दो साल से कोई संपर्क न होने के बावजूद इद्दत का पालन करने से छूट न देने के मामले में फैमिली कोर्ट की निष्क्रियता के खिलाफ महिला ने केरल हाईकोर्ट का रुख किया

Update: 2021-12-17 10:48 GMT

केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर एक महिला की अर्जी पर फैमिली कोर्ट द्वारा अपनाई गई निष्क्रियता को चुनौती दी गई है। फैमिली कोर्ट के समक्ष इस महिला ने इस आधार पर इद्दत का पालन करने से छूट मांगी थी कि पिछले दो वर्षों से प्रतिवादी (पति) के साथ कोई संपर्क या संबंध नहीं रहा है।

जस्टिस मोहम्मद मुस्तक और जस्टिस सोफी थॉमस की पीठ ने इस मामले पर विचार करते हुए फैमिली कोर्ट द्वारा पारित उस निषेधाज्ञा आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है,जिसमें महिला को दूसरी शादी करने से रोका गया है।

याचिकाकर्ता एक 24 वर्षीय महिला है और उसका एक नाबालिग बेटा है जो उसे प्रतिवादी (पति)से विवाह करने के बाद पैदा हुआ है। याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी ने उसके साथ लगातार और गंभीर मानसिक क्रूरता की है और उसके बाद उसे व उसके बेटे को वर्ष 2019 में घर से बाहर निकाल दिया गया था।

इसके बाद उसने पिछले साल फैमिली कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर कर अपने और अपने नाबालिग बेटे के लिए भरण-पोषण की मांग की। साथ ही कथित तौर पर प्रतिवादी के आवास पर रखे अपने सोने के गहनों को वापस दिलाए जाने की भी मांग की। यह मामला अभी विचाराधीन है।

हाईकोर्ट के एक ऐतिहासिक निर्णय के अनुसरण में उसने खुला (पत्नी द्वारा तलाक के लिए उच्चारित इस्लामी शब्दावली) की मांग की और इसके लिए प्रतिवादी का नोटिस भेज दिया।

बाद में फैमिली कोर्ट ने एक निषेधाज्ञा आदेश जारी किया, जिसमें उसे दूसरी शादी करने के रोक दिया गया या अगले आदेश तक खुला के आधार पर कोई भी कार्य न करने का आदेश दिया गया।

इस बीच, महिला ने फैमिली कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर कर बताया कि पिछले दो वर्षों से उसका प्रतिवादी से कोई संबंध नहीं रहा है, इसलिए खुला के बाद इद्दत अवधि समाप्त कर दी जाए।

हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 29 दिसंबर की तारीख तय कर दी, इसलिए, महिला ने हाईकोर्ट का रुख किया और फैमिली कोर्ट को उसके आवेदन को जल्द से जल्द निपटाने का निर्देश देने की मांग की।

उसने तर्क दिया कि इद्दत का उद्देश्य पत्नी की गर्भावस्था का पता लगाना होता है ताकि बाद में दूसरी शादी होने पर असली माता/पिता के भ्रम से बचा जा सके।

याचिका में यह भी प्रस्तुत किया गया कि वह यह साबित करने के लिए तैयार है कि वह किसी भी तरह से गर्भवती नहीं है ताकि इद्दत के उद्देश्य पूरा किया जा सके।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दो साल पहले शुरू की गई इस मुकदमेबाजी के कारण उसके और प्रतिवादी पति के बीच कोई संबंध नहीं रहे हैं, इसलिए याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की है कि उसे शेष अवधि के लिए इद्दत का पालन करने से छूट दी जाए ताकि वह मामले की कार्यवाही में और देरी से बचने के लिए अदालत के समक्ष पेश हो सके।

उसने मुस्लिम कानून के मुल्ला के सिद्धांतों को भी उद्धृत किया जिनमें कहा गया है कि ''यदि कोई संबंध नहीं था तो कोई इद्दत की आवश्यकता नहीं और वह तुरंत शादी करने के लिए स्वतंत्र है।''

यह भी तर्क दिया गया है कि फैमिली कोर्ट द्वारा उसके आवेदनों पर विचार करने में देरी पूरी तरह से अवैध, मनमानी और अनुचित है और हाईकोर्ट द्वारा इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत है।

यह भी प्रार्थना की गई है कि खुला के खिलाफ पारित निषेधाज्ञा आदेश हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का उल्लंघन करता है और इस तरह इसे रद्द किया जाना चाहिए।

याचिका अधिवक्ता टी.पी. साजिद, के.पी. मोहम्मद शफी और श्रीशम बी. चंद्रन के जरिए दायर की गई है।

केस का शीर्षक- फातिमाथुल नबीला नौशाद व अन्य बनाम मोहम्मद असलम व अन्य

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