क्या "निजी कार्यक्रम" PoSH एक्ट के तहत "कार्यस्थल" की परिभाषा के अंतर्गत आएगा? सिक्किम हाईकोर्ट जांच करेगा

Update: 2020-08-28 12:08 GMT

सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि वह, जांच करेगा कि क्या "निजी होटल में निजी विवाह समारोह" में हुई यौन उत्पीड़न की घटना "कार्यस्थल" की परिभाषा के अंतर्गत आएगी, जैसा कि यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) कार्यस्थल अधिनियम, 2013 (PoSH अधिनियम) की धारा 2 (ओ) के तहत निर्धारित है।

सिक्किम हाईकोर्ट ने कहा, "उक्त अधिनियम में" कार्यस्थल "शब्द की परिभाषा की जांच करने के बाद, ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता के पास अधिकार क्षेत्र पर एक मजबूत तर्कपूर्ण बिंदु है या इसकी कमी है। क्या" कार्यस्थल "की व्यापक व्याख्या के दायरे में एक निजी होटल में निजी विवाह समारोह में शामिल होना आता है, यह एक प्रश्न है, जिसकी जांच की जा सकती है।"

इसकी रोशनी में, अदालत ने निर्देश दिया कि सिक्किम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर के खिलाफ पार‌ित टर्म‌िनेशन के आदेश को, जिनके खिलाफ आंतरिक शिकायत समिति (आईसी) द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे, उनकी ओर से दायर रिट याचिका की पेंडेंसी तक, जिसमें आदेश को चुनौती दी गइ है, प्रभावित नहीं किया जाएगा।

जस्टिस भास्कर राज प्रधान की सिंगल जज बेंच ने मॉस कम्यूनिकेशन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर की ओर से दायर एक रिट याचिका को स्वीकार किया, ‌जिसमें उन्हीं के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी गई थी। एक छात्रा के यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद अंतरिक कमेटी ने जांच रिपोर्ट के अनुसार अधिकार-क्षेत्र के आधार पर कारण बताओ नोटिस जारी की थी।

अदालत ने कहा कि यदि अदालत को अंततः यह मानना ​​था कि विश्वविद्यालय की आंतर‌िक कमेटी के पास जांच का अधिकार क्षेत्र नहीं है (अधिनियम के तहत अधिकार क्षेत्र की कमी के कारण), तो परिणाम यह हो सकता है कि बहसतलब टर्मिनेशन कानून में भी खराब माना जा सकता है।

य‌ाचिकाकर्ता ने टर्मिनेशन के आदेश को प्रभावी न करने, एक प्रोफेसर के रूप में उन्हें कार्य करने और मामले के अंतिम निस्तारण होने तक वेतन का भुगतान करने के निर्देश देने की मांग की थी।

उन्होंने यह भी कहा था कि आंतर‌िक समिति के पास छात्रा द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच करने के लिए अधिकार क्षेत्र की कमी है क्योंकि घटना "कार्यस्थल" के दायरे के बाहर हुई है जैसा कि PoSH एक्ट के तहत परिभाषित किया गया है। इसके अलावा, आवेदक-प्रोफेसर के वकील ने तर्क दिया कि जैसा कि प्रोफेसर और छात्रा नौकरी या अध्ययन की अवधि में वहां नहीं गए थे। इसे लागू करने के लिए वकील ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की धारा 2 (ओ) (vi) के साथ-साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (रोकथाम, निषेध और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में महिला कर्मचारियों और छात्रों के यौन उत्पीड़न का निवारण) विनियम, 2015 के विनियम 2 (ओ) और 2 (सी) पर भरोसा किया।

विश्वविद्यालय, एक्‍जिक्यूटिव चांसलर और आंतरिक समिति ने आवेदक की उक्त प्रार्थना का विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले का "कानून की उचित प्रक्रिया" के साथ निस्तारण किया गया था और प्रोफेसर को "पर्याप्त अवसर" दिया गया था। विश्वविद्यालय ने कहा कि जैसा कि शिकायतकर्ता उसी विभाग की छात्रा है, जिसमें आवेदक प्रोफेसर है, इसलिए "उसे बहाल करने से पीड़ित को परेशानी होगी और तनावपूर्ण माहौल बन जाएगा"।

वरिष्ठ वकील ने महाप्रबंधक BEST अंडरटेकिंग, बॉम्बे बनाम श्रीमती एग्नेस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया और यह आग्रह किया गया अदालत को "रोजगार के दौरान" शब्दों की अवधारणा को व्यापक बनाने के लिए संवैधानिक विस्तार की अवधारणा को लागू करना चाहिए।

अदालत ने हालांकि कहा है कि आवेदक की नौकरी में शामिल होने और वेतन का भुगतान करने की प्रार्थना को इस अंतरिम चरण में अनुमति नहीं दी जाएगी। मामला 4 अक्टूबर, 2020 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

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