SRA द्वारा दिए गए प्रस्ताव के साथ हर पहलू में उसका मिलान करने की अनुमति दे। सार्वजनिक निधि नीलामी के मामले में प्राथमिक ध्यान वसूली को अधिकतम करने पर होना चाहिए तथा सीओसी के निर्णय पर NCLT द्वारा निष्पक्ष तथा समीचीन तरीके से विचार किया जाना चाहिए। यदि योजना अनुचित लगती है तो NCLT कानून के अनुसार ओपन कोर्ट बिडिंग की अनुमति देने की सीमा तक जा सकता है।
“15 यद्यपि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक निधि नीलामी के मामलों में उचित मूल्य की खोज करने के लिए सर्वोत्तम पद्धति तथा मुख्य मानदंड वसूली को अधिकतम करना सुनिश्चित करना है, लेकिन निष्कर्ष यह है कि COC के निर्णय पर NCLT द्वारा निश्चित रूप से न्यायसंगत तथा समीचीन तरीके से विचार किया जाना चाहिए। यदि वह उचित समझे तो कानून के अनुसार ओपन कोर्ट बिडिंग की अनुमति भी दे सकता है।”
न्यायालय ने अंततः यह माना कि पूर्वगामी चर्चा के मद्देनजर, वर्तमान रिट याचिका को इस स्वतंत्रता के साथ खारिज किया जाता है कि याचिकाकर्ता NCLT के समक्ष उचित उपाय कर सकता है, जो फोरम अकेले ही याचिकाकर्ता की आपत्तियों यदि कोई हो, उसको कानून के अनुसार अपने गुण-दोष के आधार पर तय करेगा।
निष्कर्ष
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सीओसी के आचरण से संबंधित शिकायतों को व्यक्त करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी और न्यायालय सीओसी के वाणिज्यिक विवेक की जांच करने के लिए NCLT की शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकता।
NCALT विश्लेषण करेगा और देखेगा कि समाधान योजना को मंजूरी देते समय COC ने सभी नियमों और विनियमों का अनुपालन किया है या नहीं।
इस प्रकार, वर्तमान याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: गेटवे इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड बनाम भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य।