उड़ीसा हाईकोर्ट ने डॉक्‍टरों से कहा, परचे पर दवाओं के नाम बड़े अक्षरों में या पढ़ने योग्य लिखें

Update: 2020-08-13 08:27 GMT

Orissa High Court

उड़ीसा हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि सरकारी या निजी या अन्य मेडिकल सेट-अप में काम कर रहे डॉक्टरों को दवाओं का नाम "बड़े अक्षरों" में लिखना चाहिए, ताकि वह पढ़ा जा सके। 

जस्टिस एसके पाणिग्रही की पीठ ने यह टिप्पणी एक जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए की, जिसमें आवेदक ने अपनी बीमार पत्नी की देखभाल के लिए अंतरिम राहत मांगी ‌थी। आवदेक ने अपनी पत्नी का मेडिकल रिकॉर्ड पेश किया था। अदालत ने पाया कि उक्त मेडिकल रिकॉर्ड को पढ़ना बहुत कठिन है और आम आदमी की समझ से परे है।

कोर्ट ने जमानत याचिका की अनुमति देते हुए अपने फैसले में मेडिकल रिकॉर्डों को पढ़ने के मामले में "अनुमानों" के इस्तेमाल और उससे होने वाली असुविधाओं की चर्चा की।

कोर्ट ने कहा, 

"डॉक्टरों की अपठनीय लिखावट मरीजों, फार्मासिस्टों, पुलिस, अभियोजन पक्ष, न्यायाधीशों के लिए अनावश्यक परेशानी पैदा करती है, ‌जिन्हें इस प्रकार की मेडिकल रिपोर्टों से जूझना पड़ता है। चिकित्सकों के परचे, ओपीडी स्लिप, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, चोट आदि की रिपोर्ट ऐसी होना आवश्यक है जो सुपाठ्य और पूरी तरह से समझ में आ जाए। मेडिकल पर्चे में अस्पष्टता या व्याख्या की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।"

गौरतलब है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार, और नैतिकता) (संशोधन) विनियम, 2016 का विनियमन 1.5 प्रत्येक चिकित्सक को दवाओं को बड़े अक्षरों में लिखने का आदेश देता है।

यह देखते हुए कि विनियमन का सावधानीपूर्वक पालन नहीं किया जा रहा है, पीठ ने आगाह किया कि मेडिकल रिकॉर्ड में अपाठ्य लिखावट के कारण प्रतिकूल चिकित्सा-कानूनी प्रभाव पड़ सकता है। इससे चिकित्सकों को चिकित्सकीय लापरवाही के आरोपों का सामना करना पड़ सकता है। कोर्ट ने यह सुझाव दिया कि पूरे चिकित्सक समुदाय को सचेत होकर दवाओं के परचे सुपाठ्य "लिखावट" में लिखने का प्रयास करना आवश्यक है।

कोर्ट ने उपरोक्त दिशा निर्देशों को पालन करने के लिए ओडिशा सरकार के मुख्य सचिव को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार के परामर्श से उचित परिपत्र जारी करने की व्यवहार्यता की जांच करने का आग्रह किया।

मामले का विवरण

केस टाइटल: कृष्ण पद मंडल बनाम ओडिशा राज्य

केस नं: BLAPL No. 3541/2020

कोरम: ज‌स्टिस एसके पाणिग्रही

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