पत्नी द्वारा कथित तौर पर 10 साल तक पीरियड्स न होने की बात छिपाने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक को सही ठहराया

Update: 2025-12-14 16:35 GMT

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में एक पति के पक्ष में दिए गए तलाक के फैसले को सही ठहराया। पति ने पाया था कि शादी के बाद उसकी पत्नी को 10 साल से पीरियड्स नहीं हुए, जिसके बाद उसने 'क्रूरता' के आधार पर तलाक की अर्जी दी।

पत्नी की अपील खारिज करते हुए जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने कहा –

“माननीय फैमिली कोर्ट ने मौखिक और दस्तावेजी सबूतों का बारीकी से मूल्यांकन किया और पाया कि मुद्दे नंबर 1 और 3 प्रतिवादी/पति के पक्ष में हैं। सही तरीके से उसके पक्ष में तलाक का फैसला सुनाया। इसलिए हमें माननीय फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में कोई गैरकानूनी या अनियमितता नहीं दिखती, जिसके लिए इस कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।”

मामले से जुड़े तथ्यों के अनुसार, अपीलकर्ता-पत्नी और प्रतिवादी-पति ने 05.06.2015 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी। शादी के बाद पत्नी ने पति को बताया कि उसके पीरियड्स नहीं हुए हैं। पति ने इसे प्रेग्नेंसी समझा और एक स्त्री रोग विशेषज्ञ से उसकी मेडिकल जांच करवाई। पत्नी ने डॉक्टर के सामने खुलासा किया कि उसे दस साल से पीरियड्स नहीं हुए।

आरोप है कि जब पति ने पत्नी से पूछा कि उसने उससे शादी क्यों की, तो उसने जवाब दिया कि अगर उसने उसे पहले सच बताया होता तो वह मना कर देता।

उसने खुद को एक और स्त्री रोग विशेषज्ञ से दिखाया, जिससे पता चला कि उसके गर्भाशय में कोई समस्या है, जिसके कारण उसे बच्चे पैदा करने में दिक्कत हो रही है।

इस खुलासे से पति को गहरा सदमा लगा, जिसके अनुसार उसे बहुत मानसिक पीड़ा हुई, जिसके लिए उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए आवेदन दायर किया।

फैमिली कोर्ट, कवर्धा ने दोनों पक्षकारों की दलीलों और बयानों पर विचार करने के बाद पति के पक्ष में तलाक का फैसला सुनाया। इससे दुखी होकर पत्नी ने हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी।

अपीलकर्ता-पत्नी ने फैमिली कोर्ट के सामने प्रतिवादी-पति द्वारा किए गए दावों का खंडन किया। उसने विशेष रूप से कहा कि उसकी मेडिकल स्थिति को गैर-स्थायी बताया गया और उसे कुछ दवाएं लेने की सलाह दी गई। उसने आगे कहा कि दवाएं लेने के बाद वह प्रेग्नेंसी के लिए मेडिकली फिट हो गई। हालांकि, उसने इस बारे में कोई मेडिकल सर्टिफिकेट पेश नहीं किया।

हाईकोर्ट ने पति के क्रॉस एग्जामिनेशन में दिए गए जवाब पर ध्यान दिया, जिसमें उसने कहा कि अगर पत्नी ने उसे पहले बताया होता कि वह बच्चे पैदा नहीं कर सकती तो वह वैकल्पिक और आधुनिक इलाज और दूसरी व्यवस्थाओं के बारे में सोच सकता था, लेकिन उसने उसे नहीं बताया और उसे मेडिकल जांच के बाद पता चला।

पत्नी ने दावा किया कि उसका इलाज चल रहा था और उसने कहा कि दवाएं लेने के बाद वह बच्चा पैदा करने में सक्षम हो गई। हालांकि, उसने यह बात मानी कि उसने इस संबंध में कोई डॉक्टर का सर्टिफिकेट पेश नहीं किया।

इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए कि पत्नी ने शादी के समय अपनी बांझपन की बात छिपाई, कोर्ट इस बात से संतुष्ट है कि फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर पति के पक्ष में तलाक का फैसला सुनाकर सही किया।

इसलिए विवादित आदेश को बरकरार रखा गया। फिर भी पार्टियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सौ. जिया बनाम कुलदीप, 2025 INSC 135 मामले में दिए गए दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने प्रतिवादी-पति को अपीलकर्ता-पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के तौर पर 5,00,000/- रुपये देने का आदेश दिया।

Case Title: X v. Y

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